स्वागत है पर्यटन जगत में
एक स्वरचित अतुकान्त कविता
अमित तिवारी ‘शून्य’
सहायक
प्राध्यापक – भा.प.या.प्र.सं.
ग्वालियर
(मप्र)
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हो
रहा है मिलन हार से जीत का
खिल
रहा है सबका मन सुनके संगीत पर्यटन का
खोल बांहे
आवाहन कर रही हैं दिशाएं
गीत
क्या राग क्या, क्या ही होते हैं स्वर
निर्झरी
सी रही ह्रदय की घुमक्कड़ी
देशाटन
ही नही, पर्यटन ही सही
पर्यटन
न सही, तीर्थाटन ही सही
तीर्थाटन
न सही, मन का आवंटन सही
कोरी
प्रकृति की कोरी अट्टालिकाएं बुलाती हमें
हम
फिर भी जो न जाएं तो क्या फायदा
वे
तो करती हमारा ह्रदय से स्वागतम्
देखो
अपना सा देश, देख लो मेरा देश
हॉ
चलो- ‘देखो अपना देश’
कह
रही हैं दिशाएं स्वागतम् स्वागतम्
स्वागतम्
आगतम्, आगतम् जीवनम्
स्वागतम्
पर्यटन की धरा सुन्दरम्
शैल
देखो कभी, देख लो नद्य भी
देखो
जितना लगे मोहक मन को सभी
स्वागतम्
जिन्दगी पर्यटन की धरा
स्वागतम्
पर्यटन के लिए जिन्दगी
बन
सको तो बनो सांकृत्यायन भी कभी
स्वागत
तो करो पर्यटन का भी
जिन्दगी
में बनके यात्री कभी कभी
अमित तिवारी ‘शून्य’
सहायक
प्राध्यापक – भा.प.या.प्र.सं.
ग्वालियर
(मप्र)
दिनांक
– ०९-११-२०२०
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