बुधवार, 9 दिसंबर 2020

बेकाबू और अनियन्त्रित होता निरंकुश विरोध स्वरचित अतुकान्त कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘ ग्वालियर म.प्र.

 

बेकाबू और अनियन्त्रित होता निरंकुश विरोध

स्वरचित अतुकान्त कविता

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

 

 

कल्पना थी राष्ट्र की,

जिसे मिली थी स्वतंत्रता,

महज स्वतंत्रता का हांसिल,

अधिकार भर से होता नही,

कर्त्तव्य के पथ पर भी,

बलि होना पडता है,

महज सत्ता दल का,

यह कर्त्तव्य नही,

काम यह जिम्मेदारी का,

प्रतिपक्ष का भी है,

भ्रम तोडो मगर,

कभी राष्ट्र टूटने ना पाए,

पर करे क्षमा मुझे,

अमितमन शून्यतम‘;

कानों में मेरे भी,

स्वर सुनाई पड़ा,

भारत को तोड़ने का,

विरोध तो विरोध है,

महज विरोध के लिए,

किया जाना नही चाहिए,

सत्य और असत्य को,

राजनीति से अलग रखकर,

कई बार सोच लेना चाहिए,

महज सड़क पर तोड-फोड करना,

समस्या का हल नहीं,

कभी कभी राजनीति के लिए राजनीति,

नही करना चाहिए,

दो जोडी कपडे, दो वक्त की रोटी,

हर रोज जलता घर का चूल्हा,

भी गऱ विरोध में बुझाओगे,

यकीन मानो जनता के कोप से,

मिट्टी में मिल जाओगे,

कहते हैं जनता होती है जनार्दन,

सबके विरोध की रोटियों को समझती है,

और सत्ता दल हो या विरोधी दल,

सबको अपने पैरों तले रौंदती है,

जब बेकाबू और अनियन्त्रित होकर,

निरंकुश हो जाता है विरोध ,

तो जनता उस छल को क्षण में,

दबाकर मिटा देती है

और मिट जाता है,

विरोध के लिए गया विरोध,

सदा सदा के लिए

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

दिनांक- 09.12.2020

 

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चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...