कुछ
पल अपने लिए
स्वयं को समर्पित
एक स्वरचित अतुकांत कविता
द्वारा “अमित तिवारी” शून्य
ग्वालियर
, म.प्र.
ना वक़्त मुझको
अपना कभी
न मिले न सही
कुछ गिला भी नहीं
मैं समर्पण का समभाव
रखता नहीं
थी शिकायत मुझको
बस स्वयं से मगर
पा जो न सका समय
के कुछ पल अपने लिए !!
धर्म को जानता,
कर्म को साधता
या की अपनी कमाई
से मैं घर पालता
हो गया बेदखल
अपने ही मूल से
आज दर्पण मुझे
खुद न पहचानता
वो भी कहता रहा
डाल ले, कुछ पल अपने लिए !!
क्यों रहा तू हमेशा जिन्दगी औरों पर वारता
ख्वाहिशें अब
नहीं, न ही कोई चाव है
चोट मन पर लगी
अब नहीं उसका भाव है
कर्म रत हो रहा
,न कुछ पल अपने लिए ही रहे !!
मेरे वक़्त पर अब
नाम औरों के होते गए
पल
से कल तक चला ,कल से वर्षों चला
आज वर्षों की
बारिश श्वेताम्बरी हो चली
अब रहा न वो देह
, न ही नेह भी रहा
थी शिकायत मुझे
औरों से मगर
था टालता खुदी
के अनमोल कुछ पल अपने लिए !!
अब अचानक बड़ा
बेसबर हो रहा
न पल ही रहा, न
ही विकल मैं रहा
ना सफल मैं रहा,
न विफल मैं रहा
बस जो खोता गया
वो ही था.. बस
एक मेरा अपना ..बस अपना
कुछ पल अपने लिए
पर,... वो .. कहाँ पा सका !!
द्वारा : अमित
तिवारी “शून्य”
21.07.2021,
ग्वालियर म. प्र.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें