इच्छा/कामना/आकांक्षा
स्वरचित अतुकांत
कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’
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इच्छाओं को क्यों
मांरू,
पर इनको मार रहा
हॅू मैं,
जीवन को एक दिशा में
बिना कामना खींच रहा हॅू,
रचना अधूरी राग
अधूरे,
जीवन के अभी कई
काज अधूरे,
ढूढ रहा हूँ वो पल
जो हों मेरे,
मुझे मुझी से
परिपूर्ण करें,
लेकिन आकांक्षाओं
का तरूवर ,
मुझ में नए
अतिरेक गढे,
विषयों की काली
स्याही में,
साहित्य मुझे नही
रचना,
चाह रहा हूँ मै
जीवन को एक भाव भरूं,
ज्यादा नही तो एक
सृजन का दिव्य मोती गढ़ूं,
लेकिन खुद से
खुदी का कहाँ
समय दे पाया हॅू,
इच्छाओं को क्यों
मारूं,
पर इनको मार रहा हॅू
मैं!
द्वारा अमित
तिवारी ‘शून्य’ 31.08.2020