गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

धुंए में समाप्त हो रहा युवा धन- ‘कूल अंदाज, चिल्ड मिजाज, दुनियां में दम मारों दम और जियो’ की विचार धारा का एक सम्यक् आंकलन आलेख: द्वारा अमित तिवारी - सहायक आचार्य

 

धुंए में समाप्त हो रहा युवा धन- कूल अंदाज, चिल्ड मिजाज, दुनियां में दम मारों दम और जियो’ की विचार धारा का एक सम्यक् आंकलन

आलेख: द्वारा अमित तिवारी - सहायक आचार्य

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान ग्वालियर

(पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार का एक स्वायत्त निकाय)

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वर्तमान परिपेक्ष्य में युवाओं का जीवन के प्रति रवैया उनकी बदली सोच और बदलते आयामों में होने वाली उनकी परवरिश के कारण विशेषकर देखने को मिलता है। यकीनन कोई भी बच्चा विशिष्ट है और अपने अभिभावकों की अमूल्य निधि होता है। युवा समाज और देश का भविष्य है और इस बहुत युवा देश की 30 प्रतिशत आबादी 16 से 35 वर्ष के आयु वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। यहाँ यह कह देना बहुत आवश्यक है कि युवाओं की मानसिकता में धुंए रूपी विकार के पनपने का कारण, कारक और केन्द्र कुछ और नही युवाओं को लेकर कुछ मूलभूत गलतियां है जिनके समय रहते निदान न हो पाने के कारण वे समग्र युवा जीवन को ग्रस उन्हें यथेष्ट समापन की राह पर ले जाती है। जहाँ उनके सपने आत्मविश्वास, विचार और उनका स्वयं धराशायी होने लगता है। ममत्व और पितृत्व का नेह भी उनकी भटकी हुई मानसिकता को बदल नही पाता और युवा जीवन एक खोखले और दुर्दान्त अन्त की तरफ चलायमान होता है। आज देश और अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में नशा खासकर ड्रग्स एक महती चिन्ता का विषय बन देश और समाज की जडों को खोखला कर रहा है। रूककर यहाँ सोचने की आवश्यकता है कि जीवन का एक ऐसा हिस्सा जहाँ रचनात्मकता, ऊर्जा, कलात्मकता, ख्वाहिशें, सपने और उनकी उडान और उन्हें पूरा कर लेने का ओज और ऊर्जस्विता आखिर कहाँ, क्यों , कब , कैसे खो गई या नशे और धुंए की लत जीती जागती जिन्दगी को एक जिन्दा लाश कब बना गई गौर ही नही किया जा सका। यकीनन नशे की यह लत और उसका बढता प्रभाव कुछ ऐसे कारण है जिनसे सभवतया यह बढ़ता ही रहा होगा। -

1. पारिवारिक स्थितियां,

2. परवरिश आधारित त्रुटियां,

 3. संगत आधारित शुरूआती शौक,

 4. अभिभावकों का अत्यन्त व्यवसायी व आंकाक्षी रवैया,

 5. पारिवारिक कलेश,

 6. बाल मानसिकता पर भावनात्मक चोट,

7. गलत परंपराओं /आदतों का निर्वहन

1. पारिवारिक स्थितियां- जीवन मूल्यों के पतन और इनसे बनती बिगडती गृहस्थी की स्थितियां युवाओं को एकाकी जीवन और नशे के दलदल में धकेलती हैं और यहीं से शुरूआत होती है एक पतनयुक्त जीवन की।

2. परवरिश आधारित त्रुटियां - परवरिश के प्रति सिद्धान्त भाव से भटकाव बच्चों में अलगाव और विद्वेष की भावना को बढाकर उन्हे एकाकी और नशे के प्रति आकर्षण के प्रति बाध्य करता है।

3. संगत आधारित शुरूआती शौक- मित्र प्रभाव में गलत शौक और संगति का अनुसरण व्यक्ति के पतन का सृजन करता है और यह शुरूआत एक विस्फोटक और दुर्दान्त अन्त जो बेहद जटिल और घृणित अन्त की शुरूआत करता है।

4. अभिभावकों का अत्यन्त व्यवसायी  व आंकाक्षी रवैया- आज के व्यवसायी दौर में गृहस्थी के उन्नयन और शौक आधारित जीवन शैली की बली बच्चें ममत्व को खोकर करते है। जिससे उनका संपूर्ण जीवन संकुचित मानसिकता और आत्मविश्वास के क्षय के रूप में परिणत होता है। अन्त बेहद निजी भावनाओं के दमन और उनके अभाव में गलत लोगों और शौक का प्रादुर्भाव जीवन का अन्त कर देता है। कूल अंदाज, चिल्ड मिजाज, दुनियां में दम मारों और जियो’ की विचार धारा परिवारों को पतन और नशे की तरफ धकेल रही है । निश्चित तौर पर यह भारतीयता से दूर और आधुनिकता की ओर जाने का ही परिणाम है।

5. पारिवारिक कलेश- जीवन मूल्यों का अभाव परिवार में हमेशा रहने वाले तनाव और अवसाद का कारण बनता है जिसकी परिणति एक विकृत मानसिकता और नशे के अवलम्बन के तौर पर होती है।

6. बाल मानसिकता पर भावनात्मक चोट- बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए शिक्षा के साथ- साथ परिवार और उत्तम परिवारिक स्थितियों का होना जिसमें आदर्श परिवार, संस्कार आदि बहुत महत्वपूर्ण होते है इनके अभाव में बाल मानसिकता पर एक गहरी चोट पडती है और वह गहरी ऋणात्मकता की तरफ नशे/धुंए की चुम्बकीय जाल में फस जाते है।

7. गलत परंपराओं /आदतों का निर्वहन- वर्तमान परिपेक्ष्य में प्राकृतिक जीवन शैली परंपराओं और संस्कारों के प्रति उदासीनता और उनकी जगह गलत परंपराए और उनके निर्वहन के नाम पर केवल आकर्षण लेकिन खोखली और दंभ जनित प्रदर्शन की मानसिकता और जीवन शैली एक भोग विलासी व्यक्तित्व का सृजन करत हैं जिससे कूल मिजाज नशे का अंदाज दम मारो और जिओ की प्रवृति, धुएं में दम घोटते जीवन की सच्चाई को वयां कर देती है और ‘युवा धन’ वही पर दम तोड देता है।

अतः आवश्यक है कि बदलते परिदृश्य में भी पारिवारिकता, संस्कार ,स्नेह भरा समय व साथ सबके लिए और जुडाव का पारिवारिक गृहस्थ ढांचा अभिभावकों से उनके युवाओं को मिलता रहे और जीवन में उत्साह ऊर्जा , रचनात्मकता और जीवंतता एक अकाट्य सत्य की तरह प्रस्फुटित होती रहे।

 

आलेख द्वारा अमित तिवारी

सहायक आचार्य

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान ग्वालियर

(पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार का एक स्वायत्त निकाय)

 

दिनांक 01.10.2020

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चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...