सोमवार, 18 जनवरी 2021

ओस की बूंदें द्वारा अमित तिवारी ‘शून्य‘ स्वरचित कविता

 

ओस की बूंदें

स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

 

मेरे चेहरे पर छायी है,

कोहरे की ठण्डी छाया,

इसके बहाने मैंने पायी है,

ओस की बूंदों की माया,

यह तो ममत्व का रूप है,

इसका अनुभव मुझे भाया,

पंकज की पखुडियां लाई हैं,

ताजगी जिसमें मन महकाया,

पवित्रता के स्त्रोत लिए है,

जीवन के कोष की ओस,

पर है, बहुत अफसोस,

कि आज ओस,

को किया हमने,

जमींदोस।।

 

स्वरचित कविता द्वारा अमित तिवारी शून्य

ग्वालियर म.प्र.

18.01.2021

 

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