बुधवार, 30 सितंबर 2020

“भरोसा भगवान का” एक लघु कथा (मौलिक) द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

 

“भरोसा भगवान का”

एक लघु कथा (मौलिक)

द्वारा अमित तिवारी शून्य

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ग्वालियर जिले के छोटे से कस्बे डबरा के छोटे से रेलवे स्टेशन पर रामेश लाइन में लगकर सामान्य दर्जे का हजरत निजामुद्दीन का टिकिट लेकर अगली ट्रेन की प्रतीक्षा में था रात का खाना घर से खाया और एक बैग में कुछ जरूरत का सामान और अपने दस्तावेज रखकर दिल्ली शहर में अपना भाग्य आजमाने एक अदद नौकरी की तलाश में आंखों में उम्मीदों के चमकीले सपने सजाए ट्रेन के इंतजार में बैठा था। ट्रेन तय समय से काफी विलम्ब से आखिर डबरा स्टेशन पहुंची रामेश के मन में तो उत्साह था लेकिन एक महानगर में पहुंच अपने सपनों को साकार करने का भरोसा देने वाला कोई दोस्त रिश्तेदार या हितैषी कोई नही था बमुश्किल ट्रेन के कोच में उसे एंट्री मिली और स्वयं के बैठने की एक जगह भी लेकिन रामेश ने उसे स्वयं से ज्यादा जरूरतमंद एक वृद्धा को दे दिया और उसका सामान भी अपने पैरों पर रखकर दिल्ली तक का सफर भीड़ के धक्कों, लोगों की उहा पोह व यात्रा के यथेष्ट कष्टों समेत  पूरा किया।ये सफर तो तय हो गया लेकिन जिस सफर की शुरूआत के लिए वह दिल्ली आ रहा था उस सफर के लिए उसे कुछ भी स्पष्ट नहीं था। स्टेशन से बाहर आकर एक छोटी दुकान पर चाय का एक प्याला पीने की इच्छा से एक श्रीमान जी से रूकने के विषय में किसी छोटे से होटल के बारे में पूछ ही रहा था कि उसे एक परिचित चेहरा दिखा। जिसने उससे दिल्ली आने की वजह पूछी और आपस की बातचीत में अधिकार समेत उसे रोजगार की तलाश तक अपने यहां रहने और खाने का एक निर्णय सा सुनाया ये सज्जन कोई और नही डबरा के गुप्ताजी के नाती विमल थे जिनके दादाजी को कभी रामेश के पिताजी और दादाजी ने बहुत मदद की थी और उनको अपने पैरों पर खडे होने में और डबरा में स्थापित होने में पूरा सहयोग दिया था। रामेश विमल के साथ अपना सामान ले उनके घर की तरफ हो लिया लेकिन वो क्या करेगा? यह अभी भी एक अबूझ प्रश्न था लेकिन इस प्रश्न का भी ईश्वरीय विधान में कोई उत्तर तय किया गया होगा ऐसा ईश्वर पर हमेशा भरोसा करने वाले रामेश के मन मे भरोसा था। रोज की तरह विमल के यहाँ भी प्रातः जल्दी उठकर नित्य क्रिया से निवृत हो चाय का प्याला हाथ में लिया ही था कि अखवार के पलटते पन्नों में मानो उसके लिए अन्नजल की व्यवस्था तय की गई हो; कि रामेश के समक्ष योग्यता और पात्रता के पद का एक विज्ञापन उसे स्पष्टतः मिल गया जिसमें भाग्य आजमाने का मन रामेश ने बना लिया। नाश्ता करके वर्णित पते पर रामेश पहुचा ही था कि वहां उसके साक्षात्कार के लिए उसका नाम उसने संबंद्ध अधिकारी को दिया 10 मिनट के अन्दर उसे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया और बिना किसी आश्चर्य के साक्षात्कार के 5 मिनट के बाद ही उसे बोर्ड द्वारा पुनः बुलाकर वेतन को लेकर चर्चा की गई और कल (अगला दिन) से ही कार्यालय में ज्वाइनिंग के लिए कहा गया।जिसके लिए उसने सहर्ष स्वीकारोत्ति दे दी। और खुशी-खुशी बिना बिलम्व के एक मिठाई की दुकान पर जाकर थोडी सी मिठाई ली और बगल के मन्दिर में ईश्वर को धन्यवाद देते हुए प्रसाद चढाया और पुजारी जी से रहने के लिए कोई किराए के कमरे के लिए पूछते हुए अबिलम्व विमल जी के घर पहुचा उन्हे धन्यवाद देते हुए प्रसाद की मिठाई का डिब्बा दिया और ईश्वर के भरोसे स्वयं के भरोसे की जीत को बडे विनम्र शब्दों में विमल जी को अपनी नौकरी मिलने की शुभ सूचना दी और एक दो दिन में ही किराए के एक कमरे की व्यवस्था होने की बात भी बताई। दोनों बहुत खुश थे चाय की चुस्कियों के साथ ईश्वर की आस्था में  भरोसा रखने वाले रामेश भरी आंखों से पिताजी को दूरभाष से ये समाचार देने लगा और उसके मुंह से कुछ शब्द ऐसे निकले कि भगवान पर अगाध भरोसे से आज मुझे नौकरी मिल गई है मैं यहाँ ठीक हूँ, आपसे जल्द अगले हफ्ते डबरा आकर मुलाकात होगी।

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर, म. प्र.

29.09.2020

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चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

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