स्वरचित लघु कथा शीर्षक “श्राद्ध”
द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘
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अंगद बेसब्री से पितृ पक्ष
का इंतजार कर रहा था शायद उसके लिए पितृ पक्ष के मायने आजीविका को पुनः पटरी पर
लाना होता है, यू तो कोई विरला ही भोजन के लिए पूछता था पर महज इन 15 दिनों में
आहार और दाम (आमदनी) तय होती है। पडोस से नित्य प्रति कोई न कोई निमंत्रण अंगद को
मिलता ही था कुछ स्थितियों में परिवार का भी दिन भर का भोजन और उपहार आदि मिल ही
जाता था लेकिन अंगद को इंतजार था समर्थ परिवार के निमंत्रण का आज षष्ठी है लेकिन
समर्थ परिवार का कोई निमंत्रण अब तक प्राप्त नही हुआ। आयोजन तो अष्टमी के दिन होता
है,ऐसा सोचकर अंगद अपने कामों में व्यस्त हो गया। अंगद के पांडित्य कर्म की जजमानी
का एक बडा आधार समर्थ परिवार हमेशा से रहा है, लेकिन आज परिवार अपने संस्कारों को लेकर एक बडी उलझन में है ।ये उलझन
कुछ और नही पीढियों में श्राद्ध-पक्ष के प्रति पनपते परिवर्तन और पीढियों के एक
टकराव की स्थिति है। रामजश जो हमेशा से अंगद के परिवार के बुजुर्गों को, अब अंगद को अपने श्राद्ध पक्ष में
मुख्य पांडित्य कर्ता के तौर पर याद करते थे आज उनकी अगली पीढी उनसे विचारों का
मतभेद रख श्राद्ध और पितृ पक्ष को न मनाए जाने की अपनी सी जिद उठाए हुए हैं यद्यपि
परिवार में ऐसा पहली बार ही हुआ है लेकिन रामजश का मन आहत है क्योंकि आज तक
निर्विवाद इन मसलों पर गृहस्थी चलती आई थी परिवार का समाज में बहुत नाम था और पुरखो
की कृपा भी अक्षुण्ण बरस रही थी। रामजश का मन उदास हो गया और सोचने लगा मेरे मरने
पर ये पीढी मुझे क्या तर्पण करेगी? चलो अपने जीते जी तो ये परंपरा नही टूटने दूंगा।
रात भर नींद नही आई मन बैचेन रहा सुबह अंकित को बुला क्रोध में भर चीखने लगे- “मै
मर जाऊं तो मत करना मत करना मेरा श्राद्ध मेरे जीते जी मेरे पुरखे बिना श्राद्ध के
नही रहेंगे’’ । सुनकर अंकित की आंखों में पपश्चाताप के आंसू थे बिना सांस रोके
बोल पडा “बाबूजी बच्चों और बहू की बात
को आप क्यों तरजीह देते हैं मेरे संस्कार ऐेसे नही कि आपकी परम्पराओं को यूं ही
मिटा दूं ; वे
अगली पीढी के आजाद बच्चे है जब जीवन की लिखत पढ़त सीखेगे तो वही करेगे जो आपने
सिखाया है; एक बात आप मेरी भी सुन लीजिए मेरे जीते जी भी मेरे पुरखे या उनका
श्राद्ध कोई नही रोक सकता हाँ मेरे बाद कोई रोके तो अलग बात है”, पर यकीन है कि आपके संस्कार इतने गाढे है कि अगली कई पीढी तो छोडे
उनकी कई पीढियाँ भी आपके संस्कारों की जद में रहेंगीं। ऐसा मुझे यकीन ही नही पूर्ण
विश्वास है। रामजश ऐसा सुनकर स्वयं के परिवार के संस्कारों पर फूला न समाया और
अंकित को अपने हृदय से लगा लिया और बोले कल मेरे दादाजी का श्राद्ध में अंगद जी के
पूरे परिवार को निमंत्रण भेज दो और भोजन पानी की उत्तम व्यवस्था करो। साथ पैसे की
कोई कमी आने मत देना जितना तुम चाहो खर्च करो। दोनो ख़ुशी –ख़ुशी श्राद्ध की तैयारी
में जुट गए। अंदर परिवार भी दोनों की बात सुनकर उनके संस्कारों पर गर्व और अपनी
भूल का अनुभव कर रहा था।
द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘
09.08.2020
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