विसर्जन
एक अतुकांत
कवित्त
द्वारा अमित
तिवारी “शून्य”
ग्वालियर , भारत
विसर्जन विचारों
के मैल का
विचारों के मैल को गला करो विसर्जन
कर पाने को नव सृजन
पुनर्निर्माण मन - मस्तिष्कों का
विसर्जन स्वार्थ की मद में गहरे होते
कुसंस्कारों
की बेल का विसर्जन
ताकि
नवांकुर हो सकें वहां
नवीन
और परिपुष्ट विचारों का
विसर्जन
आलस्य की बीज रूपी
प्रथाओं
और पाखण्ड का विसर्जन
तब
जागेगा नव प्रभात और
हो
जायेगा पुनुरुथान मानवता का ||
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”
ग्वालियर , भारत
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