बुधवार, 23 सितंबर 2020

ख्वाहिशें कुछ अधूरी सी स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

 

ख्वाहिशें कुछ अधूरी सी
स्वरचित  कविता
द्वारा अमित तिवारी “शून्य”  


जीवन के इस हंसी दौर में
ज्यादा तो नहीं पर ख्वाहिशें
कुछ तो अधूरी रह गयी
जीवन अधुरा तो नहीं
पर प्यास कुछ तो अधूरी रह गयी
रूह का कर्म है जिस्म को चाहना
जिसको चाहत मिली ही ना हो
उसकी क्या बात है
ख़्वाब तो देखे थे पर क्या कहें  
कुछ तो अधूरे ही रहने को पैदा हुए
विषम थी कल्पना जीवन के राग की
लेकिन कुछ व्यंग्य से डेह गए
कुछ को मिली तिलांजलि
कुछ यु ही अधूरे से रह
जमीन दोज़ हो गए
 
फिर भी है आज जिन्दा और स्थापित भी
हाँ अलग बात है ख़्वाब कुछ तो हैं अधूरे भी
 
द्वारा
अमित तिवारी ‘शून्य’
ग्वालियर, म. प्र.    
 

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