शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2020

क्यों गाँधी बनना चाहूँ मैं ? एक अतुकांत कवित्त द्वारा अमित तिवारी “शून्य “ ग्वालियर म.प्र.

 

क्यों गाँधी बनना चाहूँ मैं ?

एक अतुकांत कवित्त

द्वारा अमित तिवारी “शून्य “


ग्वालियर म.प्र.

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पहन के खादी कहलाऊ गाँधी मैं,

      यूं तो बनना चाहूं गाँधी मैं,

            पर क्या गाँधी हो पाया मैं,

               क्या उस सा  त्यागी तपी हो पाया मैं,

 

पोरबंदर का स्तर हो मुझ मैं,

   या कि डरबन का सा संघर्ष कर पाया मैं,

              सत्य के पथ पर बिना डिगे चल पाया मैं,

                  शोषण के प्रतिकार में वाणी को अधरों तक क्या लाया मैं,

 

निरानंद या कि हो कर योगी

     तप के बल पर सत्य लपेटे

       बांध लंगोटी ओढ़े खादी उघडे तन

          दृढ़ता से क्या बन पाया त्यागी मैं

 

हाँ बनना नेता तो चाहा,

   क्या लेकिन उन में ढल पाया,

          पाने प्रसिद्धि और बनने गाँधी मैं,

               पर क्या सच गाँधी बन पाया मैं,

                  हाँ दंभजनित एक आंधी बन आया मैं,

 

     क्षमा करो प्रभु , अतुलनीय बल मैं

         समेट निज मन में, कहाँ बदल स्वयं को पाया मैं  

 

छोड़ा गाँधी बनने का सपना,

     करूँ सृजन मुझमें मैं अपना,

                     बन स्वयं चल सकूँ,

                         गाँधी के सच के दर्शन पर,

 

हो कर निज जीवन धन में

गाँधी सम

गाँधी सम

 

*राष्ट्रपिता को समर्पित

द्वारा  - अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म. प्र.

 

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चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...