बुधवार, 30 सितंबर 2020

परछायी का सच एक स्वरचित अतुकांत कवित द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

 

परछायी का सच

एक स्वरचित अतुकांत कवित

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

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कुछ तो कहती हैं ,

या चुप रहती हैं ,

ये परछाइयां

जीवन के दर्पण में

हर एक के तन -मन में

कुछ गहरी और उथली सी

बनती और बिगड़ी सी

राहों पर टपती सी

काली और स्याह

रातों में खो जाती

कालिमा मय हो जाती

जीवन के दर्पण को

वो तय तो करती हैं

पर क्यूँ चुप रहती हैं

बेवाक सी है लेकिन

वो मुझ सी दिखती है

छाया बनकर जो

जीवन का दीप बनी

वो मेरी बिटिया सी है

वो मेरी बिटिया ही है

 

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर म. प्र.

30.09.2020

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चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...