‘भूख के मायने’
अतुकान्त कविता
द्वारा अमित
तिवारी ‘शून्य‘
ग्वालियर म0प्र0
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भूख के सामने
सितमगर भी मासूम हो गया,
भूख के मायने
क्या कहें ये बला मूल है,
सारे पापों की
मगर,भूख फिर भूख है,
यूं तो मंगेतर है
ये पेट की,
लेकिन प्रेयसी
रही मन की,
पर दिल क्या करें,
भार्या बनी तन की,
मन भी बेचैन था
तन में थी एक तडप,
सबका अस्तित्व था
‘शून्य’ भूख के बिना,
बह सका ना मगर वो
कुछ ‘रोटी’ बिना,
गहरा देखा तो अजब
थे भूख के मायने,
भूख रोटी की थी
भूख चोटी की थी,
भूख दौलत की थी
भूख काया की थी,
भूख लाशों की थी
पसीना कुचलती सी थी,
भूख महलों में न
थी मगर रोटी बहुत थी,
भूख थी पेट था
हाथ मजबूर थे,
कह सका न मगर
क्योंकि कमजोर थे,
संघर्ष यूं चला
ज़ानिबे़ मौत क्योंकि थे,
कम रहे बहुत जीने
के सिलसिले पर थे,
सब भूख के मायने
कुछ अलग से थे
लेकिन भूख से बन
गए ‘चोर’,
हुआ बहुत शोर
छीने गये कौर,
भूख ना मिटी,
तन मिटा गया दौर,
लुटे आदमी को
किया दुनियां ने गौर,
फिर भी थमा नही
भूख का शोर,
जान पाए जनाब भूख
के मायने
जिन्दगी में बहुत
कुछ बदल देती है
जीने की दौड में
रोज भूख के सामने
मौत बन जिंदगी
ज़मीरे इंसा बदल देती है
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द्वारा अमित
तिवारी ‘शून्य‘
ग्वालियर म0प्र0
दिनांक 07.10.2020
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