रविवार, 29 नवंबर 2020

चित्र आधारित : एक स्वरचित कविता “पाणिग्रहण का संस्कार” द्वारा : अमित तिवारी “शून्य” ग्वालियर , मध्य प्रदेश ==========

 


चित्र आधारित : एक स्वरचित कविता

“पाणिग्रहण का संस्कार”

द्वारा : अमित तिवारी “शून्य”

ग्वालियर , मध्य प्रदेश

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जीवन का मूल यही है,

कहलाता पाणिग्रहण संस्कार,

 

बिना परंपरा जीवन अधूरा,

किसने पाया इस जीवन का पार,

 

पिता के घर में पली थी बेटी,

नेह समेत पिता ने किया पाणिग्रहण का संस्कार,

 

माता वामा भाग विराजी,

पिता ने पाणिग्रहण कर सृजा नया परिवार,

 

भावुक मन हैं किन्तु हृदय खिलें है,

होते देखा जीवन का संस्कार,

 

नेह नीड की धारा निबेरे,

गढ़ता-प्यार का अप्रतिम द्वार,

जो थी कन्या कुल की लक्ष्मी,

आज बनी अर्धांगिनी उनकी,

 

उनसे जुदा नेह का नया संसार,

निज कुल सम जामाता कुल का भी रहता मंगल होवे विचार,

 

ज्ञान यही निज धरम यही है,

पितृ –धर्म में कन्या दान सम पुन्य नहीं है,

 

प्रेम प्रतिज्ञा नेह का धागा यद्यपि तोडा नहीं गया

किन्तु परम्पराओं की धुरी में नेह का नाता अब कुछ और हुआ बड़ा

 

आज हृदय तल से हर्षित  यूँ पिता भी होते हैं

फिर भी नैना तो किंचित उसकी बाल स्मृति में झरते हैं

 

बिटिया के नैना बहते हैं

पर तन मन तो पिय संग बसते हैं

 

हाँ पाणिग्रहण संस्कार मूल है

जीवन पथ के चलने का

 

जो बेटी थी आज बनी माँ

कल बेटी माँ, बन फिर

हो वामांगी , कोई नया

पाणिग्रहण फिर रचती है

 

हाँ जीवन का बस मूल यही है

कहलाता पाणिग्रहण संस्कार I

 

द्वारा : अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर , मध्य प्रदेश

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