बुधवार, 30 सितंबर 2020

परछायी का सच एक स्वरचित अतुकांत कवित द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

 

परछायी का सच

एक स्वरचित अतुकांत कवित

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

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कुछ तो कहती हैं ,

या चुप रहती हैं ,

ये परछाइयां

जीवन के दर्पण में

हर एक के तन -मन में

कुछ गहरी और उथली सी

बनती और बिगड़ी सी

राहों पर टपती सी

काली और स्याह

रातों में खो जाती

कालिमा मय हो जाती

जीवन के दर्पण को

वो तय तो करती हैं

पर क्यूँ चुप रहती हैं

बेवाक सी है लेकिन

वो मुझ सी दिखती है

छाया बनकर जो

जीवन का दीप बनी

वो मेरी बिटिया सी है

वो मेरी बिटिया ही है

 

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर म. प्र.

30.09.2020

“भरोसा भगवान का” एक लघु कथा (मौलिक) द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

 

“भरोसा भगवान का”

एक लघु कथा (मौलिक)

द्वारा अमित तिवारी शून्य

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ग्वालियर जिले के छोटे से कस्बे डबरा के छोटे से रेलवे स्टेशन पर रामेश लाइन में लगकर सामान्य दर्जे का हजरत निजामुद्दीन का टिकिट लेकर अगली ट्रेन की प्रतीक्षा में था रात का खाना घर से खाया और एक बैग में कुछ जरूरत का सामान और अपने दस्तावेज रखकर दिल्ली शहर में अपना भाग्य आजमाने एक अदद नौकरी की तलाश में आंखों में उम्मीदों के चमकीले सपने सजाए ट्रेन के इंतजार में बैठा था। ट्रेन तय समय से काफी विलम्ब से आखिर डबरा स्टेशन पहुंची रामेश के मन में तो उत्साह था लेकिन एक महानगर में पहुंच अपने सपनों को साकार करने का भरोसा देने वाला कोई दोस्त रिश्तेदार या हितैषी कोई नही था बमुश्किल ट्रेन के कोच में उसे एंट्री मिली और स्वयं के बैठने की एक जगह भी लेकिन रामेश ने उसे स्वयं से ज्यादा जरूरतमंद एक वृद्धा को दे दिया और उसका सामान भी अपने पैरों पर रखकर दिल्ली तक का सफर भीड़ के धक्कों, लोगों की उहा पोह व यात्रा के यथेष्ट कष्टों समेत  पूरा किया।ये सफर तो तय हो गया लेकिन जिस सफर की शुरूआत के लिए वह दिल्ली आ रहा था उस सफर के लिए उसे कुछ भी स्पष्ट नहीं था। स्टेशन से बाहर आकर एक छोटी दुकान पर चाय का एक प्याला पीने की इच्छा से एक श्रीमान जी से रूकने के विषय में किसी छोटे से होटल के बारे में पूछ ही रहा था कि उसे एक परिचित चेहरा दिखा। जिसने उससे दिल्ली आने की वजह पूछी और आपस की बातचीत में अधिकार समेत उसे रोजगार की तलाश तक अपने यहां रहने और खाने का एक निर्णय सा सुनाया ये सज्जन कोई और नही डबरा के गुप्ताजी के नाती विमल थे जिनके दादाजी को कभी रामेश के पिताजी और दादाजी ने बहुत मदद की थी और उनको अपने पैरों पर खडे होने में और डबरा में स्थापित होने में पूरा सहयोग दिया था। रामेश विमल के साथ अपना सामान ले उनके घर की तरफ हो लिया लेकिन वो क्या करेगा? यह अभी भी एक अबूझ प्रश्न था लेकिन इस प्रश्न का भी ईश्वरीय विधान में कोई उत्तर तय किया गया होगा ऐसा ईश्वर पर हमेशा भरोसा करने वाले रामेश के मन मे भरोसा था। रोज की तरह विमल के यहाँ भी प्रातः जल्दी उठकर नित्य क्रिया से निवृत हो चाय का प्याला हाथ में लिया ही था कि अखवार के पलटते पन्नों में मानो उसके लिए अन्नजल की व्यवस्था तय की गई हो; कि रामेश के समक्ष योग्यता और पात्रता के पद का एक विज्ञापन उसे स्पष्टतः मिल गया जिसमें भाग्य आजमाने का मन रामेश ने बना लिया। नाश्ता करके वर्णित पते पर रामेश पहुचा ही था कि वहां उसके साक्षात्कार के लिए उसका नाम उसने संबंद्ध अधिकारी को दिया 10 मिनट के अन्दर उसे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया और बिना किसी आश्चर्य के साक्षात्कार के 5 मिनट के बाद ही उसे बोर्ड द्वारा पुनः बुलाकर वेतन को लेकर चर्चा की गई और कल (अगला दिन) से ही कार्यालय में ज्वाइनिंग के लिए कहा गया।जिसके लिए उसने सहर्ष स्वीकारोत्ति दे दी। और खुशी-खुशी बिना बिलम्व के एक मिठाई की दुकान पर जाकर थोडी सी मिठाई ली और बगल के मन्दिर में ईश्वर को धन्यवाद देते हुए प्रसाद चढाया और पुजारी जी से रहने के लिए कोई किराए के कमरे के लिए पूछते हुए अबिलम्व विमल जी के घर पहुचा उन्हे धन्यवाद देते हुए प्रसाद की मिठाई का डिब्बा दिया और ईश्वर के भरोसे स्वयं के भरोसे की जीत को बडे विनम्र शब्दों में विमल जी को अपनी नौकरी मिलने की शुभ सूचना दी और एक दो दिन में ही किराए के एक कमरे की व्यवस्था होने की बात भी बताई। दोनों बहुत खुश थे चाय की चुस्कियों के साथ ईश्वर की आस्था में  भरोसा रखने वाले रामेश भरी आंखों से पिताजी को दूरभाष से ये समाचार देने लगा और उसके मुंह से कुछ शब्द ऐसे निकले कि भगवान पर अगाध भरोसे से आज मुझे नौकरी मिल गई है मैं यहाँ ठीक हूँ, आपसे जल्द अगले हफ्ते डबरा आकर मुलाकात होगी।

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर, म. प्र.

29.09.2020

सोमवार, 28 सितंबर 2020

लापरवाह किसे कहते हैं’ अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

 

लापरवाह किसे कहते हैं’

अतुकांत कविता

द्वारा अमित तिवारीशून्य’

महाविद्यालय के इम्तिहान में

प्रश्न आया एक नया जहान में

कि लापरवाह किसे कहते हैं

और किस लोक में वे रहते हैं

प्रश्न बडा बेतुका था

किन्तु मुझ पर गढ़ा गया था

लापरवाह मुझ सा कौन जग में

जानिए जो खेले क्रिकेट सडक में

लापरवाह मुझसा है कौन

बिजली के तारों का छत पर है जोन

अगरबत्ती से जो गैस चूल्हा जलाए

कुंए के बगल में खडे हो नहाए

कंफर्म रेल टिकट की यात्रा

लापरवाही के सम्राट हम दरवाजे बैठ की यात्रा

बिना हैंडल हाथों के स्कूटर चलाए

पुलिस भी चिल्लाय मगर अपुन उनको ठेंगा दिखाय

मगर चलती नहीं लापरवाही श्रीमती के आगे

जो वो देख ले तो हम स्वतः होशियार हो भागे

 

द्वारा अमित तिवारीशून्य’

ग्वालियर .प्र.

दिनांक   28 सितम्बर 2020

रविवार, 27 सितंबर 2020

पनिहारिन प्यारी सखी एक चित्र लेखन द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

पनिहारिन प्यारी सखी

एक चित्र लेखन

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

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सुन री सखी प्यारी सखी

सुन ले मेरे हिय की कहानी

 


कह जो ना पाई अम्मा-बाबा से

तड़पते ह्रदय की जुबानी

 

पी के साथ के प्रणय के प्रसंग

और बिछड़न मे विरहनी की कहानी

 

उनके आलिंगन का रोमांच

और निष्ठुरता के एकांत की बयानी

 

तुझ बिन यहाँ कौन समझेगा मुझको

तू री सखी सबसे सयानी

 

जब गए पिया मोकों छोड़ मैके

मोहे साँची ना भावे रोटी ना पानी

 

एक तोसों बात करूँ तोहि आवे

जिया में अज़ब सी रवानी

 

सुनरी सखी प्यारी सखी

मेरे पिय सों प्रणय की कहानी

 

रोम रोम जलने और

धकसे करते जिया की जुबानी

 

आनंद सो उमड़ा आवत है

जब आयूं पी के सानी

 

मन मेरो यूँ ही कहे निकसे प्राण

बस बन के रहूँ पिया की दीवानी

 

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , म.प्र.

27.09.2020  

शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

ओसमयी ‘प्रकृति’ स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘

 

                          ओसमयी ‘प्रकृति’

स्वरचित कविता

द्वारा अमित तिवारी शून्य

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ओस है कि सोच है,

मन तो कुछ खामोश है

प्रकृति की निरीह कल्पना है ,

पंकज की पंखुडियों पर,

नेह का लेप है,

सृजन के शाश्वत् विधान सा,

अग्नि सा पवित्र और ज्योतिर्मय है ,

किन्तु तपन नहीं वरन है,

शीतलता का शौणित प्रवाह,

माधुरीतम- उज्जवलासम है,

इसका वितान-नयना भिराम ,

सम्यक सा और है,

समान जैसे किसी प्रेयसी,

के हों अधरों का पान,

चूमती धरा को अम्बर का मान,

सहज सरल सरितामयी है,

क्षुधा करा रही है स्तनपान,

जीव को मां का है,

एक ओस-कोस का निधान ,

छोटे से तरू-तृण ,

और मां के लालित्य का है ,

ममत्व भरे पय का आदान,

देख प्रकृति की उदात्त ओस‘ ,

नेह से कोख भरी है,

प्रणय का ही है ये अवदान,

प्रकृति में बस ओस-ओस-ओस,

बस ओस ही भरी है,

हरिता सी और ब्रहम के समान

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

दिनांक 25.09.2020

गुरुवार, 24 सितंबर 2020

भाव पल्लवन जहाँ चाह वहां राह द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

 

भाव पल्लवन

जहाँ चाह वहां राह

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

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मृगतृष्णा से भरे जीवन में मनुष्य यदि प्रयासों से भरे पुरुषार्थ को स्थिर मन  से साकार करे तो उसके लिए उन रास्तों के संकल्पों को सिद्ध करना कोई बड़ी बात नहीं होगी I बात केवल इतनी सी है कि व्यक्ति कब और कितनी गंभीरता से किसी उद्देश्य की प्राप्ति का संकल्प लेता है , और उसकी प्राप्ति के लिए सम्पूर्ण प्रयास का सामर्थ्य उड़ेल देता है I जेहन में कर्म और केवल कर्म व उसके अंतरण में सिर्फ़ उस लक्ष्य की प्राप्ति का धेय्य रहता है और इस भेद को की “जहाँ चाह है वहां राह बन ही जाती है , को स्वतः ही सिद्ध और स्पस्ष्ट करता है I

 

द्वारा अमित तिवारी “ शून्य”

ग्वालियर म. प्र.     

24.09.2020

बुधवार, 23 सितंबर 2020

ख्वाहिशें कुछ अधूरी सी स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

 

ख्वाहिशें कुछ अधूरी सी
स्वरचित  कविता
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”  


जीवन के इस हंसी दौर में
ज्यादा तो नहीं पर ख्वाहिशें
कुछ तो अधूरी रह गयी
जीवन अधुरा तो नहीं
पर प्यास कुछ तो अधूरी रह गयी
रूह का कर्म है जिस्म को चाहना
जिसको चाहत मिली ही ना हो
उसकी क्या बात है
ख़्वाब तो देखे थे पर क्या कहें  
कुछ तो अधूरे ही रहने को पैदा हुए
विषम थी कल्पना जीवन के राग की
लेकिन कुछ व्यंग्य से डेह गए
कुछ को मिली तिलांजलि
कुछ यु ही अधूरे से रह
जमीन दोज़ हो गए
 
फिर भी है आज जिन्दा और स्थापित भी
हाँ अलग बात है ख़्वाब कुछ तो हैं अधूरे भी
 
द्वारा
अमित तिवारी ‘शून्य’
ग्वालियर, म. प्र.    
 

मंगलवार, 22 सितंबर 2020

योग्यता की क्षमता का आंकलन स्वरचित अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

 

योग्यता की क्षमता का आंकलन
स्वरचित  अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी शून्य
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सर्वजगपूज्या योग्यतातप करके ही आती है
आंकलन की धार पर सेकर बनती प्रभावी है;
 
आदि मध्य अंत क्षमता का होता कहाँ है
वो तो बस परिश्रम की धार पर जिन्दा रहा है;
 
ये किसी विघ्न के राग से पोषित नही है
स्वप्नदृष्टा के भाल का श्रोणित यही है;
 
तप के बल से उत्तम होती योग्यता है
परे कर्म के तो सब शून्यका आंकलन भर है;
 
मैं के वर्णन से कर्म प्रभावी कहाँ होता है
योग्यता की क्षमता का आंकलन तो बस उसके निष्काम होने में होता है
 
द्वारा अमित तिवारी शून्य
,ग्वालियर म.प्र.
तिथि 21.09.2020

कर्मफल : एक लघु कथा द्वारा अमित तिवारी

 

कर्म फल

 एक लघु कथा

द्वारा अमित तिवारीशून्य’

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राजीव ट्रेन से उतरकार ग्वालियर स्टेशन से होता हुआ आटो पकडकर आई आई टी टी एम की तरफ रहा था मस्तिष्क में अनेकों विचार चल रहे थे कि काश जिस इंटरव्यू के लिए मैं वहां (ग्वालियर) आया हूँ ;उसमें मेरा चयन हो जाए तो मुझे और परिवार को कुछ राहत मिले ऐसा सोचते-सोचते राजीव अपनी मस्तिष्क के पटल पर अंकित कुछ यादों को टटोल रहा था I उसी समय उसके कर्मफल स्वरूप आटो उसे संस्थान की तरफ लिए जा रहा था, लेकिन यह बीतता पल पल उसे एक अमित आत्मविश्वास दिए जा रहा था I उसे याद रहा था कि किस तरह स्कूल और कालेज में हमेशा अब्बल आने परिणाम स्वरूप आज जिदंगी में एक बडे संस्थान में एक संभव नौकरी प्राप्त करने का मौका है ; जैसा कि कहते है कि कर्म मनुष्य का भविष्य और  और वर्तमान दोनों बदल देता है अच्छे कर्मों का प्रतिफलजीवन का मूल बदल सकता है’ और राजीव इसी तथ्य के सत्य होने की कल्पना के साथ अपने अतीत में किए गए सतकर्मों के आधार पर यह निश्चित मान रहा था कि वह इस संस्थान में इस पद को प्राप्त कर पाएगा। जैसे ही ऑटो संस्थान में प्रवेश करता है गार्ड द्वारा ऑटो के पास आकर पूछा जाता है कि क्या आप ही राजीव साहब हैं? राजीव गार्ड की तरह देखकर ऑटो चालक को पैसे देकर स्वयं के राजीव होने की बात कहता है। तभी गार्ड राजीव को गेस्ट हाउस तक पहुचाता है और उन्हे उनके रूकने के लिए दिए गए कमरे की चाबी और उससे सम्बद्ध औपचारिकताएं आदि पूरी करवाता है और ये कहकर कि आप चाय कॉफ़ी जो कुछ लेंगें, वो केन्टीन में फोन करके मगवां सकते है I कमरे में सामान रख नहा धोकर राजीव शाम चार बजे उसी संसथान के सभागार की तरफ हो लिया जहाँ उनका इंटरव्यू था इंटरव्यू पेनल में प्रत्याशियों से बोर्ड अनेका- अनेक प्रश्नों के साथ उनका साक्षात्कार ले रहे थे राजीव का साक्षात्कार भी बहुत आसानी से ज्यादातर  प्रश्नों के सही उत्तर के साथ सम्पन्न हुआ। राजीव को भी लग रहा था कि बोर्ड उनके उत्तरों से संतुष्ट था। तभी एक बोर्ड मेम्बर बाहर आकर अगले सुबह 10 तक परिणाम आने की घोषणा का समाचार दिया और सबको सभागार छोडने की इजाजत दे दी। राजीव सभागार से बाहर आते हुए; अपनी यादों के झरोखों में फिर से झाकने लगा और उसे याद आया कि कैसे स्कूल और कालेज के दिनो में कितनी निष्ठा और कडी मेहनत और लगन से अध्ययन किया और बिना किन्ही अधिक संसाधनो के होते हुए भी एक बेहतरीन अकादमिक रिकॉर्ड का प्रदर्शन पूरे छात्र जीवन में कर पाया, और उसके लिए पिताजी के दिए गए सूत्र सिर्फ निष्काम कर्म करो और किसी अतिरिक्त उपादेय की आवश्यकता नही है’।

अगले दिन नाश्ते के बाद लगभग पोने 10 बजे जब राजीव सभागार के नोटिस-बोर्ड की तरफ बढ रहा था तो मन में एक अजीव सी संतुष्टी और संहमती उसे आश्वस्त कर रही थी अगले कुछ ही क्षणों में सभी प्रत्याशी सभागार में चुके थे; फुसफुसाहट बहुत तेज हो गई थी और बोर्ड रूम से एक सदस्य हाथ में परिणाम लिए सूचना पटल पर चस्पा करने आया तो भीड ने उनका पीछा किया परिणाम चस्पा होने के कुछ देर में परिणाम को लेकर अच्छी और बुरी प्रतिक्रियायें मिलने लगी राजीव परिणाम देख भी नही पाया था कि दूसरे प्रत्याशियों के मुह से राजीव का नाम सुनने को मिला लोग कह रहे थे कि किसी राजीव” का सिलेक्शन हुआ है और कुछ लोग प्रतीक्षा में रखे गए है। इन शब्दों को सुनकर राजीव भावुक हो गया और कुछ ही पलों में भीड के वहां से छटने पर स्वयं जब परिणाम को सूचना पटल पर देखा तो मानों मन का नितान्त पूरा हो गया हो उसने ईश्वर को उन कर्मो को कर पाने के लिए धन्यवाद दिया जिसके हेतु से आज उसे सोउद्देश्य यह फल मिला। अपने कर्मो के इस फल के लिए वह ईश्वर को धन्यवाद कर रहा था।

द्वारा अमित तिवारीशून्य

ग्वालियर , मप्र

22.09.2020

चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...