लगे रहो निशीथ पथ पर
बिना डरे
डिगो मत
फिरो मत
समेटो मस्तिष्क की
जिज्ञासा का जोर
अपने बाजुओं में
कि युग अब
किसी कृष्ण
राम का तो नही
बिना जले मिला आत्म दीप्ति का प्रकाश है किसे ☺️☺️
*अमित तिवारी "शून्य"
©कॉपी राइट है
अपने अंतर्मन के भावो को उकेरती लेखनी को थामता हुआ कोई खोया हुआ लेखक मेरा अपना वो खोया सा ...प्रतिबिम्ब
लगे रहो निशीथ पथ पर
बिना डरे
डिगो मत
फिरो मत
समेटो मस्तिष्क की
जिज्ञासा का जोर
अपने बाजुओं में
कि युग अब
किसी कृष्ण
राम का तो नही
बिना जले मिला आत्म दीप्ति का प्रकाश है किसे ☺️☺️
*अमित तिवारी "शून्य"
©कॉपी राइट है
चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023 ...