कमाई
एक अतुकान्त स्वरचित
कविता
द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘
ग्वालियर म.प्र.
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जीवन और कमाई ,
छोटी छोटी पाई,
मेरे घर में आई,
श्री थी तब
मुस्काई,
पर थी वो सकुचाई,
देखके मुठ्ठीभर
की पाई ।
आशाओं का आकाश
अनंत,
इनका कहॉ होता है
अंत,
कैसे हो फिर
आशाएं शांत,
करता मन विचार
एकांत,
पाया खोया इच्छा
जनित तंत,
मेरी छोटी कमाई
और आशाएं अनंत।
कैसे मेल करू मैं
इनमें ,
इनसब में होता ना
साम्य सच्चे अर्थों में ,
जीवन की हर जरूरत
में,
लेन-देन और जीवन
के व्यापार में,
प्यार परवरिश
मान-सम्मान में,
हो दुकान या कि
मकान में ...
आती काम केवल
कमाई,
होता बहुत अधूरा
बिन कमाई,
हर जीवन का हर
काज़ है, हाय कमाई…
तेरी कमी किसी को
रास न आई,
जीवन में खुशियों
का पर्याय कमाई,
सिर्फ कमाई,
धन की इज्जत की
या निष्ठा की हो वो कमाई।
द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘
ग्वालियर म.प्र.
दिनांक- १८.११.२०२०
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