शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

“हाथ बढ़ा कि फिर दिन निकला” चित्र लेखन पर स्वरचित अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी “शून्य” ग्वालियर , मप्र.

 

“हाथ बढ़ा कि फिर दिन निकला”

चित्र लेखन पर  स्वरचित अतुकांत कविता

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , मप्र.

 

ये दोस्त मेरे,

हो साथ तेरे,

मेरे जीवन की पतवार,

बन सकूँ बड़ा,

हो सकूँ खड़ा,

थाम लेना मेरा हाथ,

की देना साथ मेरा,

कि सूरज फिर निकला है,

पर लक्ष्य अभी तो पाना है,

हमने भी जीवन में कुछ ठाना है,

 

पर लक्ष्य हमेशा संगठन गढ़े,

होते हैं ; पाए जाते हैं ; जो की हों अड़े,

निर्लिप्त बहुत जीवन मेरा,

उसमे एकांत का भाव पूरा,

लेकिन दिन की बेला में बढ़ता,

घटता , गिरता चलता फिर रुकता,

मैं भी यूँ ही बढ़ता जाता हूँ,

फिर कदम से कदम तुझ से मिलाता हूँ,

लक्ष्य पर टिका राम धुन गाता हूँ,

 

सूरज शिखर का ओज बता,

बढ़ रहा विवर की खोज जता,

लेकिन जीवन चलने का नाम,

और न कोई मुझको काम,

मैं चलूँ दिवा,

मैं चलूँ निशा,

मैं चलता हूँ पथ पर अडिग-अविराम;

बस तुम हाथ बढ़ा दो,कि दिन निकला;

ताकि दिन में ही लक्ष्य मिले;

संघर्ष की बेला अब कुछ सिमटे;

 मेरे जीवन की कीर्ति पके;

मुझे नया कुछ सृजन मिले;

 

यह दोस्त मेरे,

हो साथ तेरे,

मेरी जीवन की पतवार,

बन सकूँ बड़ा,

हो सकूँ खड़ा,

थाम लेना मेरा हाथ,

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर , मप्र.

01.11.2020

 

“क्या भूलूं - क्या याद करूँ ” एक स्वरचित अतुकान्त कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

 

“क्या भूलूं - क्या याद करूँ ”

एक स्वरचित अतुकान्त कविता

द्वारा अमित तिवारी शून्य

 

 

भूला नही पर दिन वो भी याद आता है

क्षितिज का सूर्य जिस दिन भाल पर चमक सा जाता है

 

वहीं होती है रोशनी जिनके ज़ेहन से उजाला आता है

शिकायत हमें परवरिश से है लेकिन इसे कौन झुठला पाता है

 

अतीत का गौरव, वर्तमान की विडम्बना की भेंट चढ तो जाता है

महज अतीत के बूते फिर कोई नया कल को गढ कहाँ पाता है

 

खुद को खपाते ही जमाने में एक दिन कुछ नया नजर आता है

लेकिन इस मानिन्द जमाने में जवानों का दम तक निकल जाता है

 

नही; जानते हम उन्हे मगर, जिनके आग़ोश तले पा जाता है

एक नया जीवन जो हर कोई पाना तो अक्सर चाहता है

 

खोने को तो ए दोस्त चैन सभी खोते हैं, मगर खुद को जो खो देता है

यकीन मानो सच्चे लफ़्ज़ों में वही कामयाब होकर खुद के बाद लोगों के ज़हन में वर्षों बरस आता है

 

भूला वही जाता है जो नाकाबिले याद होता है

याद वही आता है जो भुलाया नही जाता है

 

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर (म.प्र.)

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

पूनम का चाँद स्वरचित अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

 

पूनम का चाँद

स्वरचित अतुकांत कविता

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

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क्या देखें हम खुदको

अब जब देख लिया

पूनम का चाँद

 

क्या मांगे हम रब से

अब- जब मांग लिया

पूनम सा चाँद

 

क्या चाहें हम जग से

जब चाहा मिला नहीं

पूनम का चाँद

 

क्यों रोयें हम खुद पर

जब खिला नहीं

अब तक पूनम का चाँद

 

जीवन के गलियारों में

धुप अभी भी बाकी है

बाकी सब कुछ झूठ है

बस नहीं रहा बाकि तो

वो है एक पूनम का चाँद

 

राम कृष्ण की छवि मिले

और जीवन में मिल जाय

एक पूनम सा चाँद

 

स्मृति शेष यदि बनी रहे

बाकि सब खो जाये

चित्त में मेरे राम

 

जैसे हों पूनम का चाँद

जैसे बस पूनम का चाँद

 

स्वरचित अतुकांत कविता

द्वारा अमित तिवारी “ शून्य”  

 

 

 

 

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

‘त्यौहारों में सतर्कता क्योंकि कोरोना अभी समाप्त नही हुआ है -बदलते समय और वैश्विक महामारी का त्यौहारों पर प्रभाव एक सम्यक आंकलन’ आलेख द्वारा अमित तिवारी सहायक प्राध्यापक

 

त्यौहारों में सतर्कता क्योंकि कोरोना अभी समाप्त नही हुआ है

-बदलते समय और वैश्विक महामारी का त्यौहारों पर प्रभाव एक सम्यक आंकलन

 

 

आलेख

द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्राध्यापक

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान ग्वालियर म.प्र.

 

 

युगों की श्रंखला मानव समाज पर बदलाव के नए अवदान देती आई है । समस्त सृष्टि और मानव के सभ्य होने के दौर से ही समाज में आमोद- प्रमोद और उल्लासों की प्रक्रिया शुरू हुई; जिसमें भारतीयता के दर्शन है और जीवन का उल्लास वर्णित किया जाता है लेकिन बदलते दौर और वैश्विक महामारी के दौर में यकीनन त्यौहारों को इस श्रृंखला को परिवर्तित सा कर दिया है I राष्ट्रव्यापी लोकडाउन से , जनमेदनी की स्वास्थ्य रक्षा तो हुई किंतु मानव एक पिजडें में कैद हो गया हो;  ऐसा बीते कई महीनों से भारतीय जनमानस के साथ बहुतायत में रहा है, चैत्र नवरात्र हो, रक्षाबंधन हो, दशहरा हो, या कि ईद का त्यौहार हम सभी ने अपनों से मिलने और उनके साथ त्यौहार मनाने की मिलन सरिता की परंपरा को बदला तो निश्चित ही साथ ही उनके द्वारा अपने त्यौहारो को आडम्बर प्रदर्शन की बजाय शालीनता से मनाया है ; विगत 6 महीने से पूरे देश ने इस महामारी के प्रति एक विशेष सहयोग प्रस्तुत कर घर पर ही रहकर अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों को बंद ररखकर अपने आप को अनेकानेक परिवर्तनों से लेस किया है, यद्यपि यह देश त्यौहारों की विशेष श्रृंखला रखता है। लेकिन व्यापक सामाजिक व राष्ट्रीय हित में लोगों ने अपने सामाजिकता और मेल जोल के आवरण को बहुत हद तक बदला है। यद्यपि अपवाद की स्थिति भी रही है। लेकिन आंकडे बताते है नवरात्र हो , रमजान हो, रक्षाबंधन हो या कि राष्ट्रीय पर्व 15 अगस्त ही क्यों न रहा हो,  चाहे दशहरे जैसे मेलजोल का पर्व हो  जो मेल जोल की प्रक्रिया द्वारा मनाया जाता है ; इसमें भी जन मानस ने घर पर ही रहकर पर्वों की श्रृंखला को मनाया; लेकिन एक ओर देश अनलॉक की प्रक्रिया की तरफ आगे बढ रहा हैं दूसरी ओर बढते कोविड संक्रमितो की संख्या और अर्थव्यवस्था को खोलने का दबाव आदि , क्या देश वासियों को दीवाली जैसे महापर्व पर भी एकांत बाद और सामाजिक दूरी बनाते हुए पर्व को मनाऐगें ?

  यदि नही तो हमें समझने का प्रयास करना पडेगा, कि इस महान देश को जिसमें हम त्यौहारों के इस दौर में संक्रमण एक ऐसे स्तर पर पहुच जाएगा जिससे हम स्वयं व अपने परिवार को संकट में डाल सकते है। वायरस का ना तो कोई धर्म होता है ना जात और ना ही उसके द्वारा त्यौहारो के दौर में उसने खुद शिथिल होने का भीष्म-वचन ही दिया है; अतः इस समय में हमे अधिक सतर्क रहना होगा ताकि कोरोना के प्रभाव को समाप्त किया जा सके। बेहतर है त्यौहार तो मनाएं और ज्यादा एकात्मकता से मनाएं लेकिन सुनिश्चित करे । मेल जोल को अधिकतम सामाजिक दूरी के दायरे में रखकर ;इलेक्ट्रोनिक माध्यम से मिलकर करे ताकि वैश्विक महामारी के दौर में हम स्वयं व अपने व अपने परविार को बचाते हुए; संक्रमण के दौर से बच सके।

यह नितांत आवश्यक है कि एक समझदी पूर्ण रवैया अपनाते हुए क्रमशः खुद बचे और दूसरों को भी संक्रमण से बचावें , राष्ट्र के हित में हमारा यह कृत्य यानि ‘‘त्यौहारों में अधिक सतर्कता वरतें क्योंकि कोरोना अभी समाप्त नही हुआ है।’’ को  इस विशष्ट व आवश्यक सूत्र के तौर पर अपनाएं व समग्र राष्ट्र के प्रति एक समायोजित उत्सव परंपरा को निभाएं।

 

द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्राध्यापक

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान ग्वालियर म.प्र.

बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

रफ़्तार एक स्वरचित अतुकांत कवित्त द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

 

रफ़्तार

एक स्वरचित अतुकांत कवित्त

द्वारा अमित तिवारी शून्य

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रिश्ते थमते है

बनते हैं

चलते हैं

रफ्तार नही रूकती

 

धडकन चलती है

मचलती है

खनकती है

रफ्तार नही बनती

 

अरमां बनते है

बिगडते है

पर जज्बात

नही समझ पाती

 

रफ़्तार है एक धारा

जो प्यार से बनती है

न थमती है

रफ्तार वो जीवन की

फिर कमतर ही बदली जाती

 

चलती है जिन्दगी चाल रफ्तार से

जलती है  जीवन की ज्योति प्यार से

 

 

पर जिन्दगी ही जिन्दगी से परे

चलती लगा पर रफ़्तार के

 

 

द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

ग्वालियर म.प्र.

दिनाक 28/10/2020

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

‘तर्क का दबाब’ एक स्वरचित लघु कथा द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’ ग्वालियर म.प्र.

 

‘तर्क का दबाब’

एक स्वरचित लघु कथा

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

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सुरभि घडी की तरफ देख रही थी; बीते रोज की तरह ही विवेक का आज भी कोई फेान नही आया और न तो वो स्वयं अभी तक आए। इस कशमकश में कि वे शायद व्यस्त होगे सुरभि ने इंतजार करना मुनासिक समझा टेबल पर घडी की ओर निगाह करके इंतजार में बैठी तो पता चला कब आंख लग गई और सुरभि चुपचाप इंतजार करते करते अल्पनिद्रा में मग्न हो गई। जब आंख खुली तो देखा रात के 9.30 बज चुके हैं। मारे क्रोध और चिंता के उसका सिर घूमने लगा और यकायक जैसे ब्लड प्रेशर तेजी से बढ गया हो जैसे , सोचने समझने की प्रवृति जैसे शून्य हो गई हो अब सुरभि से रहा न गया तुरन्त फोन उठाकर उसने विवेक को लगाया पूरी घण्टी जाने पर भी विवेक ने फोन नही उठाया I गुस्से से लाल पत्नी ने फिर से फोन लगा दिया अबकी बार भी विवेक की ओर से फोन नही उठा चिन्ता और तनाव से ग्रस्त सुरभि के क्रोध का कोई पारावार नही था I मन में विवेक प्रति अविश्वास रूपी हीन भावना घर कर रही थी अंतर्मन में मानो विवेक की नकात्मक छवि बन चुकी हो जैसे। और मन बेहद अशांत भाव में पडकर अपने आप से विवेक की नकारात्मक छवि गढ रहा था और आंसुओं का आवेग बंध मुठ्ठियों के क्रोध के साथ धैर्य की सारी सीमाएं तोडने को आतुर था ऐसे में अचानक विवेक का फोन बज उठा बिना किसी भावनात्मक प्रतिरोध के स्वयं को फोन रिसीव करने से न रोक सकी। रिसीवर से विवेक की चिरपरिचत आवाज की जगह किसी महिला का स्वर आया जिसे सुनकर क्रोध की पराकाष्ठा को पहुची सुरभि को मानो भावनात्मक धक्का सा लगा हो सामने के स्त्री स्वर ने विवेक के वाहन चलाते समय बार बार सुरभि को पिछले कॉल को अटैंड करने के लिए मोबाइल को पाकेट से निकालने की प्रक्रिया में दुर्घटना में उसका वाहन एक आटो रिक्शा से टकराकर गिर गया विवेक वेहोश हो वही पडा रहा लेकिन हाथ के नजदीक मोबाइल वही बजता रहा I जब एस पी महोदया रजनी ने इस एक्सीडेंट की भनक पायी तो अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुच ;विवेक के फोन पर आए पिछले काल का संज्ञान लेते हुए सुरभि को इस भीषण दुर्घटना की जानकारी देते हुए यह तर्क दिया कि प्रत्यक्ष दर्शियों ने विवेक के फोन काल उठाने की प्रक्रिया में वाहन के संतुलन खोने और दुर्घटना होने की बात कही इस तर्क से सुरभि के मस्तिष्क की सारी जटिल नाडिया मानों निष्क्रिय होकर; विवेक की सलामती की दुआ करते हुए विवेक तक पहुचने की जल्दी में बेतरतीव भागी जा रही थी , ‘काश कि मै यू अधीर न होती तो विवेक सही सलामत घर आ पाते’ पर ये तर्क उसे रास्ते भर परेशान करता रहा और इस  तर्क ने शायद विवेक की जिन्दगी न बदल दी हो I

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

दिनांक 27.10.2020

सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

मद कैसा जीवन में ...? एक अतुकान्त कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’ ग्वालियर , म.प्र.

 

मद कैसा जीवन में ...?

 एक अतुकान्त कविता द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर , म.प्र.

 

 

मद कैसा जीवन में

क्यों करू अभिमान

जबकि सबके प्राण समान

फिर भी मैं ऊॅचा तू नीच करे इंसान

धरती पर सबको जन्म मिला

प्रकृति ने सबको पाला है

किन्तु मनुष्य की बुद्धि ने

अकारण ही क्यों मद पाला है

बहुत बडी है यूं तो दुनियां

शून्य के कृष्ण विवर समान

आते जिसमें अंसख्य सृष्टि

आता जिसमें सारा जहान

आकाशीय गंगा की चितवन में

फैल रहा यू तो उर्ध्व प्रकाश

कितने ब्रह्माण्ड,

कितनी सृष्टि,

कितनी पृथ्वी,

कितने सूरज,

कितने द्वीप –महाद्वीप,

कितने देश,

कितने प्रदेश,

कितने शहर,

कितने नगर,

और महानगर

छोटे कस्बे- गांव

उन कस्बे -गांवों मैं का रूप लिए

मद से युक्त मनुष्य है

क्या उसकी सृष्टि के

सम्मुख है इसकी औकात

किन्तु इसका मद तो इतना जटिल है

आते नही इसमें

सृष्टि,

ग्रह

पृथ्वी,

नगर,

काल

जबकि जीवन की अंगडाई

चार कंधे ले मृत्यू की सच्चाई

देह जलाने जाती है

देह तो जल जाती पर

मद का अणुजला न पाती

हे कविमन अमितमय शून्यतम

फिर मद कैसा जीवनतम

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

दिनांक- 26.10.2020

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

दानव’ एक अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

 

‘दानव’

एक अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

 

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हे मानव

तुम बनकर दानव

क्यों करते तांडव

पावन धरती को क्यों डसते

निज शील की धूर्त पिपासा में

क्यों निज हठ औरों का जीवन कुंठित करते

भय न तुम्हे न लाज रही

पर डरो जरा खुद के विनाश से तो सही

धरती पर पातक पहले बढ़ता है

विधाता पाप के घड़ों पर चोट गहरी सी करता है

निज दोषों की बलि कईयों को देते

क्या हाल हो यदि खुद उस पाप को सेते

दखल बड़ा या दंभ बड़ा

जीवन में केवल कर्म बड़ा

औरों के जीवन में मत दखल बढाओ

हे दानव तुम थोडा होश में आयो

संकल्पों की धरती पर जब वासना पग धरती है

कई अबलाओं की नियति पर विडम्बना बनती है

 

राम न सही, रावन भी बनने से पाप लगेगा

दानव आखिर तेरे सौभाग्य का अंत सृजेगा

 

अबला की हाय तो ईश्वर को भी लगती है

तेरे अस्तित्व अहम् को भी यह डसने लगते है

 

भाल पर तेरे कर्म का चन्दन लगा रहेगा

या की कुत्सित कर्मों की कालिख तू मलेगा

 

तय कर ले

हे मानव

क्या तू बनकर रावन

यूँ ही तांडव नित्य करेगा

 

द्वारा “अमित तिवारी” शून्य

ग्वालियर , म प्र.

23.10.2020

 

चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...