शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

चित्र आधारित स्वरचित अतुकांत (विजय शिखर ) कवित्त द्वारा अमित तिवारी “शून्य” ग्वालियर , म. प्र.

 


चित्र आधारित

स्वरचित

अतुकांत कवित्त

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म. प्र.

 







 

कांटे

छांटे

मैंने

हर

दिन

फिर

जाके

पाई

मैंने

मंजिल

जीत

की

कोई

इबारत

जैसी

मेरी

मंजिल

मेरा

शिखर

विजय शिखर




द्वारा अमित तिवारी “ शून्य”

ग्वालियर म.प्र.  

 

   

गुरुवार, 29 जुलाई 2021

“चाय और बारिश” जीवन के एकात्म कोनो से निकले संस्मरण का एक परिदृश्य : द्वारा अमित तिवारी

 

“चाय और बारिश” जीवन के एकात्म कोनो से निकले संस्मरण का एक परिदृश्य

द्वारा

अमिततिवारी

सहायक प्राध्यापक

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान ग्वालियर

 

जीवन परिदृश्य के विभिन्न पहलुओं को तलाशने पर पता चला कि चाय जीवन का एक महत्वपूर्ण व अभिन्न अंग जैसा ही है |  और यदि बात करूं खुद की जीवन यात्रा की तो चाय और बारिश से जुड़े संदर्भों को तलाशने बैठा तो पाता हूं, की अनेकों यादें मन में उजागर हो आयीं| बहराल संदर्भों की परिधि में से एक आत्म स्मरणीय पल अकस्मात स्मृति पटल पर केंद्रित हो आया।

बात तो वर्ष 2007 की है जब अपनी अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी के लिए पहला इंटरव्यू देने के लिए, बेकअन टूर्स नाम की एक इनबॉउंड ट्रैवल कंपनी में अपने दिल्ली प्रवास पर आ चुका था| मुझे याद है कि वो 20 जुलाई का दिन था | जैसे तैसे अपने स्थानीय दिल्ली निवास से जैसे तैसे  लाजपत नगर 1 में उनके ऑफिस पहुँच गया | दिल्ली से कोई ज्यादा पुराना नाता नहीं था हां; 1 साल पहले इंटर्नशिप जरूर की थी तब दिल्ली में लगभग 2 महीने निवास किया था और थोड़ी बहुत दिल्ली की नक्शानवीसी कर ली थी।

 

इंटरव्यू के तय समय पर जैसे तैसे पता पूछते हुए ऑफिस पहुंचा, दिल्ली में मानसून शायद दस्तक दे चुका था | हल्की बारिश में थोड़ा भीगा हुआ था | हाथ में डाक्यूमेंट्स और रिज्यूम पकडे और बौछार से भीगी शर्ट  और उस पर ऑफिस के अंदर चलता हुआ ऐसी उस वक्त मुझे दांत कट कटाने पर मजबूर कर रहा था| चलते  इंटरव्यू में मुझे ओनर्स से ऐसी बंद करवाने की के लिए कहना पड़ा ,उन्होंने मेरी बात को नजरअंदाज नहीं किया और कहा  की  ठीक है.. आप थोड़ी देर गरमा गरम चाय लीजिए फिर फाइनल इंटरव्यू करते हैं और ऐसी बंद करवा दिया | और अदरक वाली चाय मुझे ऑफर की गयी थी |  थोड़ी देर ऐसी बंद रहा और चाय का कप गटागट पीकर  मेरी कपकपी बंद हो गयी थी .....मैंने बहुत अच्छा इंटरव्यू किया काफी सारे प्रश्नों का बहुत अच्छा उत्तर दिया | वही दोनों ऑनर्स भी मेरे प्रश्नों से काफी संतुष्ट नजर आ रहे थे उन्होंने आपस की चर्चा के लिए मुझे 10 मिनट बाहर के कमरे में  इंतज़ार करने के लिए कहा| मैं कमरे से निकला और बाहर आकर मैंने चाय पिलाने भैया वाले भैया जिन्हें बाद में हम राकेश जी के नाम से जानते थे, को एक कप चाय और पिला देने की डिमांड कर दी डाली क्योंकि चाय से मुझे बहुत स्नेह रहा है |  राकेश जी ने भी सहज भाव से चाय का प्याला तुरंत ही मुझे ऑफर कर दिया और हम दोनों आपस में चर्चा करने लगे | मैंने चाय खत्म ही की थी कि अंदर से मैनेजिंग डॉक्टर दीपक मनवानी जी ने राकेश को बुलाकर, मुझे अंदर आने को कहा |  मैं अब मुझे मिलने वाली नौकरी की कन्फर्मेशन के समाचार को सुनने की तलाश में था | मैं अपनी दूसरी चाय ख़तम कर चुका था | अब एग्जीक्यूटिव  डायरेक्टर  नीलम मैडम ने मुझे पुछा अमित अब कैसा लग रहा है ... मैंने आत्म विश्वासी स्वर में तपाक से जवाब दिया कि दो बार चाय पी कर अब बेहतर फील कर रहा हूं | उन्होंने आश्चर्य से पूछा दो बार कब क्या पहले भी पी कर आए थे मैंने तुरंत जवाब दिया, नहीं अभी 10 मिनट पहले वह राकेश भैया से डिमांड करके एक और कप चाय पी ली थी मैंने ! दीपक सर और नीलम मैडम दोनों हंसने लगे..... बल्कि दीपक सर बहुत खुश होकर नीलम मैम से बोले, बंदे की लायजनिंग पावर देखी , 10 मिनट में ऑफिस से चाय जुगाड़ ली | फिर वे मुझ से बोले  बधाई हो अमित आपका सिलेक्शन हो गया है | आप हमें ऑगस्ट से ज्वाइन कर सकते हैं.... मैंने कहा जी थैंक्स और जवाब दिया कि मैं अगस्त में ज्वाइन कर लूंगा | अब हमारे बीच फॉर्मल इंटरव्यू टॉक लय ले चुकी थी , वो दोनों एक – एक करके कंपनी और मेरी जॉब प्रोफाइल के बारे में बता रहे थे | दीपक  सर ने मुझे  बोला कि आप ग्वालियर से  से हो तो 10 दिन तक यहां तो नहीं रहोगे तो आप एक दो दिन में अपना रहने वगेरह  का अरेंजमेंट पहले ही करके निकलना और  हम आपको आधे घंटे में ही ऑफर लेटर देते हैं |  मुबारक हो एक बार फिर से ...और जब मुझे  उन्होंने ऑफर लेटर दिया तो... सहमते हुए मैंने राकेश जी को  कहा कि प्लीज न्यू फॉर्थकमिंग जोइनी को एडवांस में एक कप चाय और पिला ही  दीजिये ... प्लीज ! मेरी बात सुनकर नीलम मैडम राकेश से हंस कर  बोल उठी कि राकेश जल्दी-जल्दी पिला दो इसे चाय नहीं तो हो सकता है अगस्त महीने का कोटा भी अमित अभी ही पूरा कर ले। सब मुझे शुभकामनाएं दे रहे थे ; और मैं हंसते- हंसते अपनी चाय खत्म करते हुए बाहर निकल आया | क्योंकि बाहर बारिश हो रही थी तो मुझे जल्दी ही रिक्शे का इंतजाम करना था और मैं जल्दी से आगे बढ़ चला।

ए वाकया 2007 जुलाई महीने का था | आज बरबस ही याद आया गया ...कहने को तो 15वीं  साल शुरू हो रही थी|  तब से अब तक भी ... चाय आज भी जीवन का आनंद है...  और रहेगा मेरे, जीवन में। ऑटो में बैठते ही मैंने मोबाइल से घर फोन कर खुस खबरी दी | जीवन में वह बारिश और वह चाय का वाकया आज भी याद है।

बुधवार, 28 जुलाई 2021

मौन के अंतर्मन का सार एक लघु कथा (स्वरचित) द्वारा अमित तिवारी शून्य ग्वालियर म प्र

 

मौन के अंतर्मन का सार

एक लघु कथा (स्वरचित)

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म प्र

 

नंदरानी की बातों को सुनती प्रिया, आज जैसे प्रत्युत्तर में कोई शब्द कहना ही नहीं जानती हो। जैसे उसके अंतर्मन में अनुजा की बातें मानो कोई अनुनाद कर ही नहीं रही थी, या उस पर उनका कोई असर हो ही नहीं रहा हो जैसे। यद्यपि अनुजा अपने स्वर की तीव्रता और  उसके कठोरतम स्तर पर आ चुकी थी। फिर भी प्रिया की प्रतिक्रिया हीनता  ने आज पहली बार , अनुजा को गंभीर शर्म में डाल ही दिया।   वही चिंतन की प्राथमिक सकारात्मक सोच आज पहली बार अनुजा को समझाइश दे रही थी ,कि किसी को अपशब्द कहने या कठोरतम शब्द कह लेने भर से रिश्ता पर हक नहीं जमता और ना ही रिश्तो की तारतम्यता बंधती है ।उलट प्रिया के प्रति उसे अपनी ओर से पहली बार अंतर्मन में ग्लानि का भाव जागृत हुआ । वही प्रिया आज अमितेश के कहे शब्दों को "कि तुम बस अपने मन के अंतर्मन का सार समझो तुम्हें शब्दों की विभीषिका डिगा नहीं पाएगी" !!

 

 

सुबह की सकारात्मकता और "मौन के अंतर्मन के सार ने" मानो दोनों भाभी और ननद के रिश्तो की खलिस को धो दिया हो जैसे! अमितेश की बात को मान प्रिया अनुजा के अधिक नजदीक और अनुजा प्रिया को अधिक प्रिय हो गईं।

स्वरचित लघु कथा

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म प्र

सोमवार, 26 जुलाई 2021

बादल एक अतुकांत कवित्त द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

 

बादल

एक अतुकांत कवित्त

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

 

बादल बरसें

पृथ्वी तरसे

जीवन फिर भी

प्यासा है |

 

मतवाले बादल

को देखे मन फिर

क्यों हर्षाता है |

 

खुश्बू बिखरी

अपनेपन की

जब धरती पर

बूँद गिरी है |

 

आज अचानक

इस धरती के

लक्ष्यों पर

संभ्रांत पड़ी है |

 

द्वारा : अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म. प्र.

26.07.2021

 

शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

बचपन के दिन भी अजीब थे द्वारा अमित तिवारी

 

चित्र आधारित रचना

अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी शून्य

बचपन के दिन भी अजीब थे

 

आज याद मुझे आई

मेरे बचपन के दिन की

थोड़ी सी आंख भर आई

 

फिर मन में एक विचार उठा

जीवन बड़ा होने को था फिर भी अधीर

आज याद करके बचपन पाया

खुद को खुद के बेहद करीब

ए दोस्त क्या थी सोच

ना थी सोच और ना ही थी चिंता

भय था बस स्कूल का बस्ता

मस्ती का फाका जीवन का सार

आज लगे बाकी सब बेकार

वह हरियाली हो प्यारी बारिश

जिसमें भुट्टे खाने की ख्वाहिश

हम जब थे हम परतंत्र तब थे सच में स्वतंत्र

आज जब स्वतंत्र हैं लेकिन सच में हैं परतंत्र

जीवन की उहापोह की बारिश

बचपन का आनंद वितान

छुपा खुद ही से मेरा बचपन

मैं बचपन का करता तब कहाँ सम्मान ||

 

द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

गुरुवार, 22 जुलाई 2021

आलेख लेखन में विषय भाषा और उपसंहार का महत्व

 

आलेख लेखन में विषय भाषा और उपसंहार का महत्व

द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्राध्यापक

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान

ग्वालियर मध्य प्रदेश

 

आलेख लेखन की एक बहु प्रचलित और परिष्कृत विधा युद्ध एक महत्वपूर्ण विधा है, और वर्तमान में यह अधिक प्रासंगिक और ज्यादा पढ़ी और समझी जाने वाली विधा भी बन गयी है | हिंदी या किसी अन्य भाषा में लिखे जाने वाले वे लेख आलेख कहे जाते हैं जिनमे आंकलन आधारित आंकड़ों की प्रस्तुति के साथ लेखक और पाठक के बीच सीधी तारतम्यता प्रदर्शित होती है | यह विधा हिंदी समेत किसी भी अन्य भाषा साहित्य में एक महत्वपूर्ण भूमिकाअदा करती है । यदि इस परिपेक्ष्य में  आलेख लेखन की प्रासंगिकता की बात की जाए तो ज्ञात होता है, कि आलेख लेखन में विषय एक महत्वपूर्ण एवं केंद्रीय भूमिका रखता है|  विषय वस्तु विभिन्न उपक्रमों के कालक्रम में एक सदैव एक अपरिहार्य तत्व  होता ही है| जिसका अपना विवेचित तादात्म्य होता है और जिसे सृजते समय- व्यक्तिगत, सामाजिक, समसामयिक, आर्थिक, वैज्ञानिक, साहित्य सम्यक  आदि सभी समुच्चयों को द्रष्टिगत करना होता है; जो कि आलेख की आत्मा स्वरूप है।

 भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम भी है और शब्दों के उचित संयोजन द्वारा लेखक के विचारों को समस्त पाठक वर्ग तक उतने ही प्रभावी ढंग से पहुंचाया जा सकता है जितनी भाषा में प्रचुरता और शाब्दिक गंभीरता होती | अतः हिंदी जैसे समृद्ध भाषा के परिपेक्ष में परिपेक्ष को संपूर्ण करती ही है |

 शब्द संयोजन एवं विषय उद्दीपन भावों को भाषा में भरने का महत्वपूर्ण साधन है | किसी भी आलेख की सार्थकता किसी भी भाषा के साथ- साथ उसके समृद्ध विषय से ही होती है और दोनों मिलकर उसे परिपूर्ण  और परिष्कृत  बनाते  हैं| किसी भी हालत में आलेख की सार्थकता उसके उपसंहार की गहराई और उल्लेखित साक्ष्यों, तदर्थों के समन्वित  संक्षेपण के द्वारा पाठक के मन मस्तिष्क तक पहुंचने से होती है |  उपसंहार एक महत्वपूर्ण लेखनी परिपाटी है; जिसमें क्रमिकता के आधार पर आलेख की संपूर्णता, उसके विषय पर लेखक के निदानात्मक निरूपण के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है| अंततः सार्थकता से यह संक्षेपित किया जा सकता है कि आलेख लेखन में विषय ,भाषा और उपसंहार का महत्वपूर्ण योगदान रहता ही है ।

द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्राध्यापक

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान

ग्वालियर मध्य प्रदेश

22.07.2021

 

बुधवार, 21 जुलाई 2021

कुछ पल अपने लिए

 

कुछ पल अपने लिए

स्वयं को समर्पित

एक स्वरचित अतुकांत कविता

द्वारा “अमित तिवारी” शून्य

ग्वालियर , म.प्र.

 

ना वक़्त मुझको अपना कभी

न मिले न सही कुछ गिला भी नहीं

मैं समर्पण का समभाव रखता नहीं

थी शिकायत मुझको बस स्वयं से मगर

पा जो न सका समय के कुछ पल अपने लिए !!

 

धर्म को जानता, कर्म को साधता

या की अपनी कमाई से मैं घर पालता

हो गया बेदखल अपने ही मूल से

आज दर्पण मुझे खुद न पहचानता

वो भी कहता रहा डाल ले, कुछ पल अपने लिए !!

 

क्यों  रहा तू हमेशा जिन्दगी औरों पर वारता

ख्वाहिशें अब नहीं, न ही कोई चाव है

चोट मन पर लगी अब नहीं उसका भाव है

कर्म रत हो रहा ,न कुछ पल अपने लिए ही रहे !!

 

मेरे वक़्त पर अब नाम औरों के होते गए

पल से कल तक चला ,कल से वर्षों चला

आज वर्षों की बारिश श्वेताम्बरी हो चली

अब रहा न वो देह , न ही नेह भी रहा

थी शिकायत मुझे औरों से मगर

था टालता खुदी के अनमोल कुछ पल अपने लिए !!

 

अब अचानक बड़ा बेसबर हो रहा

न पल ही रहा, न ही विकल मैं रहा

ना सफल मैं रहा, न विफल मैं रहा

 

बस जो खोता गया

वो ही था.. बस एक मेरा अपना ..बस अपना

कुछ पल अपने लिए पर,... वो .. कहाँ पा सका !!

द्वारा : अमित तिवारी “शून्य”

21.07.2021, ग्वालियर म. प्र.

चित्र आधारित स्वरचित अतुकांत कवित्त द्वारा अमित तिवारी “शून्य“ साथी साथ चलना है मंजिलों पर हक़ तो अपना है जीत सबका सपना है रखकर इरादे ऊँचे वादा तो पूरा करना है || मुश्किलें तो आती हैं, मगर वो दूर हो जातीं हैं, बंदिशों से अपने लिखनी यह पाती है, जीत की इबारत थोड़ी सी जो बाकी है || मन एक कभी हारेगा, दूजा उसको सराहेगा, मिलकर मंजिल पर दोस्त उसे पहुंचाएगा, यह सब दल बल का काम होगा , तभी विजय पर हम सबका नाम होगा || द्वारा अमित तिवारी “शून्य” ग्वालियर म. प्र. 16.07. 2021

 

चित्र आधारित स्वरचित अतुकांत कवित्त

द्वारा अमित तिवारी “शून्य“

 

साथी साथ चलना है

मंजिलों पर हक़ तो अपना है

जीत सबका सपना है

रखकर इरादे ऊँचे वादा तो पूरा करना है ||

 

मुश्किलें तो आती हैं,

मगर वो दूर हो जातीं हैं,

बंदिशों से अपने लिखनी यह पाती है,

जीत की इबारत थोड़ी सी जो बाकी है ||

 

मन एक कभी हारेगा,

दूजा उसको सराहेगा,

मिलकर मंजिल पर दोस्त उसे पहुंचाएगा,

यह सब दल बल का काम होगा ,

तभी विजय पर हम सबका नाम होगा ||

 

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर म. प्र.

16.07. 2021   

 

मंगलवार, 20 जुलाई 2021

क्रिकेट की हार और ईदी; एक स्वरचित लघु कथा द्वारा अमित तिवारी “शून्य” ग्वालियर , म.प्र.

 

क्रिकेट की हार और ईदी;

एक स्वरचित लघु कथा

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म.प्र.

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भारत और पाकिस्तान के मैच का जिक्र आज यहां मैनचेस्टर में भी था और दोनों ही विश्व स्तरीय क्रिकेट टीमों के बीच की प्रतिस्पर्धा का आलम यह था कि अश्फाक और अमन दोनों के ही घर पर अपनी-अपनी टीमों को जिताने की परिपूर्ण ख्वाहिश न केवल उन दोनों पड़ोसी अप्रवासी परिवारों को उल्लासित  कर रही थी; बल्कि दोनों को ही अपने-अपने मुल्क पर मान और उनकी जीत के जज्बे को उन दोनों देशों के बीच ही राइवल्री आज दोनों ही पड़ोसियों को भी गैरमुल्क इंग्लैंड में अपने मुल्क की नुमाइंदगी करने का मौका भी दे रही थी।

वैसे अश्फाक और अमन पाकिस्तानी और भारतीय होने के साथ-साथ दोनों आपस में अच्छे पड़ोसी और एक अच्छे दोस्त बल्कि भाई जैसे थे लेकिन क्रिकेट के खेल के जज्बे ने दोनों को क्रिकेट के लिए ही सही कुछ देर के लिए अपने मुल्क की हिमायत करने और एक इंस्टेंट रायवलेरी को महसूस करवा ही दिया | दोनों अपने- अपने वतन से कोसों दूर; एक सी जुबान, संस्कार और अपने को भारतीय उपमहाद्वीप का होने के नाते एक परिवार से कम नहीं मानते थे , लेकिन आज इस मैच को लेकर दोनों के बीच मित्रता आधारित ही सही प्रतिस्पर्धा  तो बन ही आई थी | अश्फाक को सचिन तेन्दुलकर पसंद है ,लेकिन वह अकरम से पाकिस्तान के लिए मौका चाहता है | वहीं अमन को शोएब पसंद है पर आज वह शोएब के पीटे जाने  की दुआ कर रहा है | घर से दोनों एक ही कार से साउथ एवेन्यू के रास्ते ऐतिहासिक ओल्ड ट्रैफर्ड ग्राउंड पहुंच रहे थे; अमन और अश्फाक अपनी-अपनी टीमों के जर्सी के  रंग में रंगे थे ; हालांकि एक ही कार में ग्राउंड पर मैच देखने के लिए एक साथ ईद के दिन एक दूसरे के घरों से भेजे गए व्यंजनों को खाते पीते ग्राउंड पर दर्शक दीर्घा में पहुंचे |

टिकट के आधार पर आसपास की सीटों पर बैठ गए | ग्राउंड में क्रिकेट के बुखार के शुमार में दोनों मुल्कों के लोगों की फौज इस खेल के कलेवर में अपनी-अपनी उम्मीदों के रंग भर रही थीं, खेल की ऊर्जा और उतार-चढ़ाव बिजली और बादल की सी कौंध के साथ चलता रहा ,कभी पाकिस्तान हावी होता तो कभी भारत और कभी दोनों पर क्रिकेट और क्रिकेट का खेल के रोमांच की मस्ती | इस गैर मुल्क में भी अप्रवासियों के अपने आपस के स्नेह के साथ-साथ क्रिकेट और मुल्क के प्रति प्रेम और आदर का भाव उन्हें देश के लिए देश से दूर होने पर भी हर धड़कन पर जोड़ रहा था |

 ईद के त्यौहार की खुशी कोसों दूर भारत और पाकिस्तान में भी क्रिकेट की साझी प्रीत के साथ मनाई जा रही थी | बहरहाल खेल के मैदान पर पाकिस्तान एक नजदीकी हार की कगार पर आ गया था अश्फाक उदास था और अमन झूम रहा था लेकि अश्फाक के प्रति संवेदना उतनी ही गहरी थी | अश्फाक पाकिस्तान की एक नजदीकी हार से  से गमगीन था ...सो अमन ने उसे लगा अपने भाई समान दोस्त को कहा ‘’अच्छा खेलकर, एक अच्छी टीम से हारना कोई दुख की बात नहीं है’’... चलो दोस्त अब घर चलें आज भारत की जीत पर आंटी से ईदी लेनी है  | जब दोनों घर पहुंचे तो तस्लीमा ने परिवार समेत अपने बेटे जैसे अमन को क्रिकेट का बैट दिया जो उनकी अमन रूपी ईदी थी |  जिस पर लिखा था “अमन के लिए अमन का पैग़ाम ,जीते रहो जीतते  रहो” अमन की आंख भर आई और वह मां समान तस्लीमा के पैरों में गिर पड़ा तस्लीमा ने उसे  अपने बेटे की तरह गले से लगा लिया ; दोनों परिवारों में ईद की खुशी और अमन की इबादत थी ।

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

सोमवार, 19 जुलाई 2021

स्वरचित अतुकांत कवित्त : “दुनियादारी” द्वारा अमित तिवारी “शून्य” ग्वालियर , म.प्र.

 

स्वरचित अतुकांत

कवित्त : “दुनियादारी”

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म.प्र.

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कैसे छोड़ें दुनियादारी !!

ये दुनिया ही सबकी महतारी

बुनते-बनते सब दुनिया से

प्रेम द्वेष या बैर ही हों

निजता के कुछ जो भाव भी हैं

वो भी दुनियादारी के मोहताज़ सभी

हिंसा हिय की हो या कि

या की तन की सब इस दुनिया तक है

छोड़ी हमने जो यह दुनिया

तब ही रब को पाया है , पर

जब तक हैं इन झंझावातों में

कैसे छोड़ें दुनियादारी ??

कैसे छोड़ें दुनियादारी !!

यह दुनिया ही सबकी महतारी

 

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म. प्र.

19 .07.2021  

 

शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

चित्र आधारित स्वरचित अतुकांत कवित्त द्वारा अमित तिवारी “शून्य“

 

चित्र आधारित स्वरचित अतुकांत कवित्त

द्वारा अमित तिवारी “शून्य“

 

साथी साथ चलना है

मंजिलों पर हक़ तो अपना है

जीत सबका सपना है

रखकर इरादे ऊँचे वादा तो पूरा करना है ||

 

मुश्किलें तो आती हैं,

मगर वो दूर हो जातीं हैं,

बंदिशों से अपने लिखनी यह पाती है,

जीत की इबारत थोड़ी सी जो बाकी है ||

 

मन एक कभी हारेगा,

दूजा उसको सराहेगा,

मिलकर मंजिल पर दोस्त उसे पहुंचाएगा,

यह सब दल बल का काम होगा ,

तभी विजय पर हम सबका नाम होगा ||

 

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर म. प्र.

16.07. 2021   

 

गुरुवार, 15 जुलाई 2021

'कला और साहित्‍य का जीवन में महत्‍व'' आलेख द्वारा अमित तिवारी सहायक प्राध्‍यापक भा.प.या.प्र.सं. ग्‍वालियर

 

''कला और साहित्‍य का जीवन में महत्‍व''

आलेख द्वारा

अमित तिवारी

सहायक प्राध्‍यापक

भा.प.या.प्र.सं.

ग्‍वालियर

 

मानव जीवन एक बहुआयामी  जीवन परिदृश्‍य है और जीवन की सार्थकता प्रामाणिक तौर पर कला, साहित्‍य और उससे सृजित आनन्‍द के  ध्‍येय को  ही मानव जीवन का अभीष्‍ट माना जाता है। जिन्‍दगी सपने अनाहत प्रकम से कला व साहित्‍य सम्मत हो जीवन की जीवंतता का ध्‍येय गढ़ती है। कला और साहित्‍य जीवन के विकास प्रक्रम को प्रगाढ़ता और स्‍तरीयता की ओर ले जाने वाले दो अमिट जीवन प्रतीक स्‍वरूप हैं|  जिसे सांस्‍कृतिक तत्‍वों के तौर पर परिभाषित किया जाता है। सृष्टि द्वारा मनुष्‍य को दी गई दृष्टि और उसकी व्‍यष्टि से व्‍यक्ति आत्‍मोत्‍थान और विकास के नवीन शीर्ष तलाशता आया है, कला वैविध्‍य की बात की जाय तो यह सहज स्‍पष्‍ट होता है कि कला व साहित्य जीवन दर्शन को और जीवन शैली को नए मानदण्‍ड में गढ़ती हुई, पीढि़यों को प्रभावित कर सकने का माद्दा रखती है और सृजन शील व्‍यक्तियों के मन मस्तिष्‍क से होती हुई विकास के नवीन वितान गढ़ती है।

पारंपरिक तौर पर यदि देखा जाए तो कहा जा सकता है कि भारतीय कला और साहित्‍य ; सृजन की उत्‍तान आसंधि पर पहुंच शीर्षस्‍थ स्‍तरों से होती हुई वैविध्‍य प्रकारों की परिपाटी में पहचाने जाने लगी है। कलाओं को अनेको रूपों यथा- प्रदर्शित कला, स्थापन कला, लेखन, नृत्‍यकला, चित्रकला, गायन, वादन, संगीत, लोक कला के साथ-साथ साहित्यिक कृतियों जिनमें काव्‍य, महाकाव्‍य, उपन्यास , कहानी, कथा, लघुकथा और दर्शन व साहित्‍य आधारित अनेकानेक परिदृश्‍यों का समागम जीवन की महत्‍ता को न केवल संपूर्णता से भरता है वरन् उसे और अधिक शक्तिशाली और संवदेनशील , प्रखर, विन्‍यस्‍थ और परिपूर्ण बनाता है।

द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्राध्यापक

भा.प. या. प्र. स.

ग्‍वालियर

दिनांक - 15 जुलाई 2021

चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...