पंक्ति पर काव्य
पंक्ति : दिल ने दी आवाज़ तुम्हें
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”
ग्वालियर ; भारत
अकसर दिल में छिपाने की खलिश रहती है
हाँ कहे देती हूँ कि दिल ने दी आवाज़
तुम्हें है |
बनने और बिगड़ने के मानिंद जिन्दगी थी
हाँ रो लेती हूँ थोडा कि दिल ने दी
आवाज़ तुम्हें है |
लफ्जों को कहाँ तक कोई संभालेगा
यादों तले
हाँ सजदा किया करती हूँ तुम्हारा कि
दिल ने दी आवाज़ तुम्हें है |
मिट जाता नहीं कोई यूँ ही जहाँ में
किसी पर
हाँ होती है टीस की दिल ने दी आवाज़
तुम्हें है |
संभव नहीं था छु लेती तुम्हारे रगों की खुश्बू जरा सी
हाँ जानती हूँ तुम भी बड़े इत्रो-आब
हो गए कि दिल ने दी आवाज़ तुम्हें है |
सरगोशी या ख़ामोशी दिल में भी है
जुबां पे भी
देखती हूँ की तुम कुछ बदले से हो कि
दिल ने दी आवाज़ तुम्हें है |
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”
ग्वालियर , भारत
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