रविवार, 29 नवंबर 2020

चित्र आधारित : एक स्वरचित कविता “पाणिग्रहण का संस्कार” द्वारा : अमित तिवारी “शून्य” ग्वालियर , मध्य प्रदेश ==========

 


चित्र आधारित : एक स्वरचित कविता

“पाणिग्रहण का संस्कार”

द्वारा : अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , मध्य प्रदेश

==========

 

जीवन का मूल यही है,

कहलाता पाणिग्रहण संस्कार,

 

बिना परंपरा जीवन अधूरा,

किसने पाया इस जीवन का पार,

 

पिता के घर में पली थी बेटी,

नेह समेत पिता ने किया पाणिग्रहण का संस्कार,

 

माता वामा भाग विराजी,

पिता ने पाणिग्रहण कर सृजा नया परिवार,

 

भावुक मन हैं किन्तु हृदय खिलें है,

होते देखा जीवन का संस्कार,

 

नेह नीड की धारा निबेरे,

गढ़ता-प्यार का अप्रतिम द्वार,

जो थी कन्या कुल की लक्ष्मी,

आज बनी अर्धांगिनी उनकी,

 

उनसे जुदा नेह का नया संसार,

निज कुल सम जामाता कुल का भी रहता मंगल होवे विचार,

 

ज्ञान यही निज धरम यही है,

पितृ –धर्म में कन्या दान सम पुन्य नहीं है,

 

प्रेम प्रतिज्ञा नेह का धागा यद्यपि तोडा नहीं गया

किन्तु परम्पराओं की धुरी में नेह का नाता अब कुछ और हुआ बड़ा

 

आज हृदय तल से हर्षित  यूँ पिता भी होते हैं

फिर भी नैना तो किंचित उसकी बाल स्मृति में झरते हैं

 

बिटिया के नैना बहते हैं

पर तन मन तो पिय संग बसते हैं

 

हाँ पाणिग्रहण संस्कार मूल है

जीवन पथ के चलने का

 

जो बेटी थी आज बनी माँ

कल बेटी माँ, बन फिर

हो वामांगी , कोई नया

पाणिग्रहण फिर रचती है

 

हाँ जीवन का बस मूल यही है

कहलाता पाणिग्रहण संस्कार I

 

द्वारा : अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर , मध्य प्रदेश

गुरुवार, 26 नवंबर 2020

पल /क्षण /लम्हे स्वरचित अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

 

पल /क्षण /लम्हे

स्वरचित अतुकांत कविता

द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

==============

 

शून्य में था एक पल पला

पल क्षण भर में बना लम्हा

लम्हों में बदली ज़िन्दगी

बानगी रह गयी बदली ज़िन्दगी

पल क्षण और लम्हे तय हुए

बन गयी ज़िन्दगी एक तासीर सी

बह गयी वर्षों की कारा

लम्हों की श्रंखला में कहीं

वो आये भले थे अश्वेत थे

पर अब सब श्वेत हो गए

खो गए कहाँ बचपने के निशां

अब कहीं रह गए

ठूंठ से पल रुके

थी थर्राती जवानी

मिट गए अब यकीं

खो गए यार सारे पुराने अभी

पल क्षण भर में बना लम्हा

लम्हों में बदली जिन्दगी

बानगी रह गयी बदली जिन्दगी

 

 

                                                      द्वारा अमित तिवारी शून्य

 

भाव-पल्लवन “पढ़ें फारसी बेचें तेल” द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’ =================

 

भाव-पल्लवन

“पढ़ें फारसी बेचें तेल”

द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

=================

 

आज के युवाओं के वर्त्तमान परिपेक्ष्य में उनकी क्षमता, दक्षता और उनकी कार्मिक संलग्नता के बीच जो घोर अंतर देखने को मिलता है वो उनके प्रति एक घोर संकुचित व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण को पैदा करता है I जिसे मध्यकालीन भारत में मुगलों द्वारा फ़ारसी पढ़ने जैसे उच्च क्षमता के कार्य के तौर पर जोड़ा जाता है ; वहीँ उस स्तर की क्षमता का प्रयोग मात्र उथले और सतही कर्मों जैसे तेल बेचने जैसे कर्मो को सृजित करने में किया जाता रहा है I तो शाब्दिक व्यंजना, जिससे - कुछ उम्दा करके भी उथला परिणाम देने का भाव सृजित होता है व एक असंतुलन का भव्य प्रदर्शन होता है जैसे- सहजतम- सफलता आसान स्रोत तो नहीं किन्तु व्यक्ति विशेष यदि, उच्चतम क्षमता होने पर भी साधारण परिणामो को सृजित करता है तो असाधारण कर्मों से अति साधारण परिणामों की प्राप्ति ज्ञापित होती है जिससे स्थितियों का बनना व वर्तमान परिपेक्ष्य में उस उक्ति जिसे “पढ़ें फ़ारसी , बेचें तेल” कहते हैं का चरितार्थ होना भी प्रदर्शित करता है; यद्यपि यह व्यंग्य तो है पर क्षमता और परिणामों के बीच के असंतुलन पर सुन्दर शब्दों का एक जबर्दस्त समायोजन और प्रदर्शन भी है I

अतः क्षमता के मुताबिक परिणामों के सृजन, हेतु प्रयास और संसर्ग दोनों का गढ़े जाना, आज के युवा से अपेक्षित महत्वपूर्ण कारक हैं I

   द्वारा अमित तिवारी शून्य

बुधवार, 25 नवंबर 2020

शीत का कहर एक अतुकांत स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’ सहायक प्रोफेसर,आई आई टीटीएम ,ग्वालियर म. प्र.

 

शीत का कहर

एक अतुकांत स्वरचित कविता

द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

सहायक प्रोफेसर,आई आई टीटीएम ,ग्वालियर म. प्र.

 

===============

 

शीत का कहर,

उठ रही लहर,

शांत है सारा शहर,

सिरहन का प्रहर

 

जल रहे अलाव,

जम गए तलाव,

क्या कहें जनाब,

सत्य की हो नाव,

न डिगती बिन दुराव

 

जन –मन और शीत

पिघला सूरज और जमीन रेत

घूंघट की सी बात

जिस्मों ने ओढ़े निपात

 

शूल नहीं शीतलता का वार,

होता कोहरे का पारावार

संबंधों की ठंडाई या यह है ,शीत का बुख़ार,

जम करके ओढ़े , रजाई सोते हम हर बार

 

टूटती जुडती शीतलता

सूरज की चमक बिन जग है ठिठुरता,

मेलों में औस की कोमलता,

शीत की प्रबलता,

ठंडी वात की तरलता,

विकृत शीत की क्षमता

सच है ...शीत का है कहर

उठ रही ठंडी सी कोई लहर

  

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

सहायक प्रोफेसर,आई आई टीटीएम ,ग्वालियर म. प्र.

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

युवाओं में घटता देशप्रेम: एक परिपेक्ष्यमय आज का आंकलन आलेख द्वारा अमित तिवारी सहायक प्रोफेसर भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्‍थान (भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय का संगठन) ग्वालियर म.प्र.

 

युवाओं में घटता देशप्रेम: एक परिपेक्ष्यमय आज का आंकलन

 

आलेख द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्रोफेसर

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्‍थान

(भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय का संगठन)

ग्वालियर म.प्र.

 

 

 

 

आज के परिपेक्ष्‍य में भारतीय युवाओं की मानसिकता का सूक्ष्‍म आंकलन करें, तो ज्ञात होता है,कि भारत के युवाओं के डी एन ए में एक विशेष भावना; जिसे स्‍वयं की मातृभूमि या राष्‍ट्र के प्रति गर्व या गौरव की भावना द्वारा पारिभाषित किया जाता है का एक विशेष अभाव देखने को मिलता है। यदि इस तथ्‍य के कारण व कारकों का विश्‍लेषण करें, तो ज्ञात होता है कि आज के परिवारों की संरचना का स्‍तर व उनमें बुनियादी मूल्‍यों का ह्रास व युवायों का स्‍तर हीनता के स्‍तर के चिन्‍तन आदि में संलग्‍न होना एक विशेष कारण है जो उनके रवैये में बदलाव के कारण को ज्ञापित करता है। राष्‍ट्र प्रेम मूलत: किसी भी व्‍यक्ति विशेषकर उस नागरिक के अंत:मन की वह भावना है जहॉ से प्रत्‍येक परिपेक्ष्‍य में अपने संप्रभु राष्‍ट्र के प्रति आस्‍था, निष्‍ठा, प्रेम, और गौरव का मत उद्भाषित होता है, निश्चित तौर पर राष्‍ट्र के लिए किन्‍ही दिग भ्रमित या नकारात्‍मक पक्षों पर भी समस्‍त प्रकार से एक राष्‍ट्रप्रेमी नागरिक का ना तो ध्‍यान जाता है व ना ही वह उसे प्रचारित या संर्वधित ही करता है, वरन् राष्ट्र  की नकारात्‍मक स्थितियों में सुधार हेतु वह प्राण-पण से स्‍वयं को लगा देता है।

 

 यूं तो राष्‍ट्र किसी परिधि का नाम मात्र नही है, बल्कि एक भौगोलिक परिदृश्‍य में विकसित विचारधारा है जहॉ प्रत्‍येक व्‍यक्ति सामाजिक तौर पर पला बढ़ा होता है और जहॉ संस्‍कार जनित परिदृश्‍य जिनमें विविध भाषाओं , धर्मों , वर्गों और प्र‍जाति व मत आदि के लोग सहजता से भौगोलिक परिधि में आश्रय के साथ स्‍वतंत्रता व सहयोग व सद्भाव से रहते हैं और भूमि या धरा को मातृ सम संज्ञा देते हैं; राष्‍ट्र कहलाता है। राष्‍ट्र के विचार में चार तत्‍व कारक के तौर पर होते हैं- 1. भू-भाग  2. जनसंख्‍या      3. शासन या सरकार और    4. समता

उपरोक्‍त्‍ चारों संसर्गों में राष्‍ट्र के प्रति उसकी विभिन्‍न उपलब्‍ध दृष्टिकोणों में सच्‍ची आस्‍था व प्रत्‍येक परिस्थिति में निष्‍ठा राष्‍ट्र प्रेम कहलाता है। राष्‍ट्र-समाज व परिवार के माध्‍यम से होते हुए व्‍यक्ति यानि नागरिक या गण से ही बनता है और उसकी अपने प्रति निष्‍ठा और प्रेम की भावना से मजबूत बनता है। आज के परिपेक्ष्य में परिवारवाद के विखराव और उसके ऊपर सब पर हावी होते उपलब्ध बाजारवाद स्वरूप संकीर्ण निजत्व और आत्मबोधित मानसिकता के  साथ से युवाओं की स्वार्थ और निजता पोषित विचारधारा , आज के युवा की एकात्मवाद और केवल मैं की भावना को संदर्भित करती है भारतीय परिपेक्ष्य में राष्ट्रवाद एक महती संकल्पना और विचार है,जिसके प्रतिफल में सृजित निज भूभाग या मातृभूमि के प्रति लगाव में सृजित निज भूभाग के प्रति लगाव और सर्वस्व निक्षेपण की युवा भावना सामान्य अर्थों में देश प्रेम कहलाती है।  यद्यपि आज के स्वाधीन देश में युवा स्वाधीनता के महत्व को नहीं समझ पाता या समझता क्योंकि इस हेतु उसे सब केवल विरासत में ही मिला है; उसने स्वयं बहुत कुछ गढ़ा नहीं होता। अतः इसके महत्व व इसके सृजन के लिए किए गए बलिदान को नहीं समझ पाता, और स्वयं में उसके प्रति आस्था और प्रेम का भाव भी नहीं रख पाता । आधुनिक युग में वैश्वीकरण की भावना स्वरूप पनपे बाजादवाद से सृजित रोजगार की संकल्पना महज भर, आज के युवा का ध्येय मात्र हो गया है। उस पर आर्कषण का कलेवर मानवीय पृष्ठभूमि से भी व्यक्ति के भीतर से मातृभमि के प्रति निजी व सामाजिक जिम्मेदारी को ,केवल और केवल नेताओं , सेवा में होने वाले जनसेवकों या सरकारों का काम समझ, स्वयं और संबंधित मेरे के इसमें शून्य लगाव की भावना को न केवल प्रदर्शित करते हैं वरण पहले मैं और मेरे निज जनों को ही ; राष्ट्र के पूर्व रखते हैं । राष्ट्रहित के लिए त्याग कराधान, एकता संर्वधन और विकास के लिए बॅूद-बॅूद से घड़े भरने की भावना भी कही न कहीं दब सी गयी है या सिर्फ मैं और मेरे में खो सी गयी हो जैसे ।

इसे दूर करने हेतु जीवन मूल्‍यों में देश हित व देश के प्रति सम्‍मान और आदर के भाव का सृजन एक महत्‍वपूर्ण कारक हो सकता है । परिवार में बच्‍चों की परिवरिश के साथ उन्‍हें राष्‍ट्र बोध और राष्‍ट्र हित के लिए दिए जाने वाले त्‍याग की भावना को समझने में बहुत मदद मिलती है। राष्‍ट्र हित सबसे बड़ा है और राष्‍ट्र के हित में ही सर्वसाधारण का हित या उन बच्चों का हित भी निहित होता है जो आज मैं और मेरे की भावना से ग्रसित हैं । इस हेतु सभी के अन्‍दर राष्ट्र तुम्‍हे क्‍या देगा से बढ़कर तुम राष्‍ट्र को क्‍या दे सकते हो की भावना पर बल देकर उनके मन में राष्‍ट्र के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव जगाया जा सकता है , क्योंकि राष्ट्र अपना रंग अवश्य गढ़ता ही है मूल में बस मातृभूमि का सा भाव बीज रूप में जगे बस , देश और मिटटी की रंगत दिलों को मोड़ देती है।

 

द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्रोफेसर

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्‍थान

(भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय का संगठन)

ग्वालियर म.प्र.

दिनांक- 20.11.2020

सोमवार, 23 नवंबर 2020

8 नबम्बर 2012 तिथि: आई आई टी टी एम, में सहायक प्रोफेसर पद पर 8 साल पूरे, बांकी हैं अभी ज़ायके नौकरी के (सफ़रनामा अभी बाकी है) एक समीक्षा द्वारा अमित तिवारी सहायक प्रोफेसर आई आई टी टी एम पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार का एक स्‍वायत्‍त संगठन ग्‍वालि‍यर मप्र

 

8 नबम्बर 2012 तिथि: आई आई टी टी एम, में सहायक प्रोफेसर पद पर 8 साल पूरे,  बांकी हैं अभी ज़ायके नौकरी के (सफ़रनामा अभी बाकी है) एक समीक्षा

 

द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्रोफेसर

आई आई टी टी एम

पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार का एक स्‍वायत्‍त संगठन

ग्‍वालि‍यर मप्र.

 

 

 

 

5 नबम्वर 2012 का मध्यम सर्द दिन था । जिसमें आई आई टी टी एम की एक यात्रा पूर्ण कर आई आई टी टी एम की ही दूसरी यात्रा शुरू हो रही थी। दोपहर 12.30 बजे तक सारा काम काज यानि सेमेस्टर के पेपर्स , अटेण्डेंस और बाकी के काम निपटा कर, दस्‍तावेज वगेरह पैक करके डबरा स्टेशन पर, आज की एक महत्‍वपूर्ण यात्रा के लिए (जीवन में पहली बार स्लीपर एसी ट्रेन कोच- थर्ड एसी) कौतूहल के साथ फिलहाल ही डबरा से ग्‍वालियसर तक की यात्रा के लिए ट्रेन के इंतजार में बैठा था। उस लंबी यात्रा के पूर्व ग्वालियर (आई आई टी टी एम) पहुचकर संस्‍थान में अपने टीचिंग एसोसिएट पद की जिम्मेदारी, जो कि केवल आज तक ही थी, पूर्ण करके ग्वालियर से ही भुवनेश्‍वर (ओड़ीशा) की यात्रा उत्कल एक्सप्रेस से करनी थी। बहरहाल जीवन में बहुत कुछ घट रहा था और जीवन को मैं और जीवन मुझे बहुत  कुछ निष्‍ठा पूर्वक दे भी रहा था। खैर आज की वो डबरा से ग्वालियर तक की यात्रा कुछ भावुक कर देने वाली थी। घर से (डबरा) स्टेशन और स्टेशन (डबरा) से ग्वालियर तक आना एक नया सा अनुभव रहा था। खैर ट्रेन डबरा स्टेशन पर सही समय से थोडी विलम्ब से थी। एक ट्रोली और एक पिठ्ठू बैग लिए में ट्रेन  में स्लीपर कोच में अपनी डबरा से ग्वालियर की टीचिंग असोसिएट की शायद  आखिरी यात्रा पूरी कर ग्वालियर प्लेटफोर्म पर पहुंच चुका था। वहां भावुकतावश एक छात्र (अब पूर्व) द्वारा मुझे मय सामान के वहां से (ग्‍वालियर रेलवे स्टेशन) संस्‍थान तक मय सामान के पहुचाया गया।

संस्‍थान में पहुंचकर सबसे पहले मैने मन्दिर में दर्शन किए और वापस अपने कक्ष की ओर जाकर अपने महत्वपूर्ण दस्तावेज और महत्वपूर्ण सामाग्रियो को समुचित तरीके से समायोजित कर सम्बद्ध अधिकारियों को सौंप दिए। शेष रहे मेरे औपचारिक नोड्यूज फोर्म तो उसे सभी सेक्‍शनों से उस पर नोड्यूज के हस्ताक्षर करा और लगभग 4 बजे तक अपने कमरे की चाबी सम्बद्ध व्यक्ति को सौंपकर; स्‍वयं के लिए आयोजित एक औपचारिक विदाई समारोह जो विशेषकर छात्रों द्वारा आदरणीया निदेशक महोदया और अन्य वरिष्ठों की उपस्थिति मे हो रहा था, में शामिल हुआ। वहां जाकर सच में एक बार एहसास हुआ कि आज एक बहुत अलग यात्रा खत्म होकर, एक नई यात्रा की शुरूआत हो रही थी। छात्रों के स्नेह और उनके द्वारा मुझे मिलने वाले  सम्मान ने वरिष्‍ठों समेत मुझे आत्‍मविभोर कर दिया। आज मेरा दिन था और शायद पहला दिन था जब 60 मिनट बिना रूके बोलने वाला शिक्षक भावुकतावश बोल पाने में कुछ असहज था, किन्तु वो विदाई समारोह आई आई टी टी एम की मेरी एक यात्रा पूर्ण हो नई यात्रा के शुरू होने की स्वागत पार्टी जैसी थी। मैं भावुक भी हुआ और भावुकता में बीते दिनों की परिस्थितियां शब्दों में बयां हो उठी। जीवन बदल रहा था, लेकिन मैं मेरे परिवार से दूर एक ऐसी जगह जा रहा था जिसके विषय में मैंने सुना भर ही था हांलाकि शिक्षा जगत का इससे पूर्व का नई दिल्ली का दो से अधिक वर्ष का अनुभव और इससे पूर्व पर्यटन क्षेत्र में की गई, लगभग इतने ही वर्ष की सेवा ने मुझे बहुत हद तक कई व्यवसायिक जीवन के स्तरीय अनुभव देकर एक कठिन परिश्रमी और कर्मठ व्‍यक्ति की परिधि में ला खड़ा किया। खैर विदाई के बाद भावुकता को संभालते हुए अब ट्रेन का समय था, यकीनन ट्रेन का समय हो चुका था, मैं घबराया हुआ था कि ट्रेन मिस ना हो जाए लेकिन छात्रों में मुझे वाकायदा अपनी जगह से स्‍टेशन समय पर छोडा, लेकिन आश्‍चर्य था कि स्टेशन पर एक दो नही लगभग बीसेक छात्रों का समूह था। मेरा कोच आगे आना था, लेकिन किन्ही कारणों से पीछा आया था। इसलिए अब लगभग पूरा प्लेटफार्म क्रोस करके अंतिम छोर तक पहुचना मेरे लिए बहुत मुश्किल था लेकिन मुझे याद आता है कि किस तरह लडकों की उस टीम ने मेरे सारे सामान को किस तरह आसानी से मेरी बर्थ और कोच में मुझसे पहले पहुंचा दिया था। अब आगे की यात्रा में मेरा घर यानि डबरा था जहां, मेरे पिताजी (पापा) मुझे रात का खाने का डिब्‍बा देने के बहाने या यूं कहॅूं मिलने आए थे। लेकिन डबरा के बाद इस यात्रा में एक लंबा समय लगभग दो दिन का समय शेष था। मन में बहुत मिली-जुली प्रतिक्रियाएं व भाव आ रहे थे। रह-रहकर छात्रों,घर से (मम्मी, पापा और पत्नि का फोन) आता रहा। जिसे मैं सबसे अधिक और भावुकता के साथ याद रहा था, वो मेरे बेटे राम का चेहरा था जो उस समय लगभग केवल डेढ़ महीने का ही था। घर, परिवार, पत्नि ,मां-बाप सबको याद कर रहा था, यू कहॅू कि भूला ही कहां था। लेकिन इतना ज्यादा थका हुआ था (क्योंकि ऑफर लेटर आने के बाद से बहुत सारी औपचारिकताओं को पूरा करने में उलझा रहा और कई तरह के घर परिवार के कामों में कब यह दिन आ गया पता भी नही चला), खैर अब झांसी स्टेशन आ चुका था। मैने अपनी लॉअर बर्थ पर खाना खाया। आगे अब कुछ पढने के असफल प्रयास के बाद मैं सो गया और मेरी नींद रात में एक दो बार ट्रेन के रूकने की आवाज के साथ खुलती रही। लेकिन सुबह देर तक में ट्रेन में सोता रहा। यकीनन अगला दिन लग चुका था। फ्रेश होकर चाय वगैरह पीकर घर पर फोन आदि लगाकर फिर यात्रा और स्टेशनों केा पढने समझने और अपने साथी यात्री से बातचीत में कब रात हो गई पता ही नही चला। अभी भी ट्रेन को समय लग रहा था क्योकि अब तक ट्रेन बहुत लेट हो चुकी थी। अब ट्रेन शायद उड़ीसा में प्रवेश कर गई थी। यह 7 नवम्बर की देर शाम का समय था जब मेरी ट्रेन उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्‍वर में पहुंची। बडे इत्मिनान से पहले ही सामान आदि लेकर मैं ट्रेन के दरवाजे पर खडा था। साथी यात्री की मदद से मैं स्टेशन पर उतर गया था। एक छात्र के दोस्त जो कि आई आई टी टी एम के भुवनेश्‍वर केन्द्र में पढ़ता था कि मदद से मैं आटो से होता हुआ आई आई टी टी एम के भुवनेश्‍वर केन्द्र में पहुंच चुका था। लोग भाषा और परिवेश मेरे लिए काफी नया था फिर भी वहॉ मुझे सबका सहयोग मिला । मैं उस रात से आगे आने वाले कुछ दिनों के लिए वैकल्पिक व्‍यवस्‍था होने तक आई आई टी टी एम भुवनेश्‍वर के गेस्ट हाउस में ही लगभग 8 से 10 दिन के लिए रूका। जहां मेरे और साथी भी मेरे बाद अपनी अपनी ज्वाइनिंग देने आते रहे। 8 नवम्बर का दिन था,  अल सुबह जल्दी नहा धोकर मैं तैयार हो गया। नाश्‍ता करने कैंटीन जो कि मैस मे ही थी नाश्‍ता करके अपने दस्तावेजों और ज्वाइनिंग रिपोर्ट के साथ कार्यालय पहुंच गया। हालांकि मैं सुबह 9.30 पर ही पहुंच गया था,  तब तक अधिकतर स्टाफ नही आया था , एक घण्टे के अन्दर सब लोग वहां पहुचने लगे थे, और इसके बाद मैने सुबह ही अपनी ज्वाइनिंग देकर आई आई टी टी एम के भुवनेश्‍वर केन्द्र से मेरे सहायक प्रोफेसर पद के सफर की शुरूआत की इस फील्ड और संस्थान में पहले काम कर लेने का फायदा मुझे अवश्‍य मिला। शीघ्र ही अत्यन्त दोस्ताना माहौल में मैने अपना काम शुरू किया। अधिकतर लोग (वरिष्‍ठ एवं साथी) मेरे व्यवहार व कार्य से प्रसन्न दिखाई दिए और धीरे-धीरे में भुवनेश्‍वर केन्‍द्र में मेरी एक अच्छा कार्यानुभव छवि विकसित हुई। आगे 6 महीने बाद ईश्‍वरीय कृपा से परिवार की प्रार्थना स्‍वरूप मेरी यह यात्रा ग्‍वालियर केन्‍द्र में स्‍थानांतरित हो अभी जारी है, सुकून इस बात का है कि आज मैं अपने गृह नगर में ही हॅू। सेवा में रहते उच्‍च सेवा मानदंड स्‍थापित करते हुए दो बातों – कठिन परिश्रम और दिए गए कार्य को क्षमता अनुरूप उचित प्रकार से निष्‍पादित करना मेरा हमेशा ध्‍येय रहा। सेवा में रहकर, बहुत सारी क्षमताओं और रूचियों का निर्माण मुझमें हुआ और एक बेहतर पेशेवर की छवि भी विकसित हुई । निश्चित तौर पर राष्‍ट्रीय स्‍तर पर शीर्षस्‍थ तो नही लेकिन एक शिक्षाविद होने के नाते पर्यटन जगत में महती पहचान भी मिली, शेष कर्म का विधान अभी बाकी है उन्‍नति के कई वितान अभी बाकी हैं। आई आई टी टी एम का यह सफर बहुत सुहाना रहा है और मेरे स्वयं के जीवन का एक महत्वपूर्ण सफ़रनामा है; हालांकि यात्रा अभी जारी है और कई मुकाम अभी बांकी हैं मेरे दोस्तों।

द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्रोफेसर

आई आई टी टी एम

पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार का एक स्‍वायत्‍त संगठन

ग्‍वालि‍यर मप्र.

 

*यह लेखक का नि‍जी जीवन वृत है, जिसमें वर्णित विचार उनके निजी हैं जिसका किसी संस्‍था से कोई वास्‍ता नही है।

 

बुधवार, 18 नवंबर 2020

दीपोत्सव द्वारा अमित तिवारी ‘’शून्य’ ग्वालियर म.प्र.

 दीपोत्सव

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

===================================================================

 

दीपावली का पर्व अपने आप में एक पर्वों की श्रृंखला है जिसे दीपोत्सव के पॉच दिवसीय पर्व-सर्ग के तौर पर मनाया जाता है। भारतीय परंपरा में इसके दीपोत्‍सव के प्रथम दिवस को आरोग्य के प्रतीक स्वरूप धनवन्तरी देव के अवरतण दिवस के तौर पर मनाया जाता है। द्वितीय दिवस नरक चौदस या रूप चौदस के तौर पर मनाया जाता है किविंदितियों में इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं।मुख्‍य पर्व दीपावली अमावस्‍या के दिन होता है जिस दिन लक्ष्‍मी गणेश का पूजन विशेष फलदायी होता है। पड़वा यानि प्रथमा तिथि को श्री कृष्‍ण स्‍वरूप गोवर्धन पर्वत के पूजन का विशेष विधान है। पाचवे और पर्वान्‍त के अंतिम दिवस को यमद्वितीया या भाई दौज के तौर पर मनाया जाता है। दीपोत्सव का पर्व संपूर्ण जीवन व वर्ष भर के त्यौहारो की श्रृंखला का एक ऐसा पर्व है जिसे मनाने हेतु हर वय, वर्ग और परिधि की हरेक परंपरा का प्राणी उत्साहित रहता है। यू तो ऋषि परंपरा द्वारा प्रोन्नत त्यौहारों की परंपरा स्वयंभू होकर उत्सवों को जीवन में एक महत्वपूर्ण आनन्द के घटक के तौर पर सहेजी जाती है। वहीं दूसरी ओर इस उत्सवों की श्रृंखला की वैज्ञानिकता व समयोचित व्‍यवस्‍था समाजवाद और अर्थतंत्र की परिधि में भी समझी और सहेजी जाती है; जिसमें भारतीय जीवन दर्शन और संस्कृति के पुट, स्वास्थ्य और आरोग्य का तत्व रूप सम्मिश्रण और नैसर्गिकता लिए परंपराओं की मिठास संपूर्ण जनमानस और परिवार के एकाकार को सुनिश्चित करता है। कर्त्‍तव्‍य पथ में गए हुए कर्मवीर अपने कर्मठ जीवन से किंचित विश्राम लेकर, भाव विभोर हुए गृह परिवार के परिवेश में अल्पकालिक ही सही पुनः प्रवेश अवश्‍य ही करता है। जिससे पारस्परिक स्नेह और रिश्‍तों को एक नई जीवंतता मिलती है। यद्यपि आज के बाजारवाद और त्यौहारेां को मिले प्रचार तंत्र से सृजित अर्थतंत्र ने एक और दीपोत्सव में एक नवीन आर्कषण व चमत्कार जोड़ा है, वहीं दूसरी ओर इन सबका उद्देश्‍य प्रचुर मात्रा में अर्थ अर्जन का ध्येय रखना भी है, किन्तु यह परंपरा समाज के अनुमानित सिद्धांतों को एक नई सम्मिश्रित प्रासंगिकता  देती है।

पुनः-पुनः इस त्यौहार की चमक अधिक प्रासंगिक होकर , मानव जीवन के अनेक अकाट्य दुदांतों को मिटाते हुए मिलन-सारिता, परिवारवाद, सामंजस्य, सौहार्द्र , सफाई और समयोजित शुभलक्षणों को सृजित करती हुई श्री की वाहक बनती है। इस त्यौहार द्वारा जीवंतता और जीवन के उद्देश्‍यों को एकाकार करके समय बद्ध नियोज्यताओं को पोषित तो अवश्‍य किया जाता है। त्यौहारी परिवेश में समय किसी तेज धमक सा चला जाता है लेकिन बीत जाने पर इसका आलोक किसी शून्यता का बहाव देता हुआ, प्रश्रय-आश्रय और आनन्द की श्रृंखलाएं गढ़ जाता है। जिससे व्यक्ति और समाज का नित-नित पुर्नरूपण होता जाता है।

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

दिनांक- १८.११.२०२०

चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...