स्वरचित
अतुकांत कवित्त
द्वारा डॉ अमित
तिवारी ‘शून्य’
ग्वालियर
(म.प्र.)
शीर्षक अगर
खुद से नही हारे
कि आंसमा में करेगें सुराग
अगर खुद से नही हारे।
कि होंगें पूरे तुम्हारे सारे ख्बाव
अगर खुद से नही हारे।
जमाने में, जमाने को
जमा कर देगें; ऐसा हिसाब
न जमीं हारेगें ; न हारेंगे गगन
अगर खुद से नही हारे।
तय करके खुद को बना लेगें
नया असबाब हर हालात
अगर खुद से नही हारे।
तुम्हारे ख्बाब भी पूरा करेगे
अगर समझोगे तुम अपना
और, हॉ अगर खुद से नही हारे
अगर खुद से नही हारे।
करेंगे वार शत्रु पर
बचाएगें अपने मित्रों को
मगर समझे ना कोई जज्बात
वो भी अगर , खुद से नही हारे।
डॉ अमित तिवारी “शून्य”
ग्वालियर , भारत
27.04.2023