मंगलवार, 15 सितंबर 2020

लघुकथा : विषय "प्रतिज्ञा " शीर्षक : कर्मठता द्वारा अमित तिवारी 'शून्य'

 

स्वरचित लघुकथा

विषय : प्रतिज्ञा

शीर्षक : कर्मठता

द्वारा अमित तिवारी “शून्य”

 

राजश्री काकी की बगिया में आज बहुतेरे फूल – फल आदि खिले हुए हैं लेकिन आज की यह हरीतिमा फल है उस कठोर प्रतिज्ञा रूपी कर्मठता का जिसे, उन्होंने काका को जाते जाते प्रतिज्ञा स्वरुप वचन में दिया था I उनकी गहरी आँखों में आज भी काकाश्री का वो दृश्य याद आ जाता है जब कर्मठता की पराकाष्ठा करने वाले काकाश्री जब मृत्यशैय्या पर पड़े तो अमिता से ; (काका श्री उन्हें अमिता बुलाते थे) प्रतिज्ञा करायी की; मेरे न रहने पर भी तुम इस बगीचे को यु ही हरा भरा रखोगी और हमारी इस बगिया में युही फूल – फल की कर्मठता के बीज बोती रहोगी I पहले तो काकी श्री को यह प्रतिज्ञा स्वरुप कर्मठता का वचन रूपी आग्रह समझ नहीं आया लेकिन जैसे-जैसे समय बीता उन्हें समझ आया कि क्यों- काका श्री (अमितेंद्र नाथ) ने उन्हें यह प्रतिज्ञा करवाई, वो इसलिए क्योंकि वो जानते थे कि “बीतते समय और एकांकी जीवन में उद्देश्य रूपी कर्मठता की कमी जीवन को  नितांत नीरस व उद्देश्य हीन बना देता है I जिसमे अपने प्रियजन को खोना, बढती उम्र सब राग़- रंग को खो देती है और जीवन की कटुता मनुष्य को प्रतिपल मृत्यु से अधिक मारती है’’ ,

इसलिए काका श्री द्वारा दिलाई गयी वह कठोर कर्मठता की प्रतिज्ञा काकी श्री को आज भी जीवन का धेय्य, हरियाली उनकी प्रतिज्ञा रूपी नेह के तौर पर स्वस्थ्य रखे हुए है जिसे उनके द्वारा प्रतिपल नेह के धागे के तौर पर निभाया भी जाता रहा ; जिसने उनके जीवन को उद्देश्य पूर्ण और समांगी कर दिया है I बगिया के फल – फूल को पाने का धेय्य बच्चों व पड़ोसियों को काकी श्री व उनके स्वास्थ्य से जोड़े रहता है I दिन भर एक उत्साह व कर्तव्य रूपी कर्मठता उनके शरीर को स्वस्थ व मन को उद्देश्यपूर्ण बनाये रखता है I पर नेह भर आते हैं जब काका श्री की दी हुई कर्मठता की प्रतिज्ञा याद दिलवाने का समय याद आता है और मन उत्सुकता से भर जाता है और खुशियों के एह्सास ऐसे प्रतीत होता है , जैसे स्वयं काका श्री जीवन पथ में प्रतिज्ञा बन उनके साथ हों ; उत्तम स्वास्थ्य, जीवन का उद्देश्य और आयुष्मान का आशीष लेकर I सार्थक ही है ऐसी “कर्मठता” की प्रतिज्ञा I

 

 

द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

15.09.2020    

 

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