हिंदी की निर्मम हत्या
……………………………………………………………….
अमित तिवारी "शून्य"
प्रभात के सूरज सी चमक रही थी I
धरा पर ‘ हिंदी ’ महक रही थी II
यु रश्मिरथी -सी प्रलय की धार से भी
असंभव के आसार से भी
अलंकृत करती भारत के स्वातंत्र्य को
‘तमस’ के अंधेरो को पीछे छोड़ती
माँ भारती के जन - गण को जोड़ती
दामिनी सी दमकती त्रीव 'संचार धारिणी'
जन - गण - मन के मानस की ' तारिणी '
किन्तु हाय ये दुर्भाग्य कि न रहा ममत्व 'मेरा - तेरा- सबका ' इसमें
सहम गयी "हिंदी सुधा " संकट के इस क्षण में
दीन- हीन करके तिलांजलि दे गए
हम 'जन' सब हिंदी के हत्यारे बन गए
फिर आया श्रIद्ध पक्ष देकर पुष्पांजलि
अमुक दिन के पखवाड़े से दे दिया तर्पण
'हाय हिंदी' हम ही तेरे हत्यारे हैं
कैसे कहे तेरा करुण क्रंदन