मंगलवार, 24 नवंबर 2020

युवाओं में घटता देशप्रेम: एक परिपेक्ष्यमय आज का आंकलन आलेख द्वारा अमित तिवारी सहायक प्रोफेसर भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्‍थान (भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय का संगठन) ग्वालियर म.प्र.

 

युवाओं में घटता देशप्रेम: एक परिपेक्ष्यमय आज का आंकलन

 

आलेख द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्रोफेसर

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्‍थान

(भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय का संगठन)

ग्वालियर म.प्र.

 

 

 

 

आज के परिपेक्ष्‍य में भारतीय युवाओं की मानसिकता का सूक्ष्‍म आंकलन करें, तो ज्ञात होता है,कि भारत के युवाओं के डी एन ए में एक विशेष भावना; जिसे स्‍वयं की मातृभूमि या राष्‍ट्र के प्रति गर्व या गौरव की भावना द्वारा पारिभाषित किया जाता है का एक विशेष अभाव देखने को मिलता है। यदि इस तथ्‍य के कारण व कारकों का विश्‍लेषण करें, तो ज्ञात होता है कि आज के परिवारों की संरचना का स्‍तर व उनमें बुनियादी मूल्‍यों का ह्रास व युवायों का स्‍तर हीनता के स्‍तर के चिन्‍तन आदि में संलग्‍न होना एक विशेष कारण है जो उनके रवैये में बदलाव के कारण को ज्ञापित करता है। राष्‍ट्र प्रेम मूलत: किसी भी व्‍यक्ति विशेषकर उस नागरिक के अंत:मन की वह भावना है जहॉ से प्रत्‍येक परिपेक्ष्‍य में अपने संप्रभु राष्‍ट्र के प्रति आस्‍था, निष्‍ठा, प्रेम, और गौरव का मत उद्भाषित होता है, निश्चित तौर पर राष्‍ट्र के लिए किन्‍ही दिग भ्रमित या नकारात्‍मक पक्षों पर भी समस्‍त प्रकार से एक राष्‍ट्रप्रेमी नागरिक का ना तो ध्‍यान जाता है व ना ही वह उसे प्रचारित या संर्वधित ही करता है, वरन् राष्ट्र  की नकारात्‍मक स्थितियों में सुधार हेतु वह प्राण-पण से स्‍वयं को लगा देता है।

 

 यूं तो राष्‍ट्र किसी परिधि का नाम मात्र नही है, बल्कि एक भौगोलिक परिदृश्‍य में विकसित विचारधारा है जहॉ प्रत्‍येक व्‍यक्ति सामाजिक तौर पर पला बढ़ा होता है और जहॉ संस्‍कार जनित परिदृश्‍य जिनमें विविध भाषाओं , धर्मों , वर्गों और प्र‍जाति व मत आदि के लोग सहजता से भौगोलिक परिधि में आश्रय के साथ स्‍वतंत्रता व सहयोग व सद्भाव से रहते हैं और भूमि या धरा को मातृ सम संज्ञा देते हैं; राष्‍ट्र कहलाता है। राष्‍ट्र के विचार में चार तत्‍व कारक के तौर पर होते हैं- 1. भू-भाग  2. जनसंख्‍या      3. शासन या सरकार और    4. समता

उपरोक्‍त्‍ चारों संसर्गों में राष्‍ट्र के प्रति उसकी विभिन्‍न उपलब्‍ध दृष्टिकोणों में सच्‍ची आस्‍था व प्रत्‍येक परिस्थिति में निष्‍ठा राष्‍ट्र प्रेम कहलाता है। राष्‍ट्र-समाज व परिवार के माध्‍यम से होते हुए व्‍यक्ति यानि नागरिक या गण से ही बनता है और उसकी अपने प्रति निष्‍ठा और प्रेम की भावना से मजबूत बनता है। आज के परिपेक्ष्य में परिवारवाद के विखराव और उसके ऊपर सब पर हावी होते उपलब्ध बाजारवाद स्वरूप संकीर्ण निजत्व और आत्मबोधित मानसिकता के  साथ से युवाओं की स्वार्थ और निजता पोषित विचारधारा , आज के युवा की एकात्मवाद और केवल मैं की भावना को संदर्भित करती है भारतीय परिपेक्ष्य में राष्ट्रवाद एक महती संकल्पना और विचार है,जिसके प्रतिफल में सृजित निज भूभाग या मातृभूमि के प्रति लगाव में सृजित निज भूभाग के प्रति लगाव और सर्वस्व निक्षेपण की युवा भावना सामान्य अर्थों में देश प्रेम कहलाती है।  यद्यपि आज के स्वाधीन देश में युवा स्वाधीनता के महत्व को नहीं समझ पाता या समझता क्योंकि इस हेतु उसे सब केवल विरासत में ही मिला है; उसने स्वयं बहुत कुछ गढ़ा नहीं होता। अतः इसके महत्व व इसके सृजन के लिए किए गए बलिदान को नहीं समझ पाता, और स्वयं में उसके प्रति आस्था और प्रेम का भाव भी नहीं रख पाता । आधुनिक युग में वैश्वीकरण की भावना स्वरूप पनपे बाजादवाद से सृजित रोजगार की संकल्पना महज भर, आज के युवा का ध्येय मात्र हो गया है। उस पर आर्कषण का कलेवर मानवीय पृष्ठभूमि से भी व्यक्ति के भीतर से मातृभमि के प्रति निजी व सामाजिक जिम्मेदारी को ,केवल और केवल नेताओं , सेवा में होने वाले जनसेवकों या सरकारों का काम समझ, स्वयं और संबंधित मेरे के इसमें शून्य लगाव की भावना को न केवल प्रदर्शित करते हैं वरण पहले मैं और मेरे निज जनों को ही ; राष्ट्र के पूर्व रखते हैं । राष्ट्रहित के लिए त्याग कराधान, एकता संर्वधन और विकास के लिए बॅूद-बॅूद से घड़े भरने की भावना भी कही न कहीं दब सी गयी है या सिर्फ मैं और मेरे में खो सी गयी हो जैसे ।

इसे दूर करने हेतु जीवन मूल्‍यों में देश हित व देश के प्रति सम्‍मान और आदर के भाव का सृजन एक महत्‍वपूर्ण कारक हो सकता है । परिवार में बच्‍चों की परिवरिश के साथ उन्‍हें राष्‍ट्र बोध और राष्‍ट्र हित के लिए दिए जाने वाले त्‍याग की भावना को समझने में बहुत मदद मिलती है। राष्‍ट्र हित सबसे बड़ा है और राष्‍ट्र के हित में ही सर्वसाधारण का हित या उन बच्चों का हित भी निहित होता है जो आज मैं और मेरे की भावना से ग्रसित हैं । इस हेतु सभी के अन्‍दर राष्ट्र तुम्‍हे क्‍या देगा से बढ़कर तुम राष्‍ट्र को क्‍या दे सकते हो की भावना पर बल देकर उनके मन में राष्‍ट्र के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव जगाया जा सकता है , क्योंकि राष्ट्र अपना रंग अवश्य गढ़ता ही है मूल में बस मातृभूमि का सा भाव बीज रूप में जगे बस , देश और मिटटी की रंगत दिलों को मोड़ देती है।

 

द्वारा अमित तिवारी

सहायक प्रोफेसर

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्‍थान

(भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय का संगठन)

ग्वालियर म.प्र.

दिनांक- 20.11.2020

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चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...