सोमवार, 5 सितंबर 2022

हां मैं शिक्षक हूं

 हां मैं शिक्षक हूं


स्वरचित मौलिक अतुकान्त कवित


द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर , म प्र

भारत 🙏



किस विधि मिलूं तुम्हें मैं

   शाश्वत नहीं,सत्य नहीं। 


नश्वर हूं तुम्हारी ही तरह

   शिराओं में बह रहा हूं 


ज्ञान बनकर शुभग हूं मैं

  हूं सराहा गया पर दीन हूं


  श्रृष्टि के प्रस्फुटित तेज सा

               रोज के राग का सा


सृजन के साज का सा 

होंसलों में हिमालय सम


डिगा जो तनिक भर नहीं

प्रलय से परे भी टिका रहा जो 


समय के आवेग के वेग को समेटे

रमणीक प्रस्तरों पर काई सा


चरित्र में सफाई सा

हूं मैं सुशिक्षित लेकिन


दमित और शोषित अति

पृथ्वी के प्रदुर्भाव सा 


सत्य का रूप हूं 

हां मैं शिक्षक हूं 


अधर पर वाणी सम

गाया जा पाने वाला


एक जीवन समग्र गीत हूं।

हां मैं शिक्षक हूं,

धधकते समय की 

लावा भावों की भाषा।।



स्वरचित अतुकांत कवित्त

द्वारा अमित तिवारी शून्य

चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...