शिक्षक दिवस बनाम शिक्षक, शिक्षा, समाज और शिक्षकों को
समर्पित एक आलेख
द्वारा :अमित तिवारी “शून्य“
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राष्ट्र नायक श्री
सर्वपल्ली राधाकृष्णन जोकि भारत वर्ष के भूत पर्व उपराष्ट्रपति एवं जाने माने शिक्षा
विद रहे हैं, के जन्म दिवस को राष्ट्र एक बहुत महत्वपूर्ण दिन के
तौर पर श्री सर्वपल्ली के सम्मान में मनाता आया है। भारत यू तो त्यौहारों का देश
रहा है और यहां दिवस और तिथियों का बडा महत्व रहता है। लेकिन त्यौहारों को और गुरू शिष्य परंपरा को मानने वाले इस देश में असल में शिक्षक शिक्षा और समाज की असलियत क्या है? वो एक बडा विचारणीय प्रश्न
है।
कालान्तर में आजादी के
बाद देश में शिक्षा के क्षेत्र में कई नियामक बनाए गए, कई नीतियां आईं और समाज
में बदलाव के लिए शिक्षा में बदलाव की बात को भी समय- समय पर उकेरा गया। 5 सितंबर आते ही यू तो हम
सबको इस देश के निर्माता, प्रणेता और पालनहार सामान्य शब्दों में कहे तो भगवान
नही महज हाड- मांस का एक पुतला शिक्षक जो विभिन्न स्तरों पर समाज को विद्यार्थियों
के माध्यम से शिक्षित एवं ध्येय देने का काम करता आया है। एक ओर की जमीनी हकीकत ये
भी है जिसमें शिक्षक का हित, स्तर, आकांक्षाएं अकादमिक, रोजगार आदि सब हासिये पर
है एक ओर तो संस्थागत शिक्षकों की कमी है जिसे केवल ज्ञापित भर किया जाता है
उन्हें आंकडों पर भी स्थापित नही किया जा पाया शिक्षकों को अभी भी कई उपनामों एवं अनिश्चित
मानदेयों के मकड जाल में उलझाना मानों प्रशासन की शान हो, का ही परिणाम है कि
अतिथि शिक्षक ,शिक्षा
कर्मी विभिन्न किस्म के वर्ग शिक्षक, शिक्षा शिल्पी आदि जैसे शब्द
जिनका प्रशाशनिक मूल्य केवल आधे -अधूरे मानदेय को देकर तिरस्कार से भरे रवैये से
उस व्यक्ति की मजबूरियों का उत्तखनन कर ऐन-केन प्रकारेण अपनी प्रशाशनिक गतिविधियों
को सुचारू रूप से चलाना और देश के मीडिया पटल को बताना कि भावी पीढी के लिए शिक्षा
जगत में समाज के लिए कोई उच्च स्तरीय कार्य किया गया हो; बडा ही गैर जिम्मेदाराना
और राष्ट्र द्रोह जैसा ही कार्य है इस भाव को समझने के लिए लियो टाल्सटाय के एक
विचार को समझते है ‘‘ विकासशील देशों के प्रति उनकी स्थति का आकलन उस समाज
के शिक्षकों के स्तर (अकादमिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति ) के
आकडों से लगाई जा सकती है।‘‘
दूसरा विचार यदि
भारतीयता के परिदृश्य में लिया जाए तो चाणक्य के कहे गए सूत्र ये समझने के लिए
पर्याप्त होगें जो कि इस प्रकार है; ‘‘शिक्षक वो है जो राष्ट्र का निर्माता, प्रणेता और उसके विनाश
तक को निर्धारित कर सकता है .... युद्ध तो मैदानों में होते है लेकिन राष्ट्रवाद
का मूल शिक्षक के मस्तिष्क से होता हुआ युवाओं की शिराओं में रक्त के तौर पर बहता है जिससे
राष्ट्र जीते और हारे जाते है।‘‘
बहरहाल आज की स्थिति में
हमारे द्वारा शिक्षकों को देने के लिए केवल सम्मान होना काफी नही है यद्यपि
शैक्षणिक मर्यादाओं को न पाल पाने वालों केा शिक्षक पद भी नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन जिन्हें ये
पद या जिम्मेदारी दी गई है उनके प्रति पूरे वर्ष के सम्मान, स्तरीय आर्थिक और
सामाजिक विकास के हकदार होने का ध्येय हमेशा पूरा करना ही होगा । साथ ही समाज के
प्रति शिक्षक की जिम्मेदारी और कठिनतर होती जा रही है और समाज को भी शैक्षणिक
मानदण्डों, शैक्षणिक परिवेश बनाना होगा लेकिन शिक्षा के बाजारीकरण
और दुकानदारी व्यवस्था से देश को बचाना ही होगा।
देश के भविष्य और
परिस्थितियों के संदर्भ में आज शिक्षक और उसकी भूमिका बहुत प्रासंगिक है देश को
उसके महान शिक्षकों के लिए और महान शिक्षकों को इस महान देश के लिए तपना तो पडेगा
ही। देश और शिक्षकों का इस शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”
दिनांक 05.09.2020
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