गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

‘त्यौहारों में सतर्कता क्योंकि कोरोना अभी समाप्त नही हुआ है -बदलते समय और वैश्विक महामारी का त्यौहारों पर प्रभाव एक सम्यक आंकलन’ आलेख द्वारा अमित तिवारी सहायक प्राध्यापक

 

त्यौहारों में सतर्कता क्योंकि कोरोना अभी समाप्त नही हुआ है

-बदलते समय और वैश्विक महामारी का त्यौहारों पर प्रभाव एक सम्यक आंकलन

 

 

आलेख

द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्राध्यापक

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान ग्वालियर म.प्र.

 

 

युगों की श्रंखला मानव समाज पर बदलाव के नए अवदान देती आई है । समस्त सृष्टि और मानव के सभ्य होने के दौर से ही समाज में आमोद- प्रमोद और उल्लासों की प्रक्रिया शुरू हुई; जिसमें भारतीयता के दर्शन है और जीवन का उल्लास वर्णित किया जाता है लेकिन बदलते दौर और वैश्विक महामारी के दौर में यकीनन त्यौहारों को इस श्रृंखला को परिवर्तित सा कर दिया है I राष्ट्रव्यापी लोकडाउन से , जनमेदनी की स्वास्थ्य रक्षा तो हुई किंतु मानव एक पिजडें में कैद हो गया हो;  ऐसा बीते कई महीनों से भारतीय जनमानस के साथ बहुतायत में रहा है, चैत्र नवरात्र हो, रक्षाबंधन हो, दशहरा हो, या कि ईद का त्यौहार हम सभी ने अपनों से मिलने और उनके साथ त्यौहार मनाने की मिलन सरिता की परंपरा को बदला तो निश्चित ही साथ ही उनके द्वारा अपने त्यौहारो को आडम्बर प्रदर्शन की बजाय शालीनता से मनाया है ; विगत 6 महीने से पूरे देश ने इस महामारी के प्रति एक विशेष सहयोग प्रस्तुत कर घर पर ही रहकर अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों को बंद ररखकर अपने आप को अनेकानेक परिवर्तनों से लेस किया है, यद्यपि यह देश त्यौहारों की विशेष श्रृंखला रखता है। लेकिन व्यापक सामाजिक व राष्ट्रीय हित में लोगों ने अपने सामाजिकता और मेल जोल के आवरण को बहुत हद तक बदला है। यद्यपि अपवाद की स्थिति भी रही है। लेकिन आंकडे बताते है नवरात्र हो , रमजान हो, रक्षाबंधन हो या कि राष्ट्रीय पर्व 15 अगस्त ही क्यों न रहा हो,  चाहे दशहरे जैसे मेलजोल का पर्व हो  जो मेल जोल की प्रक्रिया द्वारा मनाया जाता है ; इसमें भी जन मानस ने घर पर ही रहकर पर्वों की श्रृंखला को मनाया; लेकिन एक ओर देश अनलॉक की प्रक्रिया की तरफ आगे बढ रहा हैं दूसरी ओर बढते कोविड संक्रमितो की संख्या और अर्थव्यवस्था को खोलने का दबाव आदि , क्या देश वासियों को दीवाली जैसे महापर्व पर भी एकांत बाद और सामाजिक दूरी बनाते हुए पर्व को मनाऐगें ?

  यदि नही तो हमें समझने का प्रयास करना पडेगा, कि इस महान देश को जिसमें हम त्यौहारों के इस दौर में संक्रमण एक ऐसे स्तर पर पहुच जाएगा जिससे हम स्वयं व अपने परिवार को संकट में डाल सकते है। वायरस का ना तो कोई धर्म होता है ना जात और ना ही उसके द्वारा त्यौहारो के दौर में उसने खुद शिथिल होने का भीष्म-वचन ही दिया है; अतः इस समय में हमे अधिक सतर्क रहना होगा ताकि कोरोना के प्रभाव को समाप्त किया जा सके। बेहतर है त्यौहार तो मनाएं और ज्यादा एकात्मकता से मनाएं लेकिन सुनिश्चित करे । मेल जोल को अधिकतम सामाजिक दूरी के दायरे में रखकर ;इलेक्ट्रोनिक माध्यम से मिलकर करे ताकि वैश्विक महामारी के दौर में हम स्वयं व अपने व अपने परविार को बचाते हुए; संक्रमण के दौर से बच सके।

यह नितांत आवश्यक है कि एक समझदी पूर्ण रवैया अपनाते हुए क्रमशः खुद बचे और दूसरों को भी संक्रमण से बचावें , राष्ट्र के हित में हमारा यह कृत्य यानि ‘‘त्यौहारों में अधिक सतर्कता वरतें क्योंकि कोरोना अभी समाप्त नही हुआ है।’’ को  इस विशष्ट व आवश्यक सूत्र के तौर पर अपनाएं व समग्र राष्ट्र के प्रति एक समायोजित उत्सव परंपरा को निभाएं।

 

द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्राध्यापक

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान ग्वालियर म.प्र.

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चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...