मंगलवार, 1 दिसंबर 2020

तुम कहाँ डूबे हो एक स्वरचित अतुकांत कविता द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

 

तुम कहाँ डूबे हो

एक स्वरचित अतुकांत कविता

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

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हे मन मेरे भाव तुम्हें क्या बतलायुं,

मन करता है की तुमसे पूछूँ की तुम कहाँ डूबे हो,

 

है मन के हारे हार और जीते जीत

पर तुम्हे क्या समझाऊ, तुम तो कहीं डूबे हो

 

है मन में कुछ चिंतन और तन में चिंता

मुझे बताओ, हे अक्स मेरे तुम कहाँ डूबे हो

 

गुमनाम मिजाजी अच्छी नहीं होती

बिन पूछे तुम फिर भी

मन की सरिता में तुम कहाँ डूबे हो

 

असत पथ पर न चलते देखा तुमको

पर फिर भी तुम वहां कहाँ डूबे हो

 

भावुकता से कर्त्तव्य बड़ा है-अंतर्मन ,

तुम फिर भी नितांत चिंता में कहाँ तक डूबे हो

 

छोड़ प्रवंचानायों का दौर, करो कुछ गौर

डूबना तुमको सुखरस में था

तुम फिर भी चिंता में कहाँ डूबे हो

 

हे मन अकिंचन ,अमितमन ; शुन्यतम

तुम कहाँ डूबे हो

अरे भई समझो, संभलो

तुम कहाँ तलक डूबे हो

 

द्वारा – अमित तिवारी “शून्य”

02.12.2020

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