8 नबम्बर 2012
तिथि: आई आई टी टी एम, में सहायक प्रोफेसर पद
पर 8 साल पूरे, बांकी हैं अभी ज़ायके नौकरी के (सफ़रनामा अभी बाकी
है) एक समीक्षा
द्वारा अमित तिवारी
सहायक प्रोफेसर
आई आई टी टी एम
पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार का एक स्वायत्त संगठन
ग्वालियर मप्र.
5 नबम्वर 2012 का मध्यम सर्द
दिन था । जिसमें आई आई टी टी एम की एक यात्रा पूर्ण कर आई आई टी टी एम की ही दूसरी
यात्रा शुरू हो रही थी। दोपहर 12.30 बजे तक सारा काम काज यानि सेमेस्टर के पेपर्स , अटेण्डेंस और
बाकी के काम निपटा कर, दस्तावेज वगेरह पैक करके डबरा स्टेशन पर, आज की एक
महत्वपूर्ण यात्रा के लिए (जीवन में पहली बार स्लीपर एसी ट्रेन कोच- थर्ड
एसी) कौतूहल के साथ फिलहाल ही डबरा से ग्वालियसर तक की यात्रा के लिए ट्रेन के
इंतजार में बैठा था। उस लंबी यात्रा के पूर्व ग्वालियर (आई आई टी टी एम) पहुचकर
संस्थान में अपने टीचिंग एसोसिएट पद की जिम्मेदारी, जो कि केवल आज तक
ही थी, पूर्ण करके ग्वालियर से ही भुवनेश्वर
(ओड़ीशा) की यात्रा उत्कल एक्सप्रेस से करनी थी। बहरहाल जीवन में बहुत कुछ घट रहा
था और जीवन को मैं और जीवन मुझे बहुत कुछ निष्ठा
पूर्वक दे भी रहा था। खैर आज की वो डबरा से ग्वालियर तक की यात्रा कुछ भावुक कर
देने वाली थी। घर से (डबरा) स्टेशन और स्टेशन (डबरा) से ग्वालियर तक आना एक नया सा
अनुभव रहा था। खैर ट्रेन डबरा स्टेशन पर सही समय से थोडी विलम्ब से थी। एक ट्रोली
और एक पिठ्ठू बैग लिए में ट्रेन में
स्लीपर कोच में अपनी डबरा से ग्वालियर की टीचिंग असोसिएट की शायद आखिरी यात्रा पूरी कर ग्वालियर प्लेटफोर्म पर
पहुंच चुका था। वहां भावुकतावश एक छात्र (अब पूर्व) द्वारा मुझे मय सामान के वहां
से (ग्वालियर रेलवे स्टेशन) संस्थान तक मय सामान के पहुचाया गया।
संस्थान में
पहुंचकर सबसे पहले मैने मन्दिर में दर्शन किए और वापस अपने कक्ष की ओर जाकर अपने
महत्वपूर्ण दस्तावेज और महत्वपूर्ण सामाग्रियो को समुचित तरीके से समायोजित कर सम्बद्ध
अधिकारियों को सौंप दिए। शेष रहे मेरे औपचारिक नोड्यूज फोर्म तो उसे सभी सेक्शनों
से उस पर नोड्यूज के हस्ताक्षर करा और लगभग 4 बजे तक अपने कमरे की चाबी सम्बद्ध व्यक्ति को सौंपकर; स्वयं के लिए आयोजित एक औपचारिक विदाई समारोह जो विशेषकर
छात्रों द्वारा आदरणीया निदेशक महोदया और अन्य वरिष्ठों की उपस्थिति मे हो रहा था, में शामिल
हुआ। वहां जाकर सच में एक बार एहसास हुआ कि आज एक बहुत अलग यात्रा खत्म होकर, एक नई यात्रा की शुरूआत हो रही थी। छात्रों के स्नेह और
उनके द्वारा मुझे मिलने वाले सम्मान ने वरिष्ठों समेत मुझे आत्मविभोर कर
दिया। आज मेरा दिन था और शायद पहला दिन था जब 60 मिनट बिना रूके बोलने वाला शिक्षक भावुकतावश बोल पाने में
कुछ असहज था, किन्तु वो विदाई
समारोह आई आई टी टी एम की मेरी एक यात्रा पूर्ण हो नई यात्रा के शुरू होने की
स्वागत पार्टी जैसी थी। मैं भावुक भी हुआ और भावुकता में बीते दिनों की
परिस्थितियां शब्दों में बयां हो उठी। जीवन बदल रहा था, लेकिन मैं मेरे
परिवार से दूर एक ऐसी जगह जा रहा था जिसके विषय में मैंने सुना भर ही था हांलाकि
शिक्षा जगत का इससे पूर्व का नई दिल्ली का दो से अधिक वर्ष का अनुभव और इससे पूर्व
पर्यटन क्षेत्र में की गई, लगभग इतने ही वर्ष की सेवा ने मुझे बहुत हद तक कई व्यवसायिक जीवन
के स्तरीय अनुभव देकर एक कठिन परिश्रमी और कर्मठ व्यक्ति की परिधि में ला खड़ा
किया। खैर विदाई के बाद भावुकता को संभालते हुए अब ट्रेन का समय था, यकीनन ट्रेन का
समय हो चुका था, मैं घबराया हुआ था कि ट्रेन मिस ना हो जाए। लेकिन छात्रों में मुझे वाकायदा अपनी जगह से स्टेशन समय
पर छोडा, लेकिन आश्चर्य था कि स्टेशन पर एक दो नही लगभग
बीसेक छात्रों का समूह था। मेरा कोच आगे आना था, लेकिन किन्ही
कारणों से पीछा आया था। इसलिए अब लगभग पूरा प्लेटफार्म क्रोस करके अंतिम छोर तक
पहुचना मेरे लिए बहुत मुश्किल था लेकिन मुझे याद आता है कि किस तरह लडकों की उस
टीम ने मेरे सारे सामान को किस तरह आसानी से मेरी बर्थ और कोच में मुझसे पहले पहुंचा
दिया था। अब आगे की यात्रा में मेरा घर यानि डबरा था जहां, मेरे पिताजी (पापा) मुझे रात का खाने का डिब्बा देने के
बहाने या यूं कहॅूं मिलने आए थे। लेकिन डबरा के बाद इस यात्रा में एक लंबा समय
लगभग दो दिन का समय शेष था। मन में बहुत मिली-जुली प्रतिक्रियाएं व भाव आ रहे थे।
रह-रहकर छात्रों,घर से (मम्मी, पापा और पत्नि
का फोन) आता रहा। जिसे मैं सबसे अधिक और भावुकता के साथ याद रहा था, वो मेरे बेटे राम का चेहरा था जो उस समय लगभग केवल डेढ़
महीने का ही था। घर, परिवार, पत्नि ,मां-बाप सबको याद
कर रहा था, यू कहॅू कि भूला
ही कहां था। लेकिन इतना ज्यादा थका हुआ था (क्योंकि ऑफर लेटर आने के बाद से बहुत
सारी औपचारिकताओं को पूरा करने में उलझा रहा और कई तरह के घर परिवार के कामों में
कब यह दिन आ गया पता भी नही चला), खैर अब झांसी
स्टेशन आ चुका था। मैने अपनी लॉअर बर्थ पर खाना खाया। आगे अब कुछ पढने के असफल
प्रयास के बाद मैं सो गया और मेरी नींद रात में एक दो बार ट्रेन के रूकने की आवाज
के साथ खुलती रही। लेकिन सुबह देर तक में ट्रेन में सोता रहा। यकीनन अगला दिन लग
चुका था। फ्रेश होकर चाय वगैरह पीकर घर पर फोन आदि लगाकर फिर यात्रा और स्टेशनों
केा पढने समझने और अपने साथी यात्री से बातचीत में कब रात हो गई पता ही नही चला।
अभी भी ट्रेन को समय लग रहा था क्योकि अब तक ट्रेन बहुत लेट हो चुकी थी। अब ट्रेन
शायद उड़ीसा में प्रवेश कर गई थी। यह 7 नवम्बर की देर शाम का समय था जब मेरी ट्रेन उड़ीसा की
राजधानी भुवनेश्वर में पहुंची। बडे इत्मिनान से पहले ही सामान आदि लेकर मैं ट्रेन
के दरवाजे पर खडा था। साथी यात्री की मदद से मैं स्टेशन पर उतर गया था। एक छात्र
के दोस्त जो कि आई आई टी टी एम के भुवनेश्वर केन्द्र में पढ़ता था कि मदद से मैं आटो
से होता हुआ आई आई टी टी एम के भुवनेश्वर केन्द्र में पहुंच चुका था। लोग भाषा और
परिवेश मेरे लिए काफी नया था फिर भी वहॉ मुझे सबका सहयोग मिला । मैं उस रात से आगे आने वाले कुछ दिनों के लिए
वैकल्पिक व्यवस्था होने तक आई आई टी टी एम भुवनेश्वर के गेस्ट हाउस में ही लगभग
8 से 10 दिन के लिए रूका। जहां मेरे और साथी भी मेरे बाद अपनी अपनी ज्वाइनिंग देने
आते रहे। 8 नवम्बर का दिन
था, अल सुबह जल्दी नहा
धोकर मैं तैयार हो गया। नाश्ता करने कैंटीन जो कि मैस मे ही थी नाश्ता करके अपने
दस्तावेजों और ज्वाइनिंग रिपोर्ट के साथ कार्यालय पहुंच गया। हालांकि मैं सुबह 9.30 पर ही पहुंच गया था, तब तक अधिकतर
स्टाफ नही आया था , एक घण्टे के
अन्दर सब लोग वहां पहुचने लगे थे, और इसके बाद
मैने सुबह ही अपनी ज्वाइनिंग देकर आई आई टी टी एम के भुवनेश्वर केन्द्र से मेरे
सहायक प्रोफेसर पद के सफर की शुरूआत की। इस फील्ड और संस्थान में पहले काम कर लेने का
फायदा मुझे अवश्य मिला। शीघ्र ही अत्यन्त दोस्ताना माहौल में मैने अपना काम शुरू
किया। अधिकतर लोग (वरिष्ठ एवं साथी) मेरे व्यवहार व कार्य से प्रसन्न दिखाई दिए
और धीरे-धीरे में भुवनेश्वर केन्द्र में मेरी एक अच्छा कार्यानुभव छवि विकसित
हुई। आगे 6 महीने बाद ईश्वरीय कृपा से परिवार की प्रार्थना स्वरूप मेरी यह
यात्रा ग्वालियर केन्द्र में स्थानांतरित हो अभी जारी है, सुकून इस बात का
है कि आज मैं अपने गृह नगर में ही हॅू। सेवा में रहते उच्च सेवा मानदंड स्थापित
करते हुए दो बातों – कठिन परिश्रम और दिए गए कार्य को क्षमता अनुरूप उचित प्रकार
से निष्पादित करना मेरा हमेशा ध्येय रहा। सेवा में रहकर, बहुत सारी क्षमताओं और रूचियों का निर्माण मुझमें हुआ और
एक बेहतर पेशेवर की छवि भी विकसित हुई । निश्चित तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर
शीर्षस्थ तो नही लेकिन एक शिक्षाविद होने के नाते पर्यटन जगत में महती पहचान भी
मिली, शेष कर्म का विधान अभी बाकी है उन्नति
के कई वितान अभी बाकी हैं। आई आई टी टी एम का यह सफर
बहुत सुहाना रहा है और मेरे स्वयं के जीवन का एक महत्वपूर्ण सफ़रनामा है; हालांकि यात्रा अभी जारी है और कई मुकाम अभी बांकी हैं
मेरे दोस्तों।
द्वारा अमित
तिवारी
सहायक प्रोफेसर
आई आई टी टी एम
पर्यटन मंत्रालय भारत
सरकार का एक स्वायत्त संगठन
ग्वालियर मप्र.
*यह लेखक का निजी जीवन वृत है, जिसमें वर्णित विचार उनके निजी हैं जिसका
किसी संस्था से कोई वास्ता नही है।
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