सिद्धांतों से शुन्यतम समझौता व साझा जिंदगी के मायने
एक लघुकथा
स्वरचित द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’
जिंदगी के रास्ते, सफर और मंजिलों पर होते हुए आज शासकीय सेवा में अरविन्द शर्मा को 30 वर्ष पूरे हो रहे थे। सेवा में आए हुए कब तीन
दशक बीते जैसे पता ही ना चला हो उनको, हाँ पत्नि रचना को पति की, आफिस और घर और घर पर ही आफिस की फाइलों में समेटते
देखते जरूर एक लंबी ऊब तो हो गई थी हालाँकि सिद्धांतों के धनी अरविन्द घर हो या
ऑफिस सबको पूरा समय और देते और एन्जॉय करते वो भी पूरे सिद्धांतों के साथ। वो अलग
बात है कभी ऑफिस को उनकी ज्यादा डिमांड थी,
याद आया जब सुरभि का जन्म हुआ था कैसे अरबिन्द जी आफिस से छुट्टी भी ना ले सके थे।
और तो और इलेक्शन की ड्यूटी में तैनाती और हो गई पर भला हुआ चुनावी हिसा में वे
अपनी नौकरी और खुद की सलामती के साथ घर तो लौट आए लेकिन ये उनकी सेवा के प्रति
लग्न व उनका सिद्धांतवादी होना ही था कि वे सुरक्षित आया गए थे खैर बीती बात बीत
गई पर शर्मा जी आप भी सिद्धांत के पक्के हैं आज भी आफिस के समय पर जाकर समय पर आना
और कोई काम अधिक हो तो घर पर ही बैठे उसे निपटा लेना। सुकून के पल सेवा की इतनी लम्बी
अवधि तक रखना ये सब मुमकिन हुआ था उनके नियमतता के सिद्धांत से, काम हो या घर गृहस्थी
जब काम हो तो पूरा ध्यान काम को आज की खत्म कर लेने के सिद्धांत पर टिकटा लेकिन जब
घर या अवकाश हो तो अत्यावश्यक काम को छोड घर के ही जरूरी कामों को सिद्धांत स्वरूप
नियमितता के साथ निपटाना बागबानी हो, बगीचा हो,
कार स्कूटर की धुलाई अपने कपडे धोना,स्त्री करना या खुद के लिए
बाजार जाकर काम करना पत्नी रचना और बेटी सुरभि को भी अवकाश में समय देना हर छः
महीने में पिकनिक और हर दूसरे महीने में रिश्तेदारों और पडोसियों के साथ नियमित मेल-जोल
करना ,पत्र से ही हो याकि व्हाटसऐप से सबको बराबर समय दे सामाजिक दायित्व पुरे
करते हुए जिन्दगी खूब जिन्दादिलों से जी
रहे हैं । एक ही सिंद्धांत था और है शर्मा जी की डिक्शनरी में और सदा ही रहेगा ऐसे कहकर नियमितता के सिद्धांत के
साथ फिर चाहे नींद हो, व्यायाम, परिवार, धार्मिक, सामाजिक कार्य अथवा कि
निहायत निजी जीवन सब के साथ नियमितता का
सिद्धांत आज जब तीस वर्ष का सेवा जीवन का दिन पूर्ण करके घर आए तो चाय की प्याली
के साथ पत्नि से बोल पडे कि मुझे अब एक ही और बकाया काम अपने सिद्धांत के साथ
न्याय करते हुए करना है कि सुरभि की उम्र अब पढाई पैरों पर खडे होने के बाद अब शादी की हो चली है। नियमितता के
सिद्धांतानुसार मेरा अब दायित्व है कि सुरभि की खुशी से उसकी मर्जी का जीवन साथी चुनकर उसका विवाह भी
कर दूं सिद्धात सम तो यह सही होगा कि यदि उसको कोई लड़का पसंद हो तो वह हमें बता दे
और नही तो उसकी पसंद को ध्यान में रखते हुए उसके लिए एक उपयुक्त लडका देखकर उम्र
के पडाव पर अब नियमितता के सिद्धांत से मेरा एक जरूरी जिम्मेदारी बाला कार्य है जो
कि मुझे अविलम्ब करना है जीवन में सिद्धांतों से शून्य समझौते स्वरूप इस वर्ष यह
कार्य हो जाना ही चाहिए, ताकि अगले वर्ष रिटायमेंट से पूर्व या बाद बिटिया की शादी
पूरी धूम-धाम से करूं और जीवन को सिद्धांतो से शून्य समझौता करते हुए जिन्दगी के
मायने समझाकर उसके और अपने नए एक सुखमय जीवन की नई पारी शुरू करूं। सुरभि भी आँगन
में खड़ी शरमाते हुए माँ को भरे चेहरे पर रोशनी लिए मुस्कुराती “माँ मुझे शादी नहीं
करनी; कहती हुयी दमकती हुयी अपने कमरे में निकल गयी
द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’
ग्वालियर म0प्र0
दिनांक 13.10.2020
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