सोमवार, 31 अगस्त 2020

इच्छा /कामना /आकांक्षा स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी 'शून्य'

 

इच्छा/कामना/आकांक्षा

स्वरचित अतुकांत कविता  द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

===========================================================

इच्छाओं को क्यों मांरू,

पर इनको मार रहा हॅू मैं,

जीवन को एक दिशा में बिना कामना खींच रहा हॅू,

रचना अधूरी राग अधूरे,

जीवन के अभी कई काज अधूरे,

ढूढ रहा हूँ वो पल जो हों मेरे,

मुझे मुझी से परिपूर्ण करें,

लेकिन आकांक्षाओं का तरूवर ,

मुझ में नए अतिरेक गढे,

विषयों की काली स्याही में,

साहित्य मुझे नही रचना,

चाह रहा हूँ मै जीवन को एक भाव भरूं,

ज्यादा नही तो एक सृजन का दिव्य मोती गढ़ूं,

लेकिन खुद से खुदी का कहाँ

समय दे पाया हॅू,

इच्छाओं को क्यों मारूं,

पर इनको मार रहा हॅू मैं!

द्वारा अमित तिवारी शून्य’ 31.08.2020

रविवार, 30 अगस्त 2020

बारिश भीगते हुए : एक चित्र लेखन (स्वरचित -अतुकांत कवित्त ) द्वारा अमित तिवारी 'शून्य'

 

चित्रलेखन (स्वरचित अतुकांत –कवित्त )

द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

=================================

मिलन के स्पर्श से हुयी बारिश

या बारिश में हुआ मिलना

वहां घनघोर बरसी वो

यहाँ निर्झर- चक्षु जैसे कि हों  झरना   

फिज़ाओ में वो रंगत घुल गयी थी आज कुछ ऐसे

तू मुझसे मिल गयी जैसे नदी मिलती हो सागर से

 

प्रिये क्यों हम करें अपने प्रणय को यूँ ही जगजाहिर

तुझे मेरी समझ है  और मैं तुझको समझता हूँ

 

चलो बारिश की बूंदों में बहा दे प्रेम के अश्रु

की तुझ बिन मैं नहीं हूँ मैं और मुझ बिन तू नहीं है तू 

 

शून्य तो शून्य होता है , प्रिये लेकिन

जो तेरे तन –मन से जुड़ पाया तो प्रणय का ज्वार हो जाऊ

 

द्वारा – अमित तिवारी ‘शून्य‘ 30.08.2020

शनिवार, 29 अगस्त 2020

शब्द की अभिलाषा एक भाव गीत द्वारा अमित तिवारी

शब्द की अभिलाषा

स्वरचित भाव गीत 

द्वारा अमित तिवारी 'शून्य'

==============================================================



एक शब्द तुम्हें कहकर मैं  मन के भाव बताता हूं


एक गीत मन के ख्वाबों का मैं तुम्हें सुनाता हूं....


 नहीं जानता हूं तुम तक कितना पहुंच पाता हूं


     गौरव की गाथा तो शब्दों से गाई जाती है ....

                  लेकिन मैं शब्दों को गीतों  में, कहां पिरो पाता हूं?


एक गीत मन के ख्वाबों का मैं तुम्हें सुनाता हूं.....


                    मैं तो था शब्दों का  घायल 

                              शब्दों पर ही वारा जाता हूं


                          की होगी तुमने घोर तपस्या शब्दों को पाने को...

                                            मैं तो तुमको पाकर ही पूरा सा हो जाता हूं


                                         नाहक यू शब्दों को गढ़ने  का मुझे  प्रतिमान न दो,

                                                   मैं तो बस यूं ही शब्दों में अर्थों को जोड़े जाता हूं 


एक शब्द तुम्हें कहकर मैं  मन के भाव बताता हूं


द्वारा अमित तिवारी शून्य

29.08.2020

शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

बारिश, बच्चे और कागज़ की नौका यानि निर्लिप्त बचपन : एक चित्र लेखन स्वरचित :द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

 

बारिश, बच्चे और कागज़ की नौका यानि निर्लिप्त बचपन : एक चित्र लेखन

 स्वरचित :द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

======================================================

बरखा को बुलाकर,

बच्चों को सिखाकर,

नाव कागज़ की बनाकर,

गम के जीवन को भुलाकर,

नेह का दर्पण जगाकर,

आओ प्यारा बचपन जियें,

अटखेलिया करें,

नावों के जीवन का भाव भरें,

आगे चलें फिर पीछे मुड़ें ,

न डर हो न दुरी हो,

 

आओ फिर से प्यारा बचपन जियें      

चुगली के रंग -उमंग व उत्साह भरे स्वरचित अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी 'शून्य '

 

उत्साह /उमंग –(चुगली के रंग )

स्वरचित अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

==========================================

मन में भर उमंगें,

और हो कर उत्साहित,

आओ री सखी चुगली करें,

भाव – व्यंजना निज मन दर्पण में धरें,

वैसा ही चित्र प्रदर्शित करें,

जैसा भाव औरों का निज मन में स्रजें,

 

चाल पर उमंग भरी चुगली;

गाल पर अंग भरी चुगली,

बाल , हाल , सवाल सब पर चटपटी सी चुगली

का अंतरा भरें

प्यारे निज विषयों पर मय उमंग,

काले तारताम्यों को मय चटकीले रंग,

श्वेत को काला करें,

काले को निराला करें,

साले का मसाला करें ,

 

प्रेम के पुट घ्रणा की उमंग लगा ,

कर चरित्रों को ओछा,

लगा कर उन पर निंदा का पोंछा,

खीच लें उत्साही बेला का अंगोछा,

 

उत्साह से निज मन का भार तरें,

औरों की तल्खियो में तंज का भाव भरें,

व्यंजना की निज शब्दों से रंजना करें,

आओ सखी उमंग व उत्साह से चुगली करें    

 

स्वरचित अतुकांत रचना

द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’; 28.08.2020 

   

गुरुवार, 27 अगस्त 2020

एक संस्मरण - "जीवन पटल से -बड़ो की सीख " द्वारा अमित तिवारी 'शून्य'

 

‘‘बडों की सीख"

संस्मरण स्वरचित

द्वारा अमित तिवारी शून्य

 

उम्र के छोटे से दौर में आफिस और घर गृहस्थी के दायरे से निकल कर, रविवारीय फुर्सत के क्षणों में चाय के प्याले के साथ एकांत में बैठा। तो, याद आया कि जीवन का एक छोटा सा कोना, उम्र का बचपन का पडाव, गर्मियों की छुट्टियों में ननिहाल का प्यारा सा गांव था और बेहद गर्म मौसम में भी छुट्टियों का सौभाग्य और नाना का घर। अगर मन में आज और उस पल की तुलना करूं तो ज्ञात होता है कि जीवन में आज सफलता और व्यस्तता तो है; लेकिन खुद से खुद की भेंट का गुणवत्ता समय नही है। वो मस्ती नही है, वो अल्लहडपन नही है, दिमागी फितूर तो है लेकिन सुकून नही हैं ; जो बचपन में था। खैर  मैं जिस परिद्रश्य  की बात कर रहा हूँ, उसका संस्मरण ननिहाल की बचपन की वो सुकून भरी यात्रा थी। जो शायद आदरणीय नानाजी (अब स्वर्गीय) की मुझे दी गई एक बेहद खास सीख थी । जिसे मैने उनके सानिध्य में पाया; यद्यपि वो कोई प्रवचन नही था न कोई दृष्टान्त न ही कोई शपथ थी जब ननिहाल में कुछ दिन बिताये तो एक बच्चे के तौर पर उनकी दिनचर्या का साथी बना और यकीनन उन दिनों गांव में (नाना के गांव में) सभी बच्चों में, मैं अकेला उनकी दिनचर्या में सुबह और शाम उनके साथ रहा करता था मुझे याद है स्नान के बाद, वे मेरी माता जी को मुझे सुबह शीघ्र नहलाने की बात कहते और बाद में तो पूरे ननिहाल प्रवास के दौरान नहा धोकर उनके साथ गांव के छोटे मन्दिर (हुनमान व शिव); जो उनके घर से शायद 500 मीटर की परिधि में रहा होगा। मुझे नही मालूम कि क्यों वो, नित्य सुबह-शाम, सभी बच्चों में से केवल मुझे ही अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाए हुए थे। यकीनन मुझे भी याद है केवल प्रसाद का लालच मुझे उस दिनचर्या में लगभग दो किमी. (का आना जाना) के लिए बाध्य नही कर सकता था। शायद उनका व्यक्तित्व का मेरे व्यक्तित्व से कोई तार जुडा था। उस उम्र में भी यकीनन उनसे पूजा पद्धति सीखना, आचमन करना, ध्यान लगाना, पाठ करना सीखना आदि मुझे बहुत रूचिकर लगता था और मुझे इस बात का शत-प्रतिशत स्मरण है कि वे मुझे बताते (सिखाते) थे कि उपासना में निरंतरता बहुत जरूरी है उसमें स्वयं को समर्पण करना भी बहुत जरूरी है...मुझे याद है गांव के उनके घर से पगडंडीनुमा, धूल भरे रास्तों पर होते हुए मंदिर तक जाना जिसमें उनका नंगे पैर होना लेकिन मुझे उनके द्वारा चप्पल (पादुका) पहनने का कठोर आदेश रहता था। सबसे अच्छा लम्हा घर से ले जाइ गई पीतल की बाल्टी और ताम्बे के लोटे को मंदिर की कुइया से लेज (रस्सी) के द्वारा पानी भरने के लिए उनके द्वारा कुइया में डालना, धडाम की आवाज से बाल्टी का पानी में गिरना और फिर भारी होकर बाल्टी का धीरे-धीरे उनके द्वारा ऊपर खीचा जाना, लेकिन मुझे कुइया की सीढी पर न चढने देने का सख्त आदेश  आज भी याद है। पानी की ठण्डी धारा से उनका मेरे हाथों और मुंह को धो लेने का आग्रह, पानी की ठण्डक के जैसा ही ठण्डा लगता था। और सबसे आकर्षक बात मंदिर की सीढियों पर चढकर मंदिर में प्रवेश करना। वो सीख, वो एकान्त, वो दिव्य शान्ति और वो परिद्रश्य मानो आज भी मुझे एक आध्यात्मिक सीख देता हो। यही नहीं मंदिर और घर के बीच आने जाने वाले यात्रा पथ की वो मोहक चर्चा आज भी स्मृति पटल पर उनकी सीख के तौर पर उजागर है। वैसे आज मैं, पर्यटन व यात्रा विषय का विषेषज्ञ हो; देश के प्रतिष्ठित पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान, भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान ग्वालियर में सहायक आचार्य के पद पर हूँ । जैसे हम (मैं) एक पर्यटन विद होने के नाते; यात्रा और पर्यटन का अकादमिक विष्लेषण व परिभाषण विभिन्न उद्देश्यों के माध्यम से करते हैं और यात्रा व पर्यटन की विभिन्न (अकादमिक) अवधारणाएं बनाते हैं, वैसे ही संयोग से बचपन में नाना जी  के साथ मंदिर और घर के बीच की सुबह-शाम की आने जाने का यात्रा पथ और वो चर्चा पर्यटन और यात्रा को समझने के प्रति भगवान् की एक उनके द्वारा पूर्व निर्धारित सीख ही थी कि आज मैं देश में पर्यटन प्रबंधन शिक्षा के अनेकानेक मानदंड गढ रहा हॅू।

प्रभु की बडों के माध्यम से अगली पीढी को गुणवत्ता परक सीख बहुत गहरी होती है। वे (नानाश्री) मेरी स्मृतियों में शेष हैं और मुझे नितान्त संयोग-वश सीख देते रहते हैं।

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

दिनांक 27.08.2020

खेल निराला ;गुल्ली डंडा एक चित्र लेखन द्वारा अमित तिवारी "शून्य"

 

खेल अनोखा,

मेल अनोखा,

बचपन का वो गिल्ली डण्डा,

हमने मारा, उसने ताडा,

हम भी भागे, वो भी भागा,

अब्दुल आया, गोपाल भी आया,

भेद किसी ने न किसी में पाया,

धूल में खेले, धूम से खेले,

कोई बिना पतलून में खेले,

खेल निराला सबका प्यारा,

मैं गुल्ली मारूं तू डण्डा नापे,

खेल हमारा, खेल तुम्हारा,

खेल अनोखा,

मेल अनोखा,

बचपन का वो गिल्ली डण्डा।

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

दिनांक 27.08.2020

बुधवार, 26 अगस्त 2020

तनय /सुत द्वारा अमित तिवारी "शून्य''

 

तनय/ सुत

अतुकांत  स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’  

=========================================================

 

फैला था नीर क्षीर विकट भू धरा पर,

ढूढते हुए पृथ्वी के तनय मानव को ,

सोचा गया था होगा आज्ञाकारी सुत,

विकराल रूप जब धरा, तब धरा को हिला दिया,

खुद की हस्ती के लिए माँ के आशीष को मिटा दिया,

तनय विनय को छोड कर यूं पातकी हो गया,

सृष्टा की सृष्टि को अपनी कुदृष्टि से मिटा दिया,

हाय तनय तूने तो गजब ही ढा दिया,

जंगल काटे, नदियां लूटी यूँ सत्ता किया पर अधिकार,

ऐसा पा तनय, धरा अवनी तक करती खुद को धिक्कार,

आज समय आया है जब उद्दण्ड को दण्ड दिया जाएगा,

माँ होकर भी फाड कलेजा , इस निज सुत का तर्पण किया जाएगा

 

स्वरचित

द्वारा अमित तिवारी ‘शुन्य’

28.08.2020

मंगलवार, 25 अगस्त 2020

अपनी पहचान ; एक लघु कथा द्वारा - अमित तिवारी 'शुन्य'

 

पहचान: एक लघु कथा

---------------------------------------------------------------

द्वारा  अमित तिवारी  शून्य’

====================================================

बारहवी के बाद आलोक को अपनी पहचान एक इंजीनियर के तौर पर बनाने की इच्छा शायद इतनी तीव्र थी कि वो बारहवी के इम्तिहान के साथ -साथ आई आई टी की तैयारी चुपचाप करता रहा और काम्प्टीशन के तगडे दौर में बिना किसी कोचिंग आदि के भी आई आई टी में एडमिशन का मन बनाया हालाकि यह यात्रा आसान नही थी इस दुनियां में हमेशा की तरह लोग उसका मनोबल गिराने और उसे यह कहकर, ‘कि पहले बारहवी तो पास कर लो.... इंजीनियर तो बनते रहोगे’ से पीछे नही हटे लेकिन आलोक भी मन का पक्का सबकी बातें मानो उसने सुनी ही हो और अपने ध्येय पर अडिग बना लड़ता रहा वो अपने आप से अपने प्रिय विषयों गणित,रसायन और भौतिक शास्त्र के अनसुलझे पहलुओं को सुलझाने में, चूंकि उसमे उसका एक मानसिक सुख था। शायद वो इंजीनियर बनने के लिए ही पैदा हुआ था। जुलाई का महीना निकला ही था, 13 तारीख थी और बारहवी के इम्तिहान के परिणाम आने थे सुबह कोई 10 बजे होगे बाबूजी हाथ मे जलेबी का थैला लिए अखबार थामे घिघियाते से चीखते चले रहे थे मानो उनकी ख़ुशी  का कोई पारावार हो पता चला आलोक बारहवी में प्रथम श्रेणी में  पास हुआ है और अखबार के पहले पन्ने पर उसके बोर्ड टॉप करने का सन्देश  भी छपा है। सुनकर माताजी (दयावती) की आखे छलछला आईं लेकिन आलोक को कोई बडी ख़ुशी मिली हो जैसे उसे तो 22 जुलाई का इंतजार था। अगला हफ्ता भी जल्द बीत गया। 21 जुलाई की रात को बाबूजी के सिरहाने आकर आलोक बोला बाबूजी; ‘‘अगर हमार सिलेक्सन होई जाए  तो तोकर पास फीस खातिर पैसा तो होंही न ’’ बाबूजी ने आलोक की आंखों मे देखकर बस आशा भरी निगाहों से हामी भर दी रात भर दोनों बाप बेटे मानो सुबह का इंतजार कर रहे हों। सुबह के 10 बजे थे कि घर का टेलीफोन बजा बाबूजी फोन उठा कर सामने की आवाज को बडी गहराई से सुन रहे थे जाने उस आवाज ने क्या कह डाला हो कि शर्मा जी (बाबूजी) आंखों से आंसू बह चले घिघियाती आवाज में आंसुओं और ख़ुशी के साथ आलोक को बुलाया और कहा किबिटुवा मो का दो दिन दै दे तौहार फीस जमा करे खातिर !‘ आलोक ये शब्द सुनकर बहुत खुश मगर रुंआ सा हो गया, सारे शहर में आलोक की अब एक नई पहचान बन गई थीपहचान इंजीनियर बनने की।

 द्वाराअमित तिवारी शून्य

दिनांक - 25 अगस्त 2020

चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...