बुधवार, 21 अक्टूबर 2020

रात के अंधेरे से एक अतुकान्त कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’ ग्वालियर , मप्र

 

रात के अंधेरे से

एक अतुकान्त कविता

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर , मप्र

 

रात के अंधेरे से शुरू होती है जिन्दगी

मुफ़लिसी में नही वरन सत्य का शोध करती है जिन्दगी

 

अंधेरे सरपस्त होते हैं उजालों के, और रोशनी से भरे दिन के

रात के अंधेरे के मानिन्द जिन्दगी दम लेती है भागते दौडते दिन के

 

अगर दिन के उजाले से, ऊर्जा मिलती है कर्मयोगी को

तो रात के अंधेरे से गढ़ती है जिन्दगी नए कर्म योग को

 

सजती है, संवरती है अक्स नया कोई गढ़ती है रात के अंधेरे से

नादान है वो जो रात को स्याह काली, कुरूप कहते है रात के अंधेरे से

 

सेज नेह की भी तो विरहन के प्रणय पर चोट करती है रात के अंधेरे से

एक नया जीवन का प्रवाह गढती है जिन्दगी हर नयी  रात को अंधेरे से

 

व्यथा की कथा रात के अंधेरे से शुरू होकर समाप्त होती नहीं

वरन् चल पडती है डंसने वो दिन के कुरूप उजालों को सरेआम सही

 

निज के निजत्व को जला ,प्रभा को अपने गर्भ में भरती है रात के अंधेरे से

लेकिन घृणा ही मिलती है उसे हर पल रात के अंधेरे से

 

अपने अंदर के उजालों पर स्वाभिमान कैसा करूँ

जानता हूँ कि इसकी आभा है रात के अंधेरे से

 

 

 

 

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

दिनांक - 21.10.2020

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चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...