मंगलवार, 31 अगस्त 2021

लघु कथा : राह स्वरचित (मौलिक ) द्वारा अमित तिवारी “ शून्य” ग्वालियर म.प्र.

 

लघु कथा : राह

स्वरचित (मौलिक )

द्वारा अमित तिवारी “ शून्य”

ग्वालियर म.प्र.

31.08.2021

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आज सुबह से ही मानसी बहुत जल्दबाजी में अपने रूटीन से अलग कुछ बदली हुई सी प्रतीत हो रही थी | जीवन में नाकामियों की राह के लिए उत्तरदायी उसकी आदतों को उसने सुबह की नयी किरणों के साथ ही जैसे बदल लिया था  | हाँ; चेहरे के भाव जो कभी बहुत कैजुअल और मोहब्बत के मंसूबों के इर्द -गिर्द रहा करते थे ; आज जैसे विशाल के सच और उसे लेकर उसकी  राय के साथ ही काफूर हो गए | जो बीती रात में विशाल के हॉस्टल गेट पर उससे मिलते जाते पता चली ; जहाँ विशाल नशे के हाल में विडियो कॉल पर नेहा के साथ बात कर रहा था और  कॉल ख़त्म होते ही और पास ही में खड़े उसके रूम मेट अजय ने  उसे समझाया “अरे विशाल यह सब क्या है ;फिर मानसी को क्यों तुम....” तभी विशाल ने बड़ी मादक आवाज़ में अजय से कहा यार तुम क्या जानो यह लड़कियां सीधी- सच्ची राह छोड़ कर मेरे जैसे लड़के को क्यों पसंद करती हैं ? ...अरे करती हैं तो करें मेरा क्या ? मैं तो इस राह पर चल कर जिन्दगी की मौज ले रहा हूँ ...मेरे भाई और रही बात नेहा की या मानसी की तो यह तो अभी नयी हैं | अपुन का याराना तो बहुत पुराना है और अपना फंडा बहुत क्लियर है की जो अपुन को चाहिए वो अपुन करेंगे ...” इतना सुनते ही मानसी ने बीच में टोकते हुए कहा तो अब मैं तुम्हारे बारे में क्या सोचूं ? हतप्रभ रहे विशाल ने थोडा सकपकाते हुए ....तू... मेरे बारे जो भी सोचे मैं तो बस यही सोचता हूँ जो अपुन को मौज दे वही मेरी राह है ,बाकी तुझ जैसी लड़कियों को विशाल घास भी नहीं डालता ! इतना सुनकर रुआंसी हुई मानसी अपने हॉस्टल की तरफ तेजी से बढती चली गई और अपनी विंग और कमरे में पहुँच कर जल्द ही अपना कमरा बंद कर घंटों रोती रही  | आधी रात तक रोते हुए भी उसे नींद नहीं आई  ,तभी  देर रात को उसने अपनी रूम मेट रुमा जो बगल वाली बालकनी में टेबल लैंप की रौशनी में पढ़ रही थी ; को रुंधे स्वर में आवाज़ लगाई | रुमा कमरे में आ गई और मानसी की सारी बात सुनी और बड़ी तसल्ली से मानसी से बोलीं कि मानसी भला हुआ तुम यह बात जान गई | वैसे इस सबमें मुझे विशाल के बारे कोई बात नहीं कहनी है ...न मैं उसे जानती हूँ न जानना चाहती हूँ....लेकिन मैं बस इतना समझती हूँ और तुम्हे भी एक दोस्त के नाते समझाना चाहती हूँ कि “ बीता समय वापस नहीं आता...जब हम लोग घर से इस शहर की राह पर निकले थे .. तो वो राह हमारे माँ बाप ने हमे हमारे सपने सच करने के लिए दिखाई थी ...और हमसे उम्मीद भी  की थी की हम अपने सपनो की राह पर ही चलेंगे ...लेकिन अगर हम अपने सपनो की राह को इस तरह सिर्फ थोड़ी सी  आज़ादी के लिए बदलेंगे तो यकीनन ....विशाल ही  क्या, कोई भी सख्श ही  क्या हम ही हमे हमारे सपनो की राह से दूर चले जायेंगे|  जिनको हांसिल करने के लिए मैं और तुम इतनी तुम इतनी दूर इस शहर में आये हैं | मुझे तुम्हारी निजी जिन्दगी से कुछ भी लेना देना  नहीं है | लेकिन एक सच यह भी है की विशाल को तो उसकी राह शायद पता है; लेकिन तुम जैसी हजारों लड़कियों को शायद अपनी राह ही नहीं मालूम , खेर अब भी देर नहीं हुई है अपनी जिन्दगी में राहों को बदल कर उन्हीं राहों पर चलो जिस पर चलकर तुमने तुम्हारे सपने बुने थे | अपना चेहरा धो लो ;रात बहुत हो गई है अब सो जाओ मैं अपना पेपर पूरा करना चाहती हूँ |” इतना कह कर रुमा वापस बालकनी में चली गई और अपनी पढाई में लग गई | रुमा की बात सुनकर मानसी को एहसास हुआ की उससे क्या छूटा और उसे कैसे वापस अपने सपनो की राह को वापस पकड़ना होगा | रात ज्यादा हो गई थी दिल में खुद को लेकर बहुत सारी ग्लानि के साथ चेहरा धोकर बत्ती बन्द् करके एक नयी सुबह और नयी राह की तलाश में वो सो गई ;एक सही और नई राह  तक पहुँचने के लिए |  

 

सोमवार, 30 अगस्त 2021

कृष्ण सत्य हैं स्वरचित मौलिक अतुकांत कवित्त द्वारा अमित तिवारी “शून्य” ग्वालियर , म.प्र

 

कृष्ण सत्य हैं

स्वरचित मौलिक अतुकांत कवित्त

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म.प्र.

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कृष्ण सत्य का रूप हैं

ज्ञान की धूप हैं

प्रेम का राग हैं

धरम का मर्म हैं

मोक्ष का द्वार हैं

गीता में काव्य हैं

ईश् में इंद्र हैं

प्रेम का केंद्र हैं

धर्म का मूल हैं

गौवंश ग्वाल हैं

रक्त में लाल हैं

द्रौपदी चीर हैं

कृष्ण युगवीर हैं

 

कृष्ण सारथ्य रूपपथ प्रदर्शक भी है

सत्य का रूप युगदृष्टा भी हैं

कृष्ण रुक्मणि भाल हैं

वो सुदामा सहोदर सखा राम रूप हैं

वे मुझ में भी हैं

और तुझमें भी हैं

वो मंदिर में भी हैं

और हरेक दिल में भी हैं

गोपिका के लिए

वो मधुवन में हैं

वे अर्जुन सखा

युग समन्वयक भी हैं

भारतवर्ष की राजनीती का धुरंधर भी हैं

परन्तप का विश्वास और उनका नेह हैं

वे सरल हैं कभी

और कभी गरल भी तो हैं

वो जटिल कंस से

चाणूरमर्दन भी हैं

 

क्यूँ ना कह दे कृष्ण सत्य हैं  जगद्गुरु हैं

हां कृष्ण सत्य का रूप हैं

हाँ कृष्ण सत्य का रूप हैं ||

स्वरचित मौलिक अतुकांत कवित्त

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म.प्र.

 

रविवार, 29 अगस्त 2021

युग्म शब्द आधारित काव्य रचना “जाना- पहचाना” द्वारा अमित तिवारी “शून्य” अतुकांत कविता

 

युग्म शब्द आधारित

काव्य रचना

“जाना- पहचाना”

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

अतुकांत कविता

 

कौन नहीं जानता उनको

वो कान्हा सबका जाना – पहचाना,

बना सारथी धर्म युद्ध में

परन्तप को मिला ज्ञान अनजाना,

मन को भाता प्रेम उसी का

कहलाता सबका ईश् वो जाना -पहचाना,

दिव्य दृष्टि देकर जिसने

दिखा दिया निजरूप विराट

पर था जग ने उसको कब जाना ,

स्रष्टि को दृष्टि दे डाली

दिया प्रेम , कर्म का ज्ञान जाना -पहचाना,

आज तुम्हारे दर्शन को तरसें

नर नारी पर कृष्ण तो सबका जाना -पहचाना,

खोलें अन्तर्मन  की आँख

पाएं निज मन में कान्हा जाना -पहचाना ||

 

  

 

मंगलवार, 24 अगस्त 2021

लघु कथा : विश्वास स्वरचित लघुकथा (मौलिक) द्वारा अमित तिवारी “शून्य

 

 

लघु कथा : विश्वास

स्वरचित लघुकथा (मौलिक)

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म.प्र.

 

आज अनिल कई सालों की मेहनत के बाद अपनी पीएचडी थीसिस और रिसर्च पेपर को कम्पलीट करने जा रहा था | अनिल आज कई सालों में पहली बार बहुत खुश दिखाई दिया था | उसने मानो कलम, किताब, जर्नल , लैपटॉप या कि पुरानी थीसिस के अलावा कुछ और दीखता भी कहाँ था  ! यहां तक कि वह अपने आप को भी भूल सा ही  गया था |  इस रिसर्च और उस पर आधारित शोध पत्र को भी रेपुटेड जर्नल में छपवाने का पड़ाव भी मानो उसने प्राप्त कर ही लिया हो जैसे; अज वो अपने रिसर्च  वर्क को लेकर अपना काम पूरा कर चुका था | इधर रिसर्च ही  जैसे उसके लिए जीवन का दूसरा पर्याय नाम बन गई हो जैसे ! लेकिन आज उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था | बड़ी श्रद्धा और खुशी से उसने अपने पीएचडी गाइड सर को फोन लगाया | वह उम्मीद तो यही कर रहा था की गाइड साहब उसका फोन नहीं उठाएंगे लेकिन वर्मा सर ने दूसरी घंटी पर ही फोन उठा लिया | चहकती आवाज़ में अनिल ने अपनी थीसिस और रिसर्च पेपर पूरी हो जाने की खुश ख़बर, औपचारिक चर्चा उपरांत प्राथमिकता पर की ; वर्मा  सर का रिस्पांस भी ठीक- ठीक ही लगा |  उन्होंने अपने स्कॉलर यानी अनिल को रिसर्च पेपर उन्हें ईमेल पर भेजने को कहा | अनिल ने सर के विश्वास में पेपर उनकी प्रतिक्रिया के लिए ईमेल से  भेज दिया | समय बीतता गया कुछ महीने बाद अपनी थीसिस जमा करने की औपचारिकता में सेंट्रल लाइब्रेरी में बैठा कुछ शोध पत्रिकाएँ पलट ही  रहा था | तभी अचानक उसकी नजर इंडेक्स को पलटते हुए उसी टाइटल के पूरे शोधपत्र पर पड़ी जो मूलतः अनिल ने लिखा था, जिसे राय मशविरे के लिए उसने वर्मा साब को दिया था ; जिसके ओथर के तौर वहां वर्मा  सर और उनकी बेटी ज्योति का था | यह देख कर वह मन ही मन उसके साथ हुए अविश्वास की घोर चिंता में डूब गया | आज उसका विश्वास गुरु- शिष्य परंपरा से हमेशा के लिए हट गया उसका विश्वास आज हताहत हो गया |

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म.प्र.

24.08.2021

गुरुवार, 19 अगस्त 2021

“धर्म और अध्यात्म में अंतर” स्वतंत्र आलेख द्वारा अमित तिवारी , सहायक प्राध्यापक भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्धन संस्थान, ग्वालियर म.प्र.

“धर्म और अध्यात्म में अंतर”

स्वतंत्र आलेख द्वारा अमित तिवारी , सहायक प्राध्यापक

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्धन संस्थान, ग्वालियर म.प्र.

(केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय का एक संगठन )

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यूँ तो सामान्यता धर्म को संस्कृत  शब्द ‘ धारयति’ इति धर्म  अर्थात, मानवीय संसर्गों में धारण करने हेतु जो उसका उद्दात्त कर्म क्षेपण है ; जिसे उसके द्वारा बिभिन्न परिस्तिथियों , बिभिन्न प्रक्रियाओं और भावनात्मक आवेग से गुजरते हुए भी धारण करना होता है ;और यथार्थ में यही धारेय ‘धर्म; व्यक्ति की रक्षा विभिन्न पारिस्थितिक संसर्गों में करता ही है | इसे धर्मो रक्षति रक्षित के सन्दर्भों का सूत्र ही समझा जाना चाहिए |  यथा उदहारण स्वरुप एक ही कुल की दो पुत्र वधुएँ -सीता व उर्मिला का एक ही परिस्थिति में धर्म परस्पर अलग और विरोधी था ; किन्तु अपनी जगह स्थिर और स्पष्ट ही  | वही धर्म को कदाचित  पंथ के या इश्वर उपासना के संसर्ग भर में देखना मात्र एकाकी या उसका संकुचित सन्दर्भ है | यद्यपि इस चेष्टा से धर्म के वायवीय सिद्धांतों में मानव मात्र ही की बात करके मुझे प्राणी जगत के धर्म की परिणिति को न गिन पाने का दोष न देवें , वो तो स्वाभाविक संसर्ग होना ही है |

वही मानवीय सन्दर्भों में आध्यात्म का कदाचित व्यापक और अत्यंत स्वीकार्य स्वरुप आत्म अध्ययन अथवा बोध के प्रक्रम से होता है | विषद विश्व में जरा, जन्म और जीविका क्रम के चिंताग्रस्त मकड़ जाल में पड़ा मनुष्य स्वयं की मुक्ति और ईश्वरत्व को निज में प्राप्त कर पा लेने का धेय्य जिस गहन आतंरिक चेतना जुडाव प्रक्रिया द्वारा करता है ; उसे गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्पष्ट रूप से अध्यात्म या की राम से जुडाव संभाव्यता या अपने रचनात्मकता के शब्दों में कहूँ तो संभव है राम मिलें की आतंरिक यात्रा जैसा है |

          यहाँ स्पष्ट करना ही होगा की धर्म का मूल ही अध्यात्म की प्राप्ति या परिणति को तय करने की प्रक्रिया है और जिन्हें  आध्यात्मिक बल मिला वो धर्म को निरापद रूप में प्रति स्थापित करके नया बीज दे गए | यद्यपि धर्म  का ध्येय और आध्यात्म का प्रतिफल ही व्यक्ति का सही मायने में कल्याण है |

 


सोमवार, 16 अगस्त 2021

सब नैसर्गिक है स्वरचित मौलिक अतुकांत कवित्त द्वारा : अमित तिवारी “शून्य”

 

सब नैसर्गिक है

स्वरचित मौलिक

अतुकांत कवित्त

द्वारा : अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म.प्र. 16.08.2021

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पत्तियां फूल और लताएं

सब हैं नैसर्गिक

 

पेड़ वन्यजीव और हवा भी

सब हैं नैसर्गिक

 

नदियों का जल सागर अमर भी

सब हैं नैसर्गिक

 

सूरज व चंदा उगता और डूबता है

सब हैं नैसर्गिक

 

 

दिवा और निशा आया जाया करें

सब हैं नैसर्गिक

 

कोपलें हरि दूर्वा पर ओस

सब हैं नैसर्गिक

 

कल-कल सा जल ठंडी वो बयार

सब हैं नैसर्गिक

 

फलते पलते से वृक्ष और जीव

सब हैं नैसर्गिक

 

ये वसुंधरा मातृशक्ति प्रिया

सब हैं नैसर्गिक

 

किंतु छदम अहंकार से छला

सबको जिसने वो मनुष्य

 

क्यों करता गया प्रकृति के खिलाफ कृत्य

अप्राकृतिक और अक्षम्य से

 

द्वारा : अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म.प्र. 16.08.2021

 

शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

चित्र आधारित स्वरचित मौलिक कवित्त (अतुकांत ) द्वारा : अमित तिवारी “शुन्य” ग्वालियर , म.प्र.

 

चित्र आधारित

स्वरचित मौलिक कवित्त (अतुकांत )

द्वारा : अमित तिवारी “शुन्य”

ग्वालियर , म.प्र.

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आज जो देखा मैंने, मेरी गुडिया को

बिटिया को खेलते उसकी गुडिया से

उसको हुआ एहसास की जीवन गुड़ियों

का है संसार, और मुझे की वो तो मेरी गुडिया है

पर जब झांक के देखा उसकी गुडिया का घर

पाया उसके अन्तेर्मन में ममत्व का कुछ भाव

रखा उसने अपनी गुडियों का नाम पिंकी पारो

और अलबेले चुलबुले से अंग्रेजी के कुछ नाम

जानता हूँ की दौर नहीं अब शेष बचाया हमने

बत्तोबाई की गुड़ियों का, तो अब मेरी गुडिया

खेले बार्बी के साथ पर आज भी रहती वो

भारत की ही गुडिया रखती निजता में भी

भारत की लाज

 

द्वारा : अमित तिवारी “शुन्य”

ग्वालियर , म.प्र.

 

गुरुवार, 12 अगस्त 2021

" एकांत और एकाकीपन का अंतर” आलेख : द्वारा अमित तिवारी सहायक प्राध्यापक भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान ग्वालियर

 

“एकांत और एकाकीपन का अंतर”

आलेख :द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्राध्यापक

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान ग्वालियर

 

जीवन संदर्भ में यूं तो हर समय मनुष्य अकेला होता है; किंतु नैसर्गिक और मनोवैज्ञानिक सत्य यह भी है कि अकेला होकर भी मनुष्य कोई अत्यंत आवश्यक रूप से एक ऐसी समष्टि की आवश्यकता होती है जिसमें व्यक्ति अपने उत्थान और सामाजिकता के नए वितानों को गढ़ता है इन सरोकारों को रखते हुए अपने जीवन को सार्थक व संपन्न बना लेता है | यही मानवीय जीवन का सामाजिक अभीष्ट होता है यद्यपि चिंतन परक  दृष्टिकोण से व्यक्ति को सामाजिक और पारिवारिक जीवन में रहते हुए ऐसे नितांत एकांत की आवश्यकता हमेशा रहती है; जिसमें उसके व्यक्तित्व और कृतित्व को गढ़ने के लिए एवं उसके स्वयं के आकलन के लिए समय विशेष की परिपाटी की आवश्यकता होती है जिसे अत्यंत आवश्यक व्यक्तिगत समय और तात्कालिक सामाजिक शून्यता अर्थात एकांत की संज्ञा दी जाती है |  यु तो मानवीय दृष्टि में हर व्यक्ति अपने स्वभाव अनुरूप इसकी समयोचित उपलब्धता के दायरे में रहता है किन्तु इसे मानसिक तौर पर आतंरिक संवाद से भी जोड़ा जाता है | एलबर्ट ह्यूस्टन जैसे विद्वानों ने इसे बड़े संक्षिप्त भेद के तौर पर प्रदर्शित किया है | जिसका फर्क एकांत और एकाकीपन में सामान्यतया उद्घाटित होता है | एकांत व्यक्ति के उत्थान और आध्यात्मिक उन्नति के अनुशीलन के लिए एक नीव का कार्य करता है; वहीँ एकाकीपन व्यक्ति के मन मस्तिष्क और उसके सामाजिक पतन के साथ-साथ अवसाद की अभिव्यक्ति का प्रारंभिक बिंदु है | अकादमिक परिपेक्ष्य में कहें तो इसे मानसिकता का सामाजिक सामंजस्य से कटकर शून्य व नकारात्मक होने की परिपाटी के सन्दर्भों में समझा जाता है |

उपरोक्त वर्णन द्वारा एकांत और एकाकीपन का सूक्ष्म अंतर क्रमशः मनुष्य के व्यक्तिगत व सामाजिक जुड़ाव व कटाव के सन्दर्भ में समझा जा सकता है, हालांकि यह बहुत सूक्ष्म अंतर एक महीन सीमा रेखा द्वारा ही परिभाषित होता है।

द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्राध्यापक

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान ग्वालियर

बुधवार, 11 अगस्त 2021

तीज है त्यौहार द्वारा अमित तिवारी “शून्य” ग्वालियर , म.प्र.

 तीज है त्यौहार

एक स्वरचित मौलिक

अतुकांत कवित्त

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म.प्र.

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तीज है

बीज

संस्कृति के

प्लावन का

सावन के

आगमन से

उत्कर्ष का

हर्ष का

झूले

मेले

हास्य

रंग

उमंग की

बेला का

सपनो की

बनती नयी

सी इबारत का

सृजन का

हरियाली की

बेला और

मेहँदी का

चूड़े का

नारी धर्म की

पराकाष्ठा का

और

उत्सर्ग के

संसर्ग का

मिलते हुए

दृष्टव्य का

सन्दर्भ में

पति व्रत का

नारी सौभाग्य  

के रूप में धर्म का

नारी का शाश्वत

सौभाग्य रूप

तीज

सृष्टि का

सार्थक बीज ||

 

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर म.प्र.

 

सोमवार, 9 अगस्त 2021

विजय श्री एक अतुकांत स्वरचित मौलिक कवित्त द्वारा अमित तिवारी “ शून्य “ ग्वालियर म. प्र

 

विजय श्री

एक अतुकांत स्वरचित मौलिक कवित्त

द्वारा अमित तिवारी “ शून्य “

ग्वालियर म. प्र.

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विजय की पताका

धर्म की बात है

शीर्ष पर जा रही है

ख़ुशी तो उसकी शुरुआत है

सिहावलोकन करती है

तोडती वेदना का वितान

बन सके जिसके पथिक

साथियों के क़दमों के निशान

सितम उनके झेले जिन्होंने

मगर आर्तनाद करके

पहुँच ही गए शिखर पर

जहाँ कहाँ पहुंचा था

कोई और इंसान

मुलाकात का दौर

वाज़िब सा भी है

मगर उससे पहले प्राणों का उत्सर्ग करलो

तभी तो वरन विजय श्री का होगा

यूँ जीते जी कहाँ जीत मिलती है

सबको जगत में

कड़ा होता है विजय श्री का वरण

और इम्तिहान सबका

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.09.08.2021

 

  

शुक्रवार, 6 अगस्त 2021

चित्राधारित :स्वरचित अतुकांत कवित्त

 

चित्राधारित :स्वरचित अतुकांत कवित्त


“दादा पोते का साथ”

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर , म.प्र.

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छप -छप लहरों की आवाज़

सागर के किनारे आये आज

 

दादा जी का प्यारा साथ

पकड़ा उन्होंने मेरा हाथ

 

दूर से दिखा तारा एक प्यारा

था वो बहुत ही उजियारा

 

दादा उसकी बात बखाने

छोटा बबलू उसको कब था जाने

 

आज नयी एक बात जन ली

दादा जी के ज्ञान से भान ली ||

 

द्वारा

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर , म.प्र.

 

चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...