रचनाकार :अमित तिवारी शुन्य
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जिसने ठानी है अपनी सांसो को गिन पाने की ज़िद
किसी गम को हंसी में उड़ा पाने की ज़िद
इन सब जिदो से करते हुए जद्दोजेहद न एक कतरा आँख से गिराने की ज़िद
गर आये आंसू तो उन्हें पी जाने की ज़िद गर ना पी पाए समंदर तो उसमे सामने की ज़िद
यू तो लोग अंधेरो से भयभीत होते है
तो क्यों पालते हैं उन्ही अंधेरों को पालने की ज़िद ?
"जीवन के पर्यटन" में किसी को कभी पा लेने की ज़िद
तो कभी किसी से बहुत दूर चले जाने की ज़िद
लाखो रस्सियाँ हुई जलकर धुऑ, उनको जलकर भी है पाने की ज़िद
हमें है उस धुएं से फिर से उन्हें वही धागे बना पाने की ज़िद
धरती के वैधव्य को धो फिर से उसे सुहागन बना पाने की ज़िद ?
हाँ यू बन के कृषक चीर धरती का सीना उसे माँ बना पाने की ज़िद !!
कभी बिता हुआ वक़्त ना वापस आया है हमने ठानी है उसे ढून्ढ लाने की ज़िद
पुरखे भी कभी पूत हो जाते हैं बस एक ख्वाहिस उन्हें औलाद बनाने की ज़िद
उभरी है आज जग मे स्वयं से मुक्ति पाने की ज़िद
मगर नहीं है तो खुद के सच को छुपाने की ज़िद
यू तो बहुत आसान है औरो के घर जला देने की ज़िद
ये काश की कोई उठा पाता औरो के घर में चूल्हे जलाने की ज़िद
अब नहीं ए -अमित कोई ज़िद इस ज़िद के सिवा - की एक ज़िद
की अब तो है खुद बस एक आदमी बन जाने की ज़िद
अब नहीं ए - अमित कोई ज़िद इस ज़िद के सिवा कोई ज़िद
की काश ले पाता किसी रोते हुए बच्चे को हंसा पाने की ज़िद
पुरखे भी कभी पूत हो जाते हैं बस एक ख्वाहिस उन्हें औलाद बनाने की ज़िद