‘क्यों अच्छा लगता है’-
एक अतुकांत कविता
द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’
ग्वालियर म.प्र.
दिनांक- 15.10.2020
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जीवन में खोकर के
पाना
तो
अच्छा लगता है,
मिले कोई जो दोस्त पुराना
तो अच्छा लगता है,
खडी दोपहरी आँख लग जाना
तो अच्छा लगता है,
बिटिया के गालों पर तितली का दाना
तो अच्छा लगता है,
बेसबर जिंदगी में खुशियों का आना,
तो अच्छा लगता है,
जीवन में कडवे सच का सामना
फिर क्यों धक्का सा लगता है,
लंबे जीवन के संदर्भों का छोटा हो
जाना
फिर क्यों धक्का सा लगता है,
भरी नीद में मीठा सा सपना
तो अच्छा लगता है,
मन से मीठा ख़रा जुवां का
फिर
दोस्त पुराना कहाँ अच्छा लगता है,
बिना कहे पत्नि का वो चाय पिलाना
फिर अच्छा तो लगता है,
बडी नजर से लोगों का खुद
से नजर चुराना,
फिर अच्छा तो लगता
है।
द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’
ग्वालियर म.प्र.
दिनांक - 15.10.2020
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