बुधवार, 18 नवंबर 2020

दीपोत्सव द्वारा अमित तिवारी ‘’शून्य’ ग्वालियर म.प्र.

 दीपोत्सव

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

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दीपावली का पर्व अपने आप में एक पर्वों की श्रृंखला है जिसे दीपोत्सव के पॉच दिवसीय पर्व-सर्ग के तौर पर मनाया जाता है। भारतीय परंपरा में इसके दीपोत्‍सव के प्रथम दिवस को आरोग्य के प्रतीक स्वरूप धनवन्तरी देव के अवरतण दिवस के तौर पर मनाया जाता है। द्वितीय दिवस नरक चौदस या रूप चौदस के तौर पर मनाया जाता है किविंदितियों में इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं।मुख्‍य पर्व दीपावली अमावस्‍या के दिन होता है जिस दिन लक्ष्‍मी गणेश का पूजन विशेष फलदायी होता है। पड़वा यानि प्रथमा तिथि को श्री कृष्‍ण स्‍वरूप गोवर्धन पर्वत के पूजन का विशेष विधान है। पाचवे और पर्वान्‍त के अंतिम दिवस को यमद्वितीया या भाई दौज के तौर पर मनाया जाता है। दीपोत्सव का पर्व संपूर्ण जीवन व वर्ष भर के त्यौहारो की श्रृंखला का एक ऐसा पर्व है जिसे मनाने हेतु हर वय, वर्ग और परिधि की हरेक परंपरा का प्राणी उत्साहित रहता है। यू तो ऋषि परंपरा द्वारा प्रोन्नत त्यौहारों की परंपरा स्वयंभू होकर उत्सवों को जीवन में एक महत्वपूर्ण आनन्द के घटक के तौर पर सहेजी जाती है। वहीं दूसरी ओर इस उत्सवों की श्रृंखला की वैज्ञानिकता व समयोचित व्‍यवस्‍था समाजवाद और अर्थतंत्र की परिधि में भी समझी और सहेजी जाती है; जिसमें भारतीय जीवन दर्शन और संस्कृति के पुट, स्वास्थ्य और आरोग्य का तत्व रूप सम्मिश्रण और नैसर्गिकता लिए परंपराओं की मिठास संपूर्ण जनमानस और परिवार के एकाकार को सुनिश्चित करता है। कर्त्‍तव्‍य पथ में गए हुए कर्मवीर अपने कर्मठ जीवन से किंचित विश्राम लेकर, भाव विभोर हुए गृह परिवार के परिवेश में अल्पकालिक ही सही पुनः प्रवेश अवश्‍य ही करता है। जिससे पारस्परिक स्नेह और रिश्‍तों को एक नई जीवंतता मिलती है। यद्यपि आज के बाजारवाद और त्यौहारेां को मिले प्रचार तंत्र से सृजित अर्थतंत्र ने एक और दीपोत्सव में एक नवीन आर्कषण व चमत्कार जोड़ा है, वहीं दूसरी ओर इन सबका उद्देश्‍य प्रचुर मात्रा में अर्थ अर्जन का ध्येय रखना भी है, किन्तु यह परंपरा समाज के अनुमानित सिद्धांतों को एक नई सम्मिश्रित प्रासंगिकता  देती है।

पुनः-पुनः इस त्यौहार की चमक अधिक प्रासंगिक होकर , मानव जीवन के अनेक अकाट्य दुदांतों को मिटाते हुए मिलन-सारिता, परिवारवाद, सामंजस्य, सौहार्द्र , सफाई और समयोजित शुभलक्षणों को सृजित करती हुई श्री की वाहक बनती है। इस त्यौहार द्वारा जीवंतता और जीवन के उद्देश्‍यों को एकाकार करके समय बद्ध नियोज्यताओं को पोषित तो अवश्‍य किया जाता है। त्यौहारी परिवेश में समय किसी तेज धमक सा चला जाता है लेकिन बीत जाने पर इसका आलोक किसी शून्यता का बहाव देता हुआ, प्रश्रय-आश्रय और आनन्द की श्रृंखलाएं गढ़ जाता है। जिससे व्यक्ति और समाज का नित-नित पुर्नरूपण होता जाता है।

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

दिनांक- १८.११.२०२०

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चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...