भाव पल्लवन
जहाँ चाह वहां राह
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”
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मृगतृष्णा से भरे जीवन में मनुष्य यदि प्रयासों से भरे
पुरुषार्थ को स्थिर मन से साकार करे तो
उसके लिए उन रास्तों के संकल्पों को सिद्ध करना कोई बड़ी बात नहीं होगी I बात केवल
इतनी सी है कि व्यक्ति कब और कितनी गंभीरता से किसी उद्देश्य की प्राप्ति का
संकल्प लेता है , और उसकी प्राप्ति के लिए सम्पूर्ण प्रयास का सामर्थ्य उड़ेल देता
है I जेहन में कर्म और केवल कर्म व उसके अंतरण में सिर्फ़ उस लक्ष्य की प्राप्ति का
धेय्य रहता है और इस भेद को की “जहाँ चाह है वहां राह बन ही जाती है , को स्वतः ही
सिद्ध और स्पस्ष्ट करता है I
द्वारा अमित तिवारी “ शून्य”
ग्वालियर म. प्र.
24.09.2020
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