चित्रलेखन
(स्वरचित अतुकांत –कवित्त )
द्वारा
अमित तिवारी ‘शून्य’
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मिलन के
स्पर्श से हुयी बारिश
या बारिश
में हुआ मिलना
वहां
घनघोर बरसी वो
यहाँ
निर्झर- चक्षु जैसे कि हों झरना
फिज़ाओ में
वो रंगत घुल गयी थी आज कुछ ऐसे
तू मुझसे
मिल गयी जैसे नदी मिलती हो सागर से
प्रिये
क्यों हम करें अपने प्रणय को यूँ ही जगजाहिर
तुझे मेरी
समझ है और मैं तुझको समझता हूँ
चलो बारिश
की बूंदों में बहा दे प्रेम के अश्रु
की तुझ
बिन मैं नहीं हूँ मैं और मुझ बिन तू नहीं है तू
शून्य तो शून्य
होता है , प्रिये लेकिन
जो तेरे
तन –मन से जुड़ पाया तो प्रणय का ज्वार हो जाऊ
द्वारा –
अमित तिवारी ‘शून्य‘ 30.08.2020
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