गुरुवार, 3 सितंबर 2020

भाव पल्लवन समय सृजन में लगता है , विसर्जन में नहीं (रिश्ते हों या जिन्दगी ) द्वारा : अमित तिवारी “शून्य”

 

भाव पल्लवन

समय सृजन में लगता है , विसर्जन में नहीं (रिश्ते हों या जिन्दगी )

द्वारा : अमित तिवारी “शून्य”    

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मन में विचारों का घना कुहरा सा उमड़ा हुआ था और दिन भर की व्यस्तता के साथ एक छोटे से अंतराल के लिए बैठा ही था की सामने वाले घर से कुछ आवाजें आ रहीं प्रतीत हुयी I जब पता किया तो मालूम हुआ सामने वाले आनंद भाईसाहब के किरायेदार रवि ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया है, इस बात की चर्चा चाल रही थी I नंदिनी , ऊँचे स्वर में विलाप कर रही थी कि “आज आपने मुझे और मेरे रिश्ते को विसर्जित तो अवश्य कर दिया है लेकिन याद करिए वो दौर जब हमे अपने इस रिश्ते को बनाने में कितना समय लगा था I खेर आज आपको मेरी उन भावनाओ की क़द्र नहीं तो यह रिश्ता मेरी तरफ से भी टूट गया, अब इसमें कोई एक पल और भी ज्याया नहीं करुँगी I”

ऐसा कहकर मकान के सामने खड़ी नंदिनी हाथ में एक छोटा सा झोला लिए तेज क़दमों के साथ आगे निकल गयी I लोग तो खेर तमाशबीन बने खड़े रहे ; खुसर- फ़ुसर भी होती ही रही I लेकिन मुझे जिन्दगी के इस कडवे सच और रवि की रिश्तो को न निभा पाने की कमजोरी पर भरोसा नहीं हो रहा था ; क्यों उसने इस रिश्ते को समय देकर क्यों नहीं सृजित किया ....खेर  आज उसके रिश्ते और जिन्दगी एक दोराहे पर थे ; पर यकीनन नंदिनी के रिश्ते व जिन्दगी को जैसे विसर्जन की बड़ी त्रासदी झेलनी पड़ी , जिसे बनाने में उसने अपने जीवन का बहुमूल्य समय और भावनाए लगा दी; वो भावनाए , कल्पनाये सपने सब जो समय की परिधि में देखे थे ; गढ़े थे समयातीत से हो एक पल में ढेर हो गए I मायने यह ही रहे सृजन में समय लगता है विसर्जन में नहीं ; वो तो पल भर में हो जाता है रिश्ते हों या जिन्दगी I

 

द्वारा : अमित तिवारी “शून्य”

03.09.2020                  

 

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चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...