बुधवार, 20 जनवरी 2021

कुछ तो लोग कहेंगे एक स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘

 

कुछ तो लोग कहेंगे

एक स्वरचित कविता

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

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हाथ की लकीरों पर ना था,

ऐतबार मुझे इसलिए कर्मों के,

कागज लिख डाले,

कुछ स्याह से थे काले से थे,

तो कुछ तो लोग कहेंगे ही,

 

फिर भी हार ना मानी मैंने,

निज कर्मों के पथ पर खडा रहा,

अपनी सामर्थ्य  संभाले मैं,

दुनिया के तानों पर डटा रहा,

तो भी, वो है लोग:

फिर वे कुछ तो लोग कहेंगे,

 

मेरी जीवित रहने की शर्तों,

पर नित हसते हुए वो,

मुझे मरता देखेगें,

तो क्या आप सोचते हो,

वो फिर चुप बैठेगे,

फिर वे ठहरे लोग,

कुछ तो वो लोग कहेगें ही।

 

अच्छा है कह लें,

और उनको सहकर भी

अपना निज ध्येय धरूंगा,

हां मैं निज पथ पर निर्बाध बढूंगा,

कहते हैं ……. कुछ लोग कुछ तो लोग कहेंगें।

कहने दो मुझे निर्बाध

अपनी नियति पर रहने दो ।।

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

दिनांक 20.01.2021

सोमवार, 18 जनवरी 2021

ओस की बूंदें द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘ स्वरचित कविता

 

ओस की बूंदें

स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

 

मेरे चेहरे पर छायी है,

कोहरे की ठण्डी छाया,

इसके बहाने मैंने पायी है,

ओस की बूंदों की माया,

यह तो ममत्व का रूप है,

इसका अनुभव मुझे भाया,

पंकज की पखुडियां लाई हैं,

ताजगी जिसमें मन महकाया,

पवित्रता के स्त्रोत लिए है,

जीवन के कोष की ओस,

पर है, बहुत अफसोस,

कि आज ओस,

को किया हमने,

जमींदोस।।

 

स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

18.01.2021

 

शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

पथ की बाधा

 

पथ की बाधा

 

स्वरचित कविता

द्वारा अमित तिवारी शून्य

 

चलते हुए जीवन-पथ की राह पर,

रह जाय जो जीव रूका सा ठहरा सा ।

डरा और आनन्द के अतिरेक में भटका सा,

श्लेष सा अशेष सा सहसा पर थोडा सा ।

अडा हुआ सा निर्भीक सा खडा हुआ सा।।

 

तो क्या बिगाड लेगी उस निर्भीक का ,

उसके पथ की बाधा।।

 

बढते हुए उत्थान के निज कयास,

कर्तव्य पथ पर चलने की पुनः आस

उत्कर्ष करने का पुनः-पुनः उसका सफल प्रयास।।

 

बाधा का ही बाधक बन सकेगा,

हां वही योद्धा जीवन युद्ध की परिणिति करेगा।

सह सकेगा जीवन पथ के वार,

कर सकेगा वही उन बाधाओं पर पलटवार।।

 

जो नितांत और निरंतर हो रहेगा,

जो ना थकेगा और ना ही थमेगा।

वही पथ की बाधा को हटा,

निज पथ को निर्बाध करेगा।

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्‍वालियर म प्र

दिनांक १५ जनवरी २०२१

गुरुवार, 14 जनवरी 2021

उत्तरायण होते सूर्य से जुडे भारतीय त्यौहार एवं परंपराएं आलेख द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘ सहायक प्रोफेसर भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान, ग्वालियर

 

उत्तरायण होते सूर्य से जुडे भारतीय त्यौहार एवं परंपराएं

आलेख द्वारा अमित तिवारी शून्य

सहायक प्रोफेसर

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान, ग्वालियर

 

 

भारतीय दर्शन में त्यौहारों की परंपरा ग्रह नक्षत्रों की स्थितियों पर आधारित होती है इस संदर्भ में देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न त्यौहारों का आयोजन व मान्यता सूर्य और चंद्र की बदलती स्थितियों पर आधारित होता है। इस आधार का कारण भी विशुद्ध वैज्ञानिक और समकक्ष प्रामाणिक मान्यताएं हैं। जिससे देश की विविध संस्कृति और उसकी एकात्मता परिलक्षित होती है। सूर्य के संदर्भ में सूर्य का विभिन्न राशियो में प्रवेश विभिन्न पर्यावरणीय स्थितियों को सृजित करता है, जिसका प्रभाव पृथ्वी पर मौसमों और ऋतुओं का बदलना, ऊष्णता की अभिवृद्धि , पिण्डों का अलग दिशा में चलायमान होना आदि के स्वरूप में पृथ्वी पर अनेक वांछनीय जलवायु सम्मत निरंतरता को सुनिश्चित करना होता है। इसी परिपेक्ष्य में हमारी विकसित सभ्यता में इस बदले समय स्वरूप को जिसमें सूर्य का उत्तरायण होकर सांस्कृतिक संदर्भों में घुले मिले अर्थ व पर्यावरणीय संसर्गों को ससम्मान पर्वो की संज्ञा दी गई है। संपूर्ण भारत में पर्वों का खासकर सूर्य के उत्तरायण होने पर पर्व स्वरूप मकर संक्रान्ति के तौर पर मनाया जाता है। विधान यह है, कि जब पौष मास में सूर्य मकर राशि पर शीर्षस्थ होते हैं तब यह पर्व संपूर्ण भारत में मनाया जाता है। खगोलीय कारणों से इस वर्तमान शताब्दी में यह त्यौहार आंग्ल कैलेण्डर के अनुसार जनवरी मास के 14वे या 15 वे दिन ही पड़ता है तथापि कालक्रम में  खगोलीय गणनाओं के अनुसार पृथ्वी के इस भाग पर सूर्य धनु राशि को छोडकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं।

 

इस अर्थ में यह पर्व भारतीय संस्कृति में विविधता ओैर त्यौहारों की एक अनुपम परंपरा जिसे पर्व वैविध्य कहते है, के आधार पर संपूर्ण भारतीयता में मनाया जाता है। इस आधार पर भारतीय त्यौहारों की परंपरा में सूर्य का उत्तरायण होना देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न संदर्भों को गढते हुए। मान्यता के साथ संपूर्ण आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

 

संपूर्ण भारत में विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग परंपराओं और उससे उद्दीप्‍त सांस्कृतिक मान्यताओ के क्रम में सूर्य के उत्तरायण होने का यह पर्व अग्रलिखित क्रम में क्षेत्रवार मनाया जाता है-

 

1. उत्तर भारत विशेषकर हरि‍याणा पंजाब में इस पर्व को संपूर्ण धार्मिक आस्था के साथ अन्‍न रूपी लक्ष्मी से प्राप्त समृद्धी के परिपेक्ष्य में लोहडी के रूप में, एक दिन पूर्व 13 जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन शाम के समय अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्नि देव की पूजा करते हुए तिल गुड चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामाग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली और तिल की बनी हुई गजक की रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते है।

 

2. उत्तर प्रदेश- उत्तर प्रदेश में यह पर्व मुख्य रूप से दान के पर्व के रूप में मनाया जाता है। त्रिवेणी संगम पर प्रत्येक वर्ष माघ का मेला लगता है, जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। 14 जनवरी से ही इलाहाबाद में माघ मेले की शुरूआत होती है। संक्रांति पर पर्व स्नान का विशेष महत्व होता है और गंगा आदि नदियो पर जल मेदनी पर्व मुहुर्त में स्नान के लिए उमडती है।

 

3. बिहार में मकर संक्रांति को खिचडी के नाम से जाना जाता है। इस दिन उडद चावल, तिल, चेवडा, गौ, स्वर्ण, कंबल आदि के दान का भी विशेष महत्व है।

 

4. महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास तेल और नमक आदि चीजों का अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। महाराष्ट्र में लोग तिलगुड़ नामक हलवे का बाटने की प्रथा को इसमें सम्मिलित करते हैं, और कहते है कि ‘‘तिलगुड खाओ और मीठा मीठा बोलो‘‘

5. बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल के दान करने की प्रथा है यहां गंगा सागर में प्रतिवर्ष मेला लगता है। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगा जी का अवतरण भागीरथ के माध्यम से हुआ था। जहां गंगा कपिलमुनि के आश्रम से होकर वे समुद्र में मिली थीं। अतः इस दिन को गंगा सागर में स्नान दान के महत्म के तौर पर लाखों की भीड़ के साथ पर्व के तौर पर मनाया जाता है।

 

6. तमिलनाडु में इस त्यौहार को पोंगल के रूप में 4 दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन को भोंगी पोंगल, द्वितीय दिन को सूर्य पोंगल, तृतीय दिन मट़टू पोंगल अथवा केनू पोंगल, चौथे दिन कन्या पोंगल । इसप्रकार इस पर्व के द्वारा तमिलनाडु की व्यापक संस्कृति को समग्र आधार पर परिभाषित किया जाता है।

 

7. असम में मकर-संक्रांति को माघ बीहू और भोगाली बीहू के नाम से मनाते हैं।

 

8. राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलायें आपनी सास को वायना देकर आर्शीवाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलायें सौभाग्य सूचक वस्तुओं का 14 की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर ब्राहम्‍णों को दान देती हैं। इस प्रकार मकर संक्रांति पर्व की सांस्कृतिक झलक अपने आप में वैविध्यता के साथ झलकती है। सूर्य का भारतीय संस्कृति व पर्व एवं त्यौहार के सृजन व अनुसरण में महता योग है।

 

उत्तरायण हुए सूर्य से जुडी पर्व परंपराएं भारत को यथोचित शास्त्रोक्त स्थितियों के साथ एक सकारात्मक स्वरूप प्रदान करती हैं। जिसमें जीवन के यर्थाथ में दान की परंपरा द्वारा परहित के सरिस स्वयं का पाथेय तय कर मोक्ष की अविलंब प्राप्ति हेतु,  विभिन्न क्रियाकलापों के अनुपालन की परंपरा द्वारा जीवन के आनंद और समरसता के ध्येय का प्रतिफलन करता है। सच ही वर्णित है कि -

‘’ माघे मासे महादेव: यो दास्‍यति घृतकम्बलम।

स भुक्तवा सकलान भोगान अन्ते मोक्षम प्राप्यति।।‘’

 

इस तरह शास्त्रोक्त आधार पर भारतीय संस्कृति में माघ के उत्तरायण पक्ष में दान के अवलंबन द्वारा समस्त भोगों को भोगते हुए भी अंत में मोक्ष की प्राप्ति का संसर्ग हमारे भारतीयता में, उत्तरायण होते सूर्य से जुडी भारतीय  संस्कृति, त्यौहार एवं परंपराएं जीवन के सार को संदर्भित एवं प्रतिफलित करती हैं।

 

लेख द्वारा अमित तिवारी शून्य

सहायक प्रोफेसर

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान, ग्वालियर

बुधवार, 13 जनवरी 2021

एक ख्वाब अधूरा सा स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘

 

एक ख्वाब अधूरा सा

 

स्वरचित कविता

द्वारा अमित तिवारी शून्य

 

एक देखा सपना जो मैने अपना सा,

एक ख्वाब सुहाना मेरा सा,

पर हो न पाया पूरा वो,

रहा हमेशा एक ख्वाब अधूरा सा,

रहा हमेशा यादों के अस्तबल में,

दब कर थोडी ठिठुरन से,

अकिंचन मेरे मन में,

टूटा वो आंसू बनकर,

एक ख्वाब अधूरा सा,

रहा घिरा सा रहा डरा सा,

निस्तेज हुआ वो होकर भी,

मेरे मन का सच्चा सपना,

टूटा उसके खोने पर मैं,

गिर उठा फिर चलता,

रहा, तो क्या हुआ,

निज स्वप्न जो टूटा,

नया फिर गढ़ लूंगा,

अब एक ख्वाब जो,

देखा उसको पूरा करके ही,

दम लूंगा,

पूरा करके ही मैं दम लूंगा।

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

दिनांकः 13 जनवरी 2021

सोमवार, 11 जनवरी 2021

बहुमूल्य शब्द स्वरचित अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘

 

शब्द अनमोल हैं,

अर्थ बहुमूल्य है,

संस्कृति के सहजे,

इनके अपने मायने,

गढ़ते हैं इस धरा,

पर नया ही सृजन,

स्वप्न से कीमती,

अपनेपन से सृजित,

दर्प से दूर है,

गर्व से हो रहित,

साक्ष्य इतिहास के,

भारतीयता में आबद्ध हो,

संस्कृति के उत्थान को,

आपको देते बहुमूल्य,

समय शक्तियां,

देश के पर्यटन,

की गढ़ती दिशाएं,

नई संस्कृति के,

सामंजस्य गढ़ती,

देश की पर्यटन विमांए |

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

दिनांक- 11.01.2021

बुधवार, 6 जनवरी 2021

स्वागत नववर्ष का स्वरचित अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘

 

स्वागत नववर्ष का

स्वरचित अतुकांत कविता

द्वारा अमित तिवारी शून्य

 

स्वागत करें, नववर्ष का,

स्वागत करे, नवसृजन का,

समय पर जोडें नई पताका,

ध्यान कर नव कर्त्तव्य का,

 

निज नैपथ्य पर, सृजन अपनी सृष्टि,

से निर्मित कर नई दृष्टि,

कर कुछ अतिरिक्त, संकल्पों की वृष्टि,

बनायें नव वितान उत्थान पतन की,

 

बीते की बात विसार कर,

स्वयं को सृजित कर,

नवीन विमायें साकार कर,

स्वयं के देखे स्वप्न आवृजित कर,

 

समय तो समय है,

नया तो कलेण्डर है,

फिर भी स्वागत है,

बीते के क्रम में जो नया है,

स्वागत नए समय का है

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर (म.प्र.)

चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...