शीत का कहर
एक अतुकांत स्वरचित कविता
द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’
सहायक प्रोफेसर,आई आई टीटीएम ,ग्वालियर म. प्र.
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शीत का कहर,
उठ रही लहर,
शांत है सारा शहर,
सिरहन का प्रहर
जल रहे अलाव,
जम गए तलाव,
क्या कहें जनाब,
सत्य की हो नाव,
न डिगती बिन दुराव
जन –मन और शीत
पिघला सूरज और जमीन रेत
घूंघट की सी बात
जिस्मों ने ओढ़े निपात
शूल नहीं शीतलता का वार,
होता कोहरे का पारावार
संबंधों की ठंडाई या यह है ,शीत का बुख़ार,
जम करके ओढ़े , रजाई सोते हम हर बार
टूटती जुडती शीतलता
सूरज की चमक बिन जग है ठिठुरता,
मेलों में औस की कोमलता,
शीत की प्रबलता,
ठंडी वात की तरलता,
विकृत शीत की क्षमता
सच है ...शीत का है कहर
उठ रही ठंडी सी कोई लहर
द्वारा अमित
तिवारी ‘शून्य’
सहायक प्रोफेसर,आई
आई टीटीएम ,ग्वालियर म. प्र.
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