घर की
अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदानः एक परिपेक्ष्यमय आंकलन
आलेख द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘
सहायक प्राध्यापक
भारतीय पर्यटन एवं यात्रा
प्रबंध संस्थान ग्वालियर म.प्र.
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भारतीय परिपेक्ष्य में
परिवार की इच्छाओं और आवश्यकताओं के केन्द्र के तौर पर घर की एक महत्वपूर्ण भूमिका
हेाती है और घर के परिपेक्ष्य में स्पष्टतः कहा जा सकता है वो यह कि घर के
परिपेक्ष्य में एक ही चरित्र यत्र-तत्र सर्वत्र परिलक्षित होता है, जिसके इर्द-गिर्द
ही घर या गृहस्थी की कल्पना लिखी और व्याख्यायित की जाती है। वह है घर की नायिका -
एक मॉ, पत्नि,बहन, और बेटी यानि महिला या कहे
लक्ष्मी (नारी)। लेकिन इन सब में दो विशेष स्वरूपों में गृह स्थान के अर्थतंत्र
के परिपेक्ष्य को गढती नारी घर के सौभाग्य को निर्धारित करने वाली धुरी है। यहॉ यह विवेचना अर्थहीन है
उनका योगदान कितना है; यद्यपि किन्ही भी शोध और
विश्लेषणात्मक आंकलनों का अनुसरण करें; तो यह ज्ञात होता है कि
गृहस्थी के भार को अपने कंधों पर ढोने वाली आम गृहणी केवल घर के अर्थतंत्र को
नियंत्रित करने वाली, उसके उद्दीपन हेतु एक प्रमुख स्त्रोत होती है। आज के युग
में कामकाज या व्यवसायिकता की दौड में स्त्री पुरूषों के समकक्ष है वरन् उनसे कही
आगे भी है; यद्यपि उनकी गृहणी वाली
भूमिका की बात करे तो स्वाभाविक मानवीय गुणों से परिपूर्ण नारी अव्वल मानी जाती
है। पारिवारिक स्थितियों की उचित समझ रखने
वाली गृहणी उसके परिवार की आवश्यकताओं और पारिवारिक आय को अर्थतंत्र के बीच में
गुणात्मक सहसंबंध रखकर अनेक प्रकार के सृजनात्मक कार्यों द्वारा बचत और समृद्धि की
धारा को परिवार मे निरंतर बहाती है। नारी स्वभाव से सफाई और शुचिता पसंद होती है। जो
व्यर्थ के धन के अपव्यय को भी नियंत्रित करती है। भावनात्मक और रचनात्मक स्वभाव की
धनी नारी गृहस्थी के लिए व्यंजनों, आवश्यक सामग्री आदि के
सृजन और उसके उचित प्रबंधन के साथ साथ ही जीवन प्रबधन के लिए कुछ बेहतरीन निर्णयों
द्वारा पारिवारिक व आर्थिक स्थितियों को ना केवल सुगमता देती है; बल्कि उसमें क्रमशः
उत्तरोत्तर वृद्धि करती जाती है। उसका जीवन के प्रति रवैया व्यर्थ ना करना और बचत
को बढावा देना व स्वाबलंबन को अंगीकार करने के दर्शन पर आधारित होता है। जिसके
आधार पर घर में प्रचुर मात्रा में ‘श्री’ अर्थात अर्थ की उपलब्धता
को सुनिश्चित कर समृद्धि बढ़ाती है। खरीददारी हो या कि साज-संवार आत्मनिर्भरता व
मोलभाव जैसे व्यवहारिक गुणों की धनी, इस नारी शक्ति से
निश्चित ही पारिवारिक अर्थतंत्र व प्रबंधन तंत्र से संपूर्ण परिपेक्ष्यों में
समृद्धि मिलती है। किन्ही भी संदर्भों में बिना किसी दो राय के कहा जा सकता है
कि व्यापक तौर सामान्यतः घर की अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदान अंधेरे में
प्रकाश स़्त्रोत की तरह है। यह केवल शाब्दिक उद्दीपन नही वरन् विश्लेषित तथ्य भी है।
द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘
सहायक प्राध्यापक
भारतीय पर्यटन एवं यात्रा
प्रबंध संस्थान ग्वालियर
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