सब्र
एक अतुकांत
कविता
द्वारा
अमित तिवारी “शून्य”
तिनको को अगर
बनाना एक पेड़,
तो दिले नादाँ
तुझे सब्र से काम लेना होगा
अटखेलियाँ करते
बचपन को
जो देखना चाहो
बढ़ते तो सब्र रखना होगा
खुद के सपनो को बनने
में हकीकत
लगती हो कुछ देर
तो अपनी कर्मठता में सब्र न करो
क्रोध में सब्र हो
विरोध में सब्र
हो
राह में सब्र हो
टूटे
मायूस
दिल जलों
किसी
शख्स
...
को भी फिर
सब्र
जोड़ता
है
मोड़ता है
एक नयी
तैयारी
उर्जा
और
विजय
की तरफ
...
हाँ
सब्र
बस
सब्र
...
एक अदद
सब्र !!
द्वारा – अमित तिवारी “शून्य”
ग्वालियर