जीवन की साँझ
एक चित्र आधारित अतुतांक कविता
द्वारा – अमित तिवारी “शून्य “
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ये उम्र बढ़ रही है,
स्थितियां बदल रही हैं,
जो घर कभी पला था,
साये में मेरे रहकर,
वो आज भुला चुका है,
इन बूढी सी हथेलियों को,
गुमनाम मैं नहीं हूँ,
गुमनाम घर ने मुझको किया है,
परवाह ताउम्र जिनकी की थी,
लाचार यूँ करेंगे,
सोचा कभी नहीं था,
मेरे बगिया के फूलों ने,
मुझ माली को घर से निकाला,
मालिक दया उन पे करना,
जो मुझको समझ न पाए,
उदासी उम्र की है दासी I
है, आज कुछ वो बेबस I
तकलीफ उम्र की नहीं,
रिश्तों के नासमझी की है,
भावुक नहीं मैं,लेकिन,
ममता के दिल से हारी,
कैसे भूले बेटे मुझे ?
न मालूम !!
पर, मैं माँ उन्हें भुला
न पाई !!
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द्वारा – अमित तिवारी “शून्य”
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