शनिवार, 31 अक्टूबर 2020

“क्या भूलूं - क्या याद करूँ ” एक स्वरचित अतुकान्त कविता द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य’

 

“क्या भूलूं - क्या याद करूँ ”

एक स्वरचित अतुकान्त कविता

द्वारा अमित तिवारी शून्य

 

 

भूला नही पर दिन वो भी याद आता है

क्षितिज का सूर्य जिस दिन भाल पर चमक सा जाता है

 

वहीं होती है रोशनी जिनके ज़ेहन से उजाला आता है

शिकायत हमें परवरिश से है लेकिन इसे कौन झुठला पाता है

 

अतीत का गौरव, वर्तमान की विडम्बना की भेंट चढ तो जाता है

महज अतीत के बूते फिर कोई नया कल को गढ कहाँ पाता है

 

खुद को खपाते ही जमाने में एक दिन कुछ नया नजर आता है

लेकिन इस मानिन्द जमाने में जवानों का दम तक निकल जाता है

 

नही; जानते हम उन्हे मगर, जिनके आग़ोश तले पा जाता है

एक नया जीवन जो हर कोई पाना तो अक्सर चाहता है

 

खोने को तो ए दोस्त चैन सभी खोते हैं, मगर खुद को जो खो देता है

यकीन मानो सच्चे लफ़्ज़ों में वही कामयाब होकर खुद के बाद लोगों के ज़हन में वर्षों बरस आता है

 

भूला वही जाता है जो नाकाबिले याद होता है

याद वही आता है जो भुलाया नही जाता है

 

 

द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर (म.प्र.)

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चित्र आधारित स्वरचित रचना “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’

  चित्र आधारित स्वरचित रचना     “ अतुकांत रचना” द्वारा डॉ अमित तिवारी “शून्य” शीर्षक : ‘मन के तार’ ग्वालियर, भारत ; 30.06.2023   ...