आलेख
पूर्वजों की स्मृति में किये गए
श्राद्ध का महत्व
द्वारा अमित तिवारी ; सहायक प्राध्यापक
भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान
ग्वालियर , भारत
श्राद्ध , भारतीय जीवन दर्शन
परंपरा में मनुष्य का अपने स्वयं की उत्पत्ति के कारक – पितरों, जिनके द्वारा प्रत्यक्षतः और
अप्रत्यक्ष उसकी उत्पत्ति हुई है ‘ की उपासना और उन्हें तर्पण कर उनको याद कर आशीष
लेने की वैज्ञानिक परंपरा है | श्राद्ध पक्ष प्रायः भारतीय हिन्दू मास आश्विन की
पूर्णिमा उपरांत कृष्ण पक्ष में अमावस्या तक मनाया जाता है | प्रायः यह वे तिथियाँ हैं जिनमें कुल या परिवार के पितर अवसान को प्राप्त हुए होते
हैं | अतः उनके लिए किया गया श्राद्ध उनको पूजने का फल देता है और वे आशीर्वाद दे
कुल के वर्त्तमान मुखिया और परिजनों का मंगल करते हैं | इन पंद्रह दिनों में क्रमशः
उनकी स्मृति में प्रत्येक हिन्दू परिवार का मुखिया अपने कुल की ओर से पितरों को
तर्पण करने हेतु जल का अर्घ्य देता है | घर की देहरी पर लेपन कर महिलाएं अपने कुल
की परंपरा के अनुसार भोजन बना घर के मुखिया से होम करवा ब्राह्मण और उससे पूर्व गौ
का भोजन करवाती हैं साथ में दान का भी महत्व है | सर्व पितृ अमावस्या का दिन इन सब
तिथियों में एक विशेष फल देने वाला है ; जिसमें उन सब पितरों जिनकी हमे विस्मृति हुई है या
जिन्हें हमने कभी देखा या जिन के विषय में कभी सुना नहीं की भी तृप्ति होती है और
वे सब हमे यानी अपनी इस नयी पीढ़ी को आशीष
देकर उनकी रक्षा करतें हैं | यदि वैदिक साहित्य या की लोक पद्धति को माने तो ज्ञात
होगा की श्राद्ध पक्ष वस्तुतः ईश्वरीय स्तुति और मनुष्य के बीच का अनाहात द्वार है
और यही भारतीय परंपरा है जिसमें देव और पितृ एक समान होते हैं | पितरों को नमन |
द्वारा अमित तिवारी ; सहायक प्राध्यापक
भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान
ग्वालियर , भारत