“रिश्तों की समझ”
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”
एक अतुकांत कविता
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संबंधों के अपनेपन का नाम है रिश्ता
पर हर रिश्ते के संबंधों के पीछे होता है एक रिश्ता
राज जहाँ छिपते हो वो कैसा रिश्ता
हर संबंधो में प्रगाढ़तम माँ- बेटे का रिश्ता
कुछ सम्बन्ध जन्मजात मिले कहलाया रिश्ता
डोर संबंधों की तोड़े न टूटे वो है रिश्ता
मगर रिश्तों की भी करनी होती है मरम्मत तब चलता है रिश्ता
कशक दिलो में भाव आँख में पढ़ लेता रिश्ता
तंग दिलों के दिल में क्या बना पयोगे खुद का रिश्ता
खुले दिल और विश्वास की धरा पर सच होता रिश्ता
ओस की कोमल बूंदों जैसा नाजुक होता हर रिश्ता
रक्त मेड पय के संबंधो के परे भी बनता है रिश्ता
हाँ समाज यदि नाम न भी दे पर वो है अंतर्मन का रिश्ता
बिछड़ जाने पर किसी सम्बन्ध के भी जीवित रहता है रिश्ता
उमीदों के बागों में खिलकर प्रणय प्रभा से पलता है रिश्ता
जन्मजात या प्रेम के बल से बनता हर रिश्ता
क्षिति से गगन जैसा जो न मिल पाए वो भी तो कुछ गुमनाम सा
रिश्ता
पलकों पर किसी और की वेदना को समझ सके वो है रिश्ता
प्रखर प्रेम और विश्वास त्याग से सधता, चलता हर रिश्ता
प्रेम का जिसमे उपभोग नहीं ,डेह की जिसमे चाह नहीं वो प्रणय
का रिश्ता
दंभ स्वयं के आकर मानवता हित ले लेता वो कैसा रिश्ता
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”
ग्वालियर , मप्र
1 टिप्पणी:
अच्छी रचनाएं
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