शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

लघु कथा विसर्जित

 विसर्जित

लघुकथा द्वारा अमित तिवारी शून्य, ग्वालियर भारत


पवन का फोन रिसीव करते हुए अमित आवक सा रह गया और फोन पूरा होते ही , उसकी आंखों से सुकून के आंसू झड़ रहे थे।



 आज से 24 साल पहले जब पवन की शादी हुई थी तब कितना खुश था पवन उस रिश्ते की शुरुआत से ,एक उत्तम और समग्र दांपत्य जीवन का ख़्वाब या हकीकत। कितना परिश्रमी रहा पवन ताउम्र ग्वालियर के जीवन से भोपाल की जीवन तक का सफर ।जहां, ग्वालियर से जब भोपाल की यात्रा के लिए पवन जब पहली बार निकला था तो उसे याद था ₹200 भी अमित ने ही ज़िद करके रख दिए थे । तब

उस समय उसके पास ₹200 भी नहीं थे लेकिन आज उसने अपनी मेहनत अपने परिश्रम से वह मुकाम हासिल किया कि भोपाल में बस गया एक शहरी की तरह, अपने खुद के घर में जहां शायद उसे परिवार बच्चे सब मिला पर वो विश्वास और सम्मान नहीं मिला जिसे अपनी जिंदगी में आज तक  तलाशता ही रहा , जो उसका हक़ भी था।


यूं तो उसकी जिंदगी में कुछ भी ऐसा किसी को नहीं दिखा कि कुछ टूटा सा है लेकिन पिछले 5 साल पहले से उसकी जिंदगी में क्या बिगड़ा और बदला वह केवल पवन ही जानता था और पवन ने पिछली मई को यादों की अपनी डायरी लिख कर भेज कर अमित को वह सब बताया।

और आज फोन कॉल आया तो क्या सब खत्म हो गया था या की शुरू हुआ था एक बोझिल जीवित रिश्ते को विसर्जित करने का मौका खैर पवन को तलाक मिल ही गया, पर वह तो इस सब के लिए जिम्मेदार नहीं था हां विक्टिम ज़रूर रहा !


खैर आज अमित ने पवन के पांच सालों के संघर्ष की जीत पर अपनी  खुशी जाहिर की चलो विसर्जित हो ही गया आज  वो रिश्ता ,जो दुख देता रहा धोखा देता रहा पवन जैसे देवता को जो आज के समय में भी एक ऐसा इंसान रहा जो धोखा सहता रहा ।

अपनी जिंदगी में रिश्तों के धोखे से बचने के सुकून की तलाश में ।



द्वारा 

अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर भारत 🙏

चित्र आधारित रचना द्वारा अमित तिवारी ‘शून्‍य’ अतुकांत भाव शीर्षक ‘’बदला नेह का’’

 

चित्र आधारित रचना

द्वारा अमित तिवारी ‘शून्‍य’

अतुकांत भाव

शीर्षक ‘’बदला नेह का’’

 

क्यों लेते हैं

ऐसे बदला

जिनको हमने

सौंपा खुद को,

 

क्‍या पाया मैंने

बस यूं ही

उसकी बांहों में

खो करके के,

 

उसकी मीठी बात

अधर से मैने

मन में क्यों थी

कायांतर करके,

 

पर भ्रम जाल

तोड कर उसने

दिखलाया खुद का

वो असली चेहरा;

 

मलिन और मक्कार

कि जिस पर

प्रेम को होता

हो धिक्‍कार,

 

करता प्रेम देह से

केवल और ना

देता मन का

निश्चल प्‍यार,

 

होता आज जो कल

में जाना

तो जाती उस पल

को छोड़

 

जिस पल किया

इस पगली ने

उस श्‍वान की खातिर

निज गृह द्रोह

 

स्वरचित अतुकांत कवित्त

द्वारा अमित तिवारी “ शून्य”

सोमवार, 5 सितंबर 2022

हां मैं शिक्षक हूं

 हां मैं शिक्षक हूं


स्वरचित मौलिक अतुकान्त कवित


द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर , म प्र

भारत 🙏



किस विधि मिलूं तुम्हें मैं

   शाश्वत नहीं,सत्य नहीं। 


नश्वर हूं तुम्हारी ही तरह

   शिराओं में बह रहा हूं 


ज्ञान बनकर शुभग हूं मैं

  हूं सराहा गया पर दीन हूं


  श्रृष्टि के प्रस्फुटित तेज सा

               रोज के राग का सा


सृजन के साज का सा 

होंसलों में हिमालय सम


डिगा जो तनिक भर नहीं

प्रलय से परे भी टिका रहा जो 


समय के आवेग के वेग को समेटे

रमणीक प्रस्तरों पर काई सा


चरित्र में सफाई सा

हूं मैं सुशिक्षित लेकिन


दमित और शोषित अति

पृथ्वी के प्रदुर्भाव सा 


सत्य का रूप हूं 

हां मैं शिक्षक हूं 


अधर पर वाणी सम

गाया जा पाने वाला


एक जीवन समग्र गीत हूं।

हां मैं शिक्षक हूं,

धधकते समय की 

लावा भावों की भाषा।।



स्वरचित अतुकांत कवित्त

द्वारा अमित तिवारी शून्य

शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

आज के दौर में

 लगे रहो निशीथ पथ पर 

बिना डरे 

डिगो मत 

फिरो मत 

समेटो मस्तिष्क की 

जिज्ञासा का जोर 

अपने बाजुओं में


कि युग अब 

किसी कृष्ण 

राम का तो नही


बिना जले मिला आत्म दीप्ति का प्रकाश है किसे ☺️☺️

*अमित तिवारी "शून्य"


©कॉपी राइट है

चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...