“संदेह की गहरी जडें” एक लघु कथा
द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘
ग्वालियर , म.प्र.
--------------------------------
इंसानी मस्तिष्क
में अपने प्रति किए गए नियत अच्छे कर्मों की याद रहे न रहे लेकिन स्वयं के प्रति
हुए नकारात्मक या कि कहें दुर्घटनाओं का मनुष्य के मस्तिष्क पटल पर प्रभाव रहता ही
रहता है। सुषमा आज रोज की तरह सुबह जल्दी
नही उठ पायी, न जाने क्या बात मन में घर कर गई हो जैसे । उठी तो नही थी लेकिन सोई
भी नही हो जैसे ये रात संदेह की गहरी कालिमा लिए अनघट सी बढी जा रही थी। ‘विनोद तो बहुत
अच्छे इंसान है पर वो ऐसा क्यों करेगें‘ आदि के मनोभाव
बार बार मन में कोधते हैं शादी से लेकर अब तक क्या मैं उन्हे सही से जान पायी हूँ ? एक सामान्य कद
काठी का सजीला सहज विचार मग्न व्यक्तित्व इतना निर्लिप्त और राग रहित क्या
किसी..... अरे नही नही.... ‘शायद ये प्रतिबिम्ब ही गलत दिखा मुझे’; लोग जैसे होते है
वैसे दिखते नही। लेकिन विनोद ही क्या कोई और इंसान भी इस लम्बे दस साल के दांपत्य
के निजी जीवन में दोहरा चरित्र रख सकता है; 10 साल तक खुद को झुठलाने का अभिनय तो कोई नही कर सकता। मेरी
ही मति मारी गई है जो संदेह कर रही हॅू विनोद तो सज्जन स्वभाव के है उनके जैसा तो
शायद आज दौर में होता भी नही कोई तो क्या वो वाकई झूठी तस्वीर थी जो मैने दस बरस
से देखी। हे राम! मुझे ही कुछ भ्रम हुआ है ;ये रमा भी कुछ कोई ठीक औरत नही है तो
विनोद उसके प्रति आकर्षित हो भी सकते हैं खैर सारे मर्द एक जैसे होते है I इस बात
का अहसास शायद सुषमा को संदेह के घेरे में डालता निकालता रहा। अपने स्वयं के
अंतर्द्वंद से लडती रही अचानक उसकी सहेली विमला का फोन आया। चपल विमला की बातों का
कैसे बर्दाश्त करूंगी ये सोच कर फ़ोन डायल से काट दिया लेकिन फिर से फोन पूरी तेज
आवाज के साथ बज उठा शायद कोई जरूरी बात रही होगी। सोचते हुए सुषमा ने विमला के फोन
को अटेन्ड करने के लिए फोन उठाया ही था सुषमा की आवाज सुने बिना विमला ने कहा
सुषमा इतने देर से फोन क्यों नही उठा रही थी और व्हाट्सअप पर ये विनोद भाईसाहब के
बारे में क्या लिख रही हो। तुम्हे मालूम है कल भाइसाहब के आदर्श चरित्र को देखकर
तुम्हारे सौभाग्य को सराह रही थी। कल तेरे घर पर काम करने वाली रमा के साथ सडक पर
कुछ लडके छेडखानी कर रहे थे विनोद भाईसाहब ने एक बडे भाई के तौर पर उन मनचलों को न
केवल डांटा बल्कि सबके सामने रमा को अपनी बहन बता उसकी लाज बचाई और उन मनचलों को
भी एक बडे भाई के तौर पर बहुत अच्छी शिक्षा दी सच में सुषमा तुझे बहुत सदाचारी,
गुणी और नेक पति मिला है। और तू संदेह के घेरे में पता नही क्या सोचती रहती है?
मन ही मन विमला की इन बातों को सुनकर अवाक् सी रह गर्व और
ग्लानि दोनों से भर गई अपने मन में पैदा हुए संदेह के घेरों से विमला के वचनों से
मुक्ति पा अपने आदर्श पति विनोद से मन ही मन क्षमा मांग उठी जीवन में संदेह के
घेरे संबंधों को खराब कर सकते है। आज तो विनोद के प्रति मेरे संदेह को समय रहते
ईश्वर ने दूर कर दिया लेकिन खुद के जीवन में संदेह से घिरे व्यक्ति के लिए कोई दवा
काम नही आती । वो स्वयं के सभी रिश्ते ख़राब कर लेता है ;भगवान मुझे विनोद के लिए
ऐसा सोचने के लिए माफ कर दे।
द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘
ग्वालियर म0प्र0
दिनांक 06 अक्तूबर 2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें