रविवार, 20 दिसंबर 2020

एक स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘ ‘‘पाणिग्रहण का संस्कार”

एक स्वरचित कविता

द्वारा अमित तिवारी शून्य

‘‘पाणिग्रहण का संस्कार

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जीवन का मूल यही है,

कहलाता पाणिग्रहण संस्कार,

 

बिना परम्परा जीवन अधूरा,

कौन पा सका इसका पार,

 

पिता के घर में पली थी बेटी,

नेह समेत पिता ने किया पाणिग्रहण संस्कार,

 

माता वामा भाग विराजी,

पिता ने पाणि ग्रहण कर सृजा नया परिवार,

 

भावुक मन है किन्तु खिले हैं,

होते देखा यह जीवन का संस्कार‘,

 

नेह नीड की धरा निवेरे

गढ़ता प्यार का अप्रमित द्वार

जो थी कन्या कुल की लक्ष्मी,

आज बनी अर्धांगिनी उनकी,

 

उनसे जुडा नेह का नया संसार,

निज कुल जैसे जामाता कुल का भी रहता ध्यान,

 

ज्ञान यही निज धर्म यही है

पितृ धर्म में कन्यादान सम कुछ भी नही है,

 

प्रेम-प्रतिज्ञा नेह का धागा यद्यपि तोडा नहीं गया,

किन्तु परंपराओं की धूलि में नेह का नाता नया गढ़ा,

 

आज ह्रदय तल से खुश है पिता,

पर फिर भी नैना झरते हैं,

 

बेटी की आंखे बहती है,

पर तन मन पिय संग बसते हैं,

 

हां पाणिग्रहण संस्कार मूल है,

जीवन पथ के चलने का,

जो बेटी थी आज बनी मां,

कल बेटी मां बन फिर,

हो वामाग्नि कोई नया

पाणिग्रहण रचती है,

हां जीवन का बस मूल यही है,

कहलाता पाणिग्रहण संस्कार।

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

स्वरचित चित्र आधारित कविता

(अतुकांत)

 

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